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    साइंटिस्टों ने पता लगाई ये छठी इंद्री जानिए आपके पास भी हैं 5 से ज्यादा सेंस…

    By adminJune 12, 2024No Comments7 Mins Read
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    नई दिल्ली:– जैसे की आपको पता है की इंसान की बॉडी में पांच बेसिक सेंस होते हैं- छूना, देखना, सुनना, सूंघना और स्वाद. हरेक सेंस से जुड़े सेंसिंग अंग दिमाग को जानकारी भेजते हैं, ताकि हमारे आस-पास की दुनिया को समझने में मदद मिल सके. मगर कई बार आपने लोगों की जुबान से सुना होगा कि सिक्स्थ सेंस के बारे में जरूर सुना होगा. कई लोग दावा करते हैं कि उनका सिक्स्थ सेंस किसी घटना के होने के बारे में पहले ही बता देता है, और वो घटना हकीकत में हो जाती है.

    लेकिन क्या हकीकत में बुनियादी पांच सेंस के अलावा छठा सेंस ये ही है? आइए जानते हैं कि असल में हमारी बॉडी में कौन सा सिक्स्थ सेंस होता है. उससे पहले पांचों सेंस के बारे में विस्तार से जानते हैं.

    पहला सेंस- छूना (Touch Sense)
    टच यानी स्पर्श को इंसानों का पहला सेंस माना जाता है. टच करने में स्किन में स्पेशल न्यूरॉन्स या नर्व सेल्स के जरिए दिमाग को कई तरह के एहसास भेजे जाते हैं. दबाव, तापमान, हल्का टच, कंपन, दर्द जैसे एहसास सभी टच सेंस का हिस्सा हैं और सभी स्किन में अलग-अलग रिसेप्टर्स के लिए जिम्मेदार हैं.छूना हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी है क्योंकि हमें अपने पर्यावरण का पता लगाने और उससे बातचीत करने की आजादी मिलती है. टच हमारी भलाई के लिए भी बहुत जरूरी है. उदाहरण के लिए, रिसर्च से पता चला है कि टच करने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक दया और सहानुभूति पहुंचती है.

    दूसरा सेंस: देखना
    दृष्टि, या आंखों के जरिए चीजों को समझना, एक मुश्किल काम है. सबसे पहले रौशनी किसी चीज से रिफ्लेक्ट होकर आंख में आती है. आंख की पारदर्शी बाहरी परत जिसे कॉर्निया के नाम से जाना जाता है, रौशनी को मोड़ती है, जिसमें से कुछ रौशनी आंख में एक छेद से होकर लेंस तक जाती है जिसे पुतली कहते हैं.आंख का रंगीन हिस्सा या आइरिस, पुतली के आकार को एडजस्ट करके अंग में आने वाली रौशनी की मात्रा को कंट्रोल करती है. पुतली रौशनी को रोकने के लिए सिकुड़ जाती है या ज्यादा रौशनी को अंदर आने देने के लिए चौड़ी हो जाती है.फिर लेंस रौशनी को मोड़ता है और इसे आंख के पीछे रेटिना पर फोकस करता है, जो नर्व सेल्स से भरा होता है. ये सेल्स रॉड और कोन की शेप के होते हैं और उनके शेप के हिसाब से इनका नाम रखा गया है.

    हरेक आंख में लगभग 12 करोड़ रॉड सेल्स और 60 लाख कोन सेल्स होते हैं. रॉड सेल्स रौशनी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं और हमें मंद रौशनी में देखने में मदद करते हैं, जबकि कोन सेल्स तेज रौशनी में काम करते हैं, जिससे हमें रंग और बारीक डिटेल्स देखने में मदद मिलती है.

    पीएलओएस वन जर्नल में पब्लिश एक स्टडी के अनुसार, जो लोग देख नहीं सकते, वे बेहतर सुनने, छूने और सूंघने की अच्छी क्षमता के साथ आंखों की रौशनी खोने के नुकसान की भरपाई कर सकते हैं. स्टडी में पाया गया कि उनकी याददाश्त और लैंग्वेज स्किल्स आंखों की रौशनी के साथ पैदा हुए लोगों की तुलना में बेहतर हो सकते हैं.

    तीसरा सेंस: सुनना
    सुनने के काम को हमारे काम अंजाम देते हैं. आवाज एक्स्टर्नल ऑडिटरी कैनल या कान की नली नामक बाहरी कान में एक रास्ते के साथ बाहर से फनल की जाती है. फिर, साउंड वेव टिम्पेनिक झिल्ली या ईयरड्रम तक पहुंचती हैं. ये कनेक्टिव टिशू की एक पतली परत होती है जो साउंड वेव के टकराने पर वाइब्रेशन करती है.

    ये वाइब्रेशन बीच कान तक जाती है, जिससे वहां तीन छोटी हड्डियां- मैलियस, इनकस और स्टेप्स भी वाइब्रेशन करने लगती हैं. स्टेप्स हड्डी फिर ओवल विंडो नामक स्ट्रक्चर को अंदर और बाहर धकेलती है, जिससे कोर्टी के अंग में वाइब्रेशन होता है, जो सुनने का अंग है. कोर्टी के अंग में छोटे हेयर सेल्स वाइब्रेशन को इलेक्ट्रिक इंपल्स में बदल देती हैं जो सेंसरी नर्व्स के जरिए दिमाग तक जाती है.

    लोग बैलेंस बनाए रखते हैं क्योंकि बीच कान में यूस्टेशियन ट्यूब कान के इस हिस्से में एयर प्रेशर को एटमॉस्फेयर में एयर प्रेशर के साथ बराबर करती है. अंदरूनी कान में वेस्टिबुलर कॉम्प्लेक्स भी बैलेंस के लिए जरूरी है, क्योंकि इसमें रिसेप्टर्स होते हैं जो बैलेंस को कंट्रोल करते हैं. अंदरूनी कान वेस्टिबुलोकोक्लियर नर्व से जुड़ा होता है, जो दिमाग को साउंड और बैलेंस के बारे में जानकारी पहुंचाता है.

    चौथा सेंस: सूंघना
    सूंघने का काम नाक के अंदर की खुली जगह यानी नेसल कैविटी की ऑलफैक्टरी क्लेफ्ट से शुरू होता है. इसके अंदर नर्व बदबू का पता लगाते हैं और इसके बारे में दिमाग में ऑलफैक्टरी बल्ब को संकेत भेजते हैं जहां उन्हें सूंघने के तौर पर देखा जाता है. कुत्ते में सूंघने की बहुत अच्छी क्षमता होती है, लेकिन रिसर्च संकेत देती हैं कि इंसान भी उतने ही अच्छे हो सकते हैं.उदाहरण के लिए, कुछ साल पहले साइंस जर्नल में पब्लिश एक रीव्यू आर्टिकल ने इस बात पर रौशनी डाली कि इंसान 1 ट्रिलियन अलग-अलग गंधों के बीच अंतर कर सकते हैं, ना कि केवल 10,000 गंधों के बीच, जिनके बारे में साइंटिस्ट्स ने कभी सोचा था कि इंसान फर्क पहचान सकते हैं.

    रीव्यू के ऑथर और न्यू जर्सी में रटगर्स-न्यू ब्रंसविक यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट जॉन मैकगैन ने एक बयान में कहा था कि सच तो यह है कि मनुष्यों में गंध की भावना उतनी ही अच्छी होती है जितनी कि अन्य मैमल्स (स्तनधारियों), जैसे कुत्तों में होती है.

    इंसानों में लगभग 400 स्मेल रिसेप्टर्स होते हैं. हालांकि यह उन जानवरों की तुलना में बहुत ज्यादा नहीं है जो सुपर स्मेलर्स हैं. डिप्रेशन, चिंता और सिजोफ्रेनिया आदि की वजह से स्मेल यानी सूंघने की क्षमता कम हो जाती है.

    पांचवा सेंस: स्वाद
    स्वाद को आमतौर पर पांच अलग-अलग तरह के स्वादों के बीच बांटा जा सकता है. इसमें नमकीन, मीठा, खट्टा, कड़वा और उमामी शामिल हैं. आम धारणा के उलट “मसालेदार या स्पाइसी” कोई स्वाद नहीं है, बल्कि यह एक तरह के दर्द का इशारा है जो दिमाग को टेंपरेचर और टच के बारे में जानकारी देता है.

    स्वाद का एहसास होने से इंसान को खाए जाने वाले भोजन का टेस्ट करने में मदद मिलती है. उदाहरण के लिए, कड़वा स्वाद संकेत देता है कि कोई पौधा जहरीला हो सकता है. दूसरी ओर, कुछ मीठा होने का मतलब अक्सर यह होता था कि खाना पोषक तत्वों से भरपूर है.

    यह एक मिथक है कि जीभ में हरेक स्वाद के लिए स्पेशल एरिया होते हैं. पांचों टेस्ट को जीभ के सभी भागों पर महसूस किया जा सकता है, हालांकि आम तौर पर बीच वाले हिस्से की तुलना में किनारे ज्यादा संवेदनशील होते हैं. टेस्ट बड्स में लगभग आधे सेंस वाले सेल्स पांच मूल स्वादों में से कई पर रिएक्ट करते हैं.

    छठा सेंस: प्रोप्रियोसेप्शन
    पांच बड़े सेंस के अलावा प्रोप्रियोसेप्शन नामक एक और सेंस है जो इस बात से ताल्लुक रखता है कि आपका दिमाग स्पेस में आपके शरीर की कंडीशन को कैसे समझता है. प्रोप्रियोसेप्शन में हमारे अंगों और मांसपेशियों की स्पीड और स्थिति का सेंस शामिल है. उदाहरण के लिए प्रोप्रियोसेप्शन एक व्यक्ति को अपनी नाक की नोक को अपनी उंगली से छूने के काबिल बनाता है.

    यहां तक कि वो अपनी आंखें बंद करके भी नाक की नोक छू सकता है. यह हमें एक पैर पर बैलेंस बनाने में भी मदद करता है. खराब प्रोप्रियोसेप्शन वाले लोगों को बैलेंस बनाने में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है.

    न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में कुछ साल पहले पब्लिश एक छोटी सी स्टडी में पाया गया कि PIEZO2 नामक जीन प्रोप्रियोसेप्शन में अहम भूमिका निभा सकता है. रिसर्चर्स ने यह पता लगाया कि जीन में म्यूटेशन की वजह से दो मरीजों को बैलेंस और स्पीड के साथ-साथ कुछ प्रकार के टच सेंस का नुकसान हो सकता है.

    नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के लीड स्टडी ऑथर और सीनियर इन्वेस्टिगेटर अलेक्जेंडर चेसलर ने इस मामले से जुड़े एक बयान में कहा था कि PIEZO2 का पेशेंट वर्जन काम नहीं कर सकता है, इसलिए उनके न्यूरॉन्स टच या अंग की हरकतों का पता नहीं लगा सकते हैं.

    ऐसे और भी सेंस हैं जिन्हें ज्यादातर लोग कभी नहीं समझ पाते. उदाहरण के लिए, हमारी मांसपेशियों में मौजूद स्पेशल रिसेप्टर्स हमारी हरकतों का पता लगाते हैं, जबकि हमारी धमनियों में मौजूद बाकी रिसेप्टर्स खून के बहाव के कुछ हिस्सों में ऑक्सीजन लेवल का पता लगाते हैं.

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