छत्तीसगढ़ किसान सभा (CGKS)
(अ. भा. किसान सभा – AIKS से संबद्ध)
जिला समिति कोरबा
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा मोदी सरकार की कृषि विरोधी नीतियों के खिलाफ चलाये जा रहे देशव्यापी आंदोलन के क्रम में पूरे देश में किसान पंचायतें आयोजित की जा रही है। छत्तीसगढ़ किसान सभा और छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन द्वारा संयुक्त रूप से प्रदेश में भी इन पंचायतों का आयोजन किया जा रहा है। 19 मार्च को कोरबा जिले के बांकीमोंगरा क्षेत्र में एक किसान पंचायत का आयोजन किया जा रहा है, जिसे अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बादल सरोज, छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला आदि संबोधित करेंगे। इस पंचायत में शामिल होने के लिए अन्य प्रगतिशील किसान संगठनों से भी बात की जा रही है। इस पंचायत में जिले के हजारों किसानों के भाग लेने की संभावना है।
किसान सभा की कोरबा जिला समिति की बैठक में किसान पंचायत को सफल बनाने पर चर्चा हुई।छग किसान सभा के जिला अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर और सचिव प्रशांत झा ने बताया कि इस पंचायत को 26 मार्च को आहूत ‘भारत बंद’ को सफल बनाने की तैयारी भी माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि चूंकि ये कानून खेती-किसानी और किसानों के लिए डेथ वारंट है, इसलिए देश के किसान इन कानूनों की वापसी चाहते हैं और सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जो सरकार 30 रुपये का पेट्रोल-डीजल 90 रुपये में बेच रही है, वह किसानों को लाभकारी समर्थन मूल्य तक देने के लिए तैयार नहीं है। असल में संघी गिरोह “किसानों के भारत” को “कॉर्पोरेट इंडिया” में बदलना चाहता है। लेकिन देश की जनता उनके मकसद को कामयाब नहीं होने देगी।
किसान नेताओं ने कहा कि देश के किसानों को अपनी फसल को कहीं भी बेचने देने की स्वतंत्रता देने के नाम पर वास्तव में उन्हें अडानी-अंबानी और कॉर्पोरेट कंपनियों की गुलामी की जंजीरों में बांधा जा रहा है। इन कृषि कानूनों का दुष्परिणाम यह होने वाला है कि उनकी जमीन कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथों चली जायेगी और फसल अडानी की निजी मंडियों में कैद हो जाएगी। इसी फसल को गरीब जनता को मनमाने भाव पर बेचकर वे अकूत मुनाफा कमाएंगे, क्योंकि अनाज की सरकारी खरीदी न होने से राशन प्रणाली भी खत्म हो जाएगी। कुल मिलाकर ये कानून देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को खत्म करते हैं।
उन्होंने कहा कि इस किसान पंचायत में वनाधिकार और भू-विस्थापन और खनन से जुड़े मुद्दों और उद्योगों के नाम पे ली गई जमीनों को मूल खातेदार किसानों को वापस करने पर भी चर्चा की जाएगी। मजदूरों, छात्रों,युवाओं और महिलाओं से जुड़े संगठन भी पंचायत में हिस्सा लेंगे और किसानों की मांगों के प्रति अपने समर्थन और एकजुटता का इजहार करेंगे। उन्होंने बताया कि किसानों का यह आंदोलन अनिश्चितकालीन है और कृषि विरोधी कानूनों की वापसी तक यह आंदोलन जारी रहेगा। किसान पंचायत की सफलता के लिए गांव गांव में जत्था निकाल कर घर घर पर्चा बांटा जाएगा ।