नई दिल्ली:– चाणक्य मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ थे। उन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। चाणक्य के नीति शास्त्र में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन करने वाले शानदार विचारों का खजाना है। इन विचारों को आत्मसात करने से बच्चों को एक सफल और सार्थक जीवन जीने में मदद मिल सकती है।आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको चाणक्य के कुछ ऐसे विचारों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें अपनाकर आपका बच्चा एक सही इंसान बन सकता है और उसमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की ताकत आ सकती है। तो चलिए जानते हैं कि चाणक्य से बच्चों को क्या कुछ सीखने को मिलता है।
विद्या धनम सर्वस्वं, प्रमादं च निरर्थकम्। इस वचन का तात्पर्य है कि शिक्षा जीवन में सबसे मूल्यवान संपत्ति है। ज्ञान के बिना, सफलता प्राप्त करना कठिन होता है। बच्चों को यह समझना चाहिए कि शिक्षा जीवन भर सीखने की प्रक्रिया है और इसकी मदद से आपको आगे बढ़ने में जीवन में सम्मान मिलता है।
यह वचन बच्चों को सिखाता है कि सफलता बिना कठिन परिश्रम के नहीं मिलती। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयास और समर्पण जरूरी है। बच्चों को यह सीखना चाहिए कि असफलताओं से हार न मानें और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते रहें। अगर आप अपने जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको मेहनत जरूर करनी पड़ेगी।
चाणक्य का यह कथन विनम्रता के महत्व को रेखांकित करता है। वह बताते हैं कि ज्ञान और सम्मान तभी प्राप्त होते हैं जब व्यक्ति विनम्र होता है। अहंकारी व्यक्ति न तो सीख सकता है और न ही सम्मान प्राप्त कर सकता है। बच्चों को विनम्र होना सीखना चाहिए और दूसरों की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए।
सच्ची मित्रता वही होती है जो अच्छे और बुरे समय में साथ दे। चाणक्य यह सलाह देते हैं कि ऐसे लोगों को मित्र न बनाएं जो आपको बुरे काम करने के लिए प्रेरित करें। सच्चे मित्र वे होते हैं जो आपकी सफलता का जश्न मनाते हैं और आपको एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करते हैं।
चाणक्य कहते हैं कि समय का सदुपयोग ही सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। समय एक अनमोल वस्तु है। बच्चों को समय की पाबंदी सीखनी चाहिए और अपने कार्यों को समय पर पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि समय बर्बाद करने से लक्ष्य प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
इसके अलावा चाणक्य कहते हैं कि क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। क्रोध से निर्णय क्षमता कमजोर हो जाती है और गलतियां होने की संभावना बढ़ जाती है। बच्चों को यह सीखना चाहिए कि अपने गुस्से को नियंत्रित करें और शांतचित्त होकर परिस्थितियों का सामना करें।