बिहार
शहाबुद्दीन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी थे यहां तक की लालू के हर फैसले में शहाबुद्दीन की रजामंदी बेहद जरूरी थी। ऐसे में जबतक लालू मुख्यमंत्री थे किसी भी अधिकारी का हाथ शहाबुद्दीन के गिरेबान तक पहुंचना नामुमकिन था। जब भी राज्य की सत्ता में लालू-राबड़ी का प्रभाव रहा, इस खौफनाक अपराधी की बिहार में तूती बोलती रही।इस राजनेता को लोग पूर्व सांसद के रूप में कम गुंडा और अपराधियों के सरगना के तौर पर ज्यादा जानते थे। कहने को तो इसने एमए और पीएचडी तक की डिग्री हासिल कर रखी थी, लेकिन सिर्फ अपराध का ही क्षेत्र ऐसा रहा, जिसमें इसके जीते जी बिहार में शायद ही कोई इसे कभी टक्कर दे पाया।वो 24-25 साल की उम्र में सक्रिय राजानीति का भी एक बड़ा नाम बना। इसके बाद तो उसे ए ग्रेड का हिस्ट्रीशीटर घोषित किया गया था। उम्र के साथ-साथ उसके अपराध का ग्राफ भी बढ़ता गया और धीरे-धीरे वह सीवान का अघोषित साहब बन बैठा।थे। शहाबुद्दीन भी लालू की पार्टी में शामिल हुआ।
1990 के विधानसभा चुनाव में उसे जनता दल से टिकट मिला और उसकी जीत हुई। 1995 में उसने दोबारा लालू की पार्टी से ही जीत हासिल की और पार्टी में उसका कद बढ़ता चला गया। एक साल बाद 1996 में उसे सीवान से लोकसभा का टिकट मिला और वह शातिर अपराधी संसद में दाखिल हो गया।शहाबुद्दीन अपराध और राजनीति के नापाक गठजोड़ से पैदा हुए शायद सबसे स्वछंद, सबसे अनोखे और सबसे ताकतवर बाहुबली थे। कुछ लोगों का कहना है बड़े दांव वाली राजनीति की दुनिया में एक वह एक प्यादा भर थे।लेकिन जब कभी शहाबुद्दीन कानूनी उलझनों के चक्कर में चुनाव नहीं लड़ पाया अपनी पत्नी हिना शहाब को आगे बढ़ाने की कोशिश करता रहा।
कई ऐसे किस्से हैं RJD के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन से भी जुड़े हैं। इनमें सबसे खौफनाक किस्सा है सिवान के तेजाब कांड का। बिहार के सीवान में 2004 में बहुचर्चित तेजाब कांड में चंदा बाबू के तीनों बेटों की मौत हो गई थी। जिसके बाद 2005 में उन्हें दिल्ली से पकड़ा गया था और जेल की हवा खानी पड़ी थी।बिहार के सीवान में रहने वाले चंदा बाबू जाने-माने दुकानदार थे. 2004 में जब कुछ बदमाशों ने उनसे रंगदारी मांगी, तो उसके बाद सबकुछ बदल गया। जब बदमाशों ने रंगदारी मांगी, तो चंदा बाबू का बेटा दुकान पर था। लेकिन बदमाशों से कहा सुनी हुई और इसी बीच बदमाशों ने चंदा बाबू के दोनों बेटों पर तेजाब डाल दिया। तेजाब से नहलाने के बाद दोनों भाईयों को मार दिया गया।जबकि इस मामले का चश्मदीद रहे राजीव किसी तरह बदमाशों की गिरफ्त से अपनी जान बचाकर भाग निकला। बाद में राजीव भाइयों के तेजाब से हुई हत्याकांड का गवाह बना। मगर 2015 में शहर के डीएवी मोड़ पर उसकी भी गोली मार कर हत्या कर दी गई।