सीतामढ़ी:- सब्जी का उपयोग हर घर में होता है और साल के 365 दिन। शायद ही कोई दिन होगा, किसी घर में बिना सब्जी का भोजन का काम चलता होगा। बराबर यह कहा और सुना जाता रहा है कि सब्जी के उत्पादक कम है और इसका उपयोग करने वाले कई गुणा अधिक हैं। इस कारण सब्जी की कीमतें कभी-कभी आसमान छूने लगती है। वैसे यह हकीकत है कि शहरी क्षेत्र में न के बराबर लोग खुद सब्जी की खेती करते हैं। यानी सिर्फ और सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली सब्जियों पर ग्रामीण क्षेत्रों के आलावा शहरी क्षेत्र के लोग निर्भर रहते हैं। इस बीच, बिहार के सीतामढ़ी जिले से एक सुखद खबर मिली है कि यह जिला सब्जी की खेती में आत्मनिर्भर हो रहा है। हर वर्ष सब्जी उत्पादन का ग्राफ बढ़ रहा है।
सब्जी की खेती से आर्थिक उन्नति
जिले के बहुत सारे किसान परंपरागत खेती को छोड़ सब्जी के खेती कर रहे हैं। इससे बेहतर आय कर रहे हैं। एक किसान को देख दूसरे किसान भी सब्जी की खेती अपना रहे हैं। यानी धान, गेहूं और मक्का की खेती को छोड़ अब किसान सब्जी की खेती पर ध्यान देने लगे है। वहीं, यह सच है कि अब सब्जी की खेती किसानों की आर्थिक उन्नति का एक अच्छा जरिया बनता जा रहा है। कल तक जो किसान मजदूरी करते थे, वो आज खुद सब्जी की खेती में दो-चार मजदूर लगा रखे हैं। जिन छोटे किसानों को साइकिल नसीब थी वो आज बाइक की सवारी कर रहे हैं। जिनके फूस के घर थे, उन किसानों ने सब्जी की खेती से पक्का का मकान बना लिए हैं।
बाहरी सब्जी पर निर्भरता खत्म
जिले के लोग अब बाहर से आने वाली सब्जियों पर निर्भर नहीं हैं। यहां सालों भर रंग बिरंगी सब्जियों का उत्पादन होने लगा है। यानी जिले की सब्जियों से ही बाजार गुलजार रहता है। जिले में 17 प्रखंड है। सभी प्रखंडों के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 17538 हेक्टेयर में विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन होता है। कृषि विभाग के उद्यान कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार यहां सर्दी के मौसम में सबसे अधिक आलू की खेती होती है। वहीं, टमाटर और प्याज का भी अच्छा-खासा उत्पादन होता है। जिले में 5122 हेक्टेयर में लगभग 1.38 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन होता है।
जिले में सब्जी उत्पादन का आंकड़ा
सब्जी उत्पादन आलू 138088, एमटी प्याज32574, एमटी टमाटर35595, एमटी बैगन 27148, एमटी बंद गोभी 17918, एमटीफूलगोभी24407 एमटीमूली6500 एमटीमशरूम6.12 एमटीगाजर1400 एमटीबिन्स1300 एमटीलौकी23287 एमटीहरी मिर्च8442 एमटीकद्दू1141 एमटीमटर1523 एमटी
आलू को झुलसा रोग से बचाने उपाय प्रबंधन जरुरी
कृषि विभाग के पौधा संरक्षण प्रभाग के अनुसार आलू को झुलसा रोग से बचाने के लिए किसानों को बेहतर प्रबंधन करने की आवश्यकता है। आलू में लगने वाले मुख्य रूप से दो रोग पिछात और अगात झुलसा रोग है। पिछात झुलसा से आलू को बचाने के लिए 10-15 दिनों के अंतराल पर मैंकोजेब 75 फीसदी घुलनशील चूर्ण दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। वहीं संक्रमित फसल में मैंकोजेब ओर मेटालैक्सिल अथवा कार्बेन्डाजिम और मैंकोजेब संयुक्त उत्पाद का दो ग्राम प्रति लीटर या दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करनी चाहिए। इसी तरह आलू के फसल में अगात झुलसा का लक्षण दिखाई देते ही जिनेब 75 फीसदी घुलनशील चूर्ण 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या मैंकोजेब 75 फीसदी घुलनशील चूर्ण दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 फीसदी घुलनशील चूर्ण 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है।