यूपी-बिहार:- जिमीकंद को यूपी-बिहार सहित कई राज्यों में ओल या सूरन के नाम से भी जाना जाता है. पहले जिमीकंद को जंगली पौधा माना जाता था. लोग घर के पीछे या बेकार पड़ी जमीन पर जिमीकंद रोपते थे, जिसे पर्व- त्योहारों पर जमीन से निकाल कर खाया जाता था. लेकिन अब, किसान बड़े स्तर पर जिमीकंद की खेती कर रहे हैं.
समय पर सिचाई का ध्यान
कृषि के क्षेत्र में 15 साल का अनुभव रखने वाले रायबरेली के खुशहाली कृषि संस्थान के पूर्व प्रबंधक अनूप शंकर मिश्र बताते हैं कि अप्रैल के प्रथम और द्वितीय सप्ताह में ओल यानी कि जिमीकंद की खेती की शुरुआत होती है. विधान और कुसुम के साथ ही गजेंद्र प्रजाति ज़िमीकंद की सबसे अधिक मुनाफे वाली प्रजातियां हैं. जिमीकंद की खेती के लिए किसानों को ऑर्गेनिक खाद और सिंचाई की उचित सुविधा करनी होगी.
कौन सी मिट्टी है सूरन के लिए उत्तम
अनूप शंकर मिश्र बताते हैं कि अप्रैल माह में बुवाई के बाद नवंबर के महीने में यह फसल तैयार हो जाती यानी कि आठ माह में यह फसल तैयार हो जाती है. सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी बेहतर मानी गई है. इसकी रोपाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करनी होगी. जब खेत की मिट्टी से नमी हट जाए तो एक बार फिर रोटावेटर से खेत की जुताई कर दें. इसकी बुवाई के समय किसान जिमीकंद के टुकड़ों को दो-दो फीट की दूरी पर खेत रोपण कर सकते हैं. साथ ही 2 किलो के जिमीकंद को चार भागों में काटकर एक गड्ढे में मिट्टी से 1 इंच नीचे रोपण किया जाता है.
जिमीकंद की खेती करने से पहले इसके बीच का शोधन करना चाहिए. इसके लिए एक ड्रम में 15 लीटर पानी में 30 ग्राम कार्बेंडाजिम को मिलाकर जिमीकंद के बीज को डाल दें. 10 मिनट के बाद उसे निकाल लें. यह प्रक्रिया तीन बार करने से बीज का शोधन हो जाता है जिससे उसमें रोग लगने का खतरा भी कम हो जाता है.
एक हेक्टेयर में 500 क्विंटल तक पैदावार एक हेक्टेयर में लगभग 140 क्विंटल बीज का रोपण किया जाता है. जिससे 500 क्विंटल तक पैदावार होती है. नवंबर के महीने में लोग इसे खाना ज्यादा पसंद करते हैं. इसीलिए बाजारों में 40 रुपए प्रति किलो कि दर से यह आसानी से बिक जाता है इसे गरीबों का मटन भी कहा जाता है।