प्रयागराज :- भव्य और दिव्य महाकुंभ में लगातार श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी है. इस बीच केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गंगाजल की शुद्धता पर सवाल उठाकर नई बहस छेड़ दी. अब JNU-AU और बिहार यूनिवर्सिटी के पर्यावरण वैज्ञानिकों ने इसे लेकर तस्वीर साफ कर दी है. उनके अनुसार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट अधूरी है. इसमें नाइट्रेट और फॉस्फेट जैसे तत्वों का उल्लेख नहीं है. संगम का पानी पूरी तरह साफ है. स्नान करने योग्य भी है. इससे पूर्व पद्मश्री वैज्ञानिक अजय सोनकर ने भी रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.
महाकुंभ मेले के 40 दिन पूरे हो चुके हैं. इस दौरान 59 करोड़ से अधिक लोग संगम में डुबकी लगा चुके हैं. इस बीच बीच केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट ने श्रद्धालुओं को टेंशन में डाल दिया. लोगों को लगने लगा कि संगम का पानी नहाने लायक नहीं रह गया है. हालांकि रिपोर्ट आने के कुछ ही देर बाद से इस पर जानकारों की प्रतिक्रियाएं आने लगी थीं.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान स्कूल के सहायक प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार मिश्रा, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर उमेश कुमार सिंह और दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर आरके रंजन ने कहा कि मौजूदा रिपोर्ट के आधार पर भी गंगाजल क्षारीय है. यह स्वस्थ जल निकाय का संकेत है. जल में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा के आधार पर इसे स्नान योग्य ही माना जाएगा.
कोलीफॉर्म बैक्टीरिया कोई नई बात नहीं : सहायक प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार मिश्रा का कहना है कि हमें और अधिक डाटा सेट की आवश्यकता है. महाकुंभ में बहुत बड़ी संख्या में लोग स्नान कर रहे हैं. कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की बात करें तो यह कोई नई बात नहीं है. अगर आप अमृत स्नान के चरम के डाटा को देखेंगे तो पाएंगे कि उस समय ई.कोली बैक्टीरिया चरम पर होता है. हमें और अधिक मापदंडों व अधिक निगरानी स्टेशनों की आवश्यकता है. खासकर धारा के नीचे 3 माइक्रोग्राम प्रति लीटर जल सुरक्षित है. हम कह सकते हैं कि पानी नहाने के लिए अच्छा है.
अगर आप संगम घाट के डाटा में बदलाव देखें तो कभी-कभी यह 4, या 4.5 हो जाता है. इसलिए मैं कहूंगा कि घुलित ऑक्सीजन का स्तर जो हम देखते हैं, वह एक बहुत ही स्वस्थ जल निकाय का संकेत देता है. अगर आप पीएच रेंज देखें तो वे सभी क्षारीय पानी है, जोकि अच्छा माना जाएगा.
कंप्लीट नहीं है डाटा, नाइट्रेट-फॉस्फेट का उल्लेख नहीं : त्रिवेणी में पानी की गुणवत्ता पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान केंद्र के प्रोफेसर उमेश कुमार सिंह ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में पानी में फीकल कोलीफॉर्म के बढ़ने की बात कही गई है.
सीपीसीबी को रिपोर्ट पर और काम करने की जरूरत है. उनके पास पूरा डाटा नहीं है. रिपोर्ट में नाइट्रेट और फॉस्फेट का स्तर गायब है. रिपोर्ट में दिखाए गए अनुसार पानी में घुली ऑक्सीजन का स्तर अच्छा है. ऐसे में इस डाटा के आधार पर कहा जा सकता है किसंगम का पानी नहाने के लिए उपयुक्त है.
नहाने के लिए जल सही नहीं, अभी यह कहना जल्दबाजी : दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर आरके रंजन ने कहा कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के डाटा में काफी अंतर है. इससे पानी की शुद्धता का निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी. इसके लिए पर्याप्त डाटा की जरूरत है. ऐसा ही दावा गढ़मुक्तेश्वर, गाजीपुर, बक्सर और पटना को लेकर भी किया गया है. ऐसा होने के कई कारण हो सकते हैं. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि बड़ी संख्या में लोग एक ही पानी में नहाते हैं. यह भी मायने रखता है कि जल का नमूना कहां से और कब लिया गया है. सीपीसीबी की ताजा रिपोर्ट की मानी जाए तो गंगा और यमुना का जल नहाने और आचमन के लायक नहीं है. इसको लेकर देश में सियासत गर्मा गई है.
अब जानिए CPCB ने क्या तय किए हैं मानक : भारत के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नदियों में स्नान के लिए जल गुणवत्ता मानक निर्धारित किए हैं. इसके अनुसार फेकल कोलीफॉर्म अधिकतम स्वीकार्य सीमा 2,500 यूनिट प्रति 100 मिली है. फेकल स्ट्रेप्टोकोकी अधिकतम स्वीकार्य सीमा 2 एमपीएन/100 मिली है. पीएच अनुशंसित सीमा 6.5 से 8.5 है. घुली हुई ऑक्सीजन न्यूनतम सीमा प्रति 5 मिलीग्राम/1 है. जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग अधिकतम स्वीकार्य सीमा प्रति 500 मिलीग्राम/1है.
जल की सही गुणवत्ता के मानक : इलेक्ट्रिकल कंडेक्टेंस विद्युत चालकता 750 μS/cm से कम होनी चाहिए. क्लोराइड सांद्रता 250 mg/l से कम होनी चाहिए, फ्लोराइड सांद्रता 1.0 mg/l से कम होनी चाहिए. सल्फेट सांद्रता 400 mg/l से कम होनी चाहिए.
डॉ. अजय सोनकर के शोध ने दावे को झुठलाया : पद्मश्री डॉ. अजय सोनकर के महाकुंभनगर के 5 अलग अलग घाटों से लिए गए गंगाजल के सैंपल शोध में इस दावे को पूरी तरह गलत साबित कर दिया है कि गंगा का जल नहाने और आचमन योग्य नहीं है. उन्होंने कहा कि गंगा जल की अम्लीयता सामान्य से बेहतर है. उसमें किसी भी प्रकार की दुर्गंध या जीवाणु वृद्धि नहीं पाई गई. विभिन्न घाटों पर लिए गए सैंपल को प्रयोगशाला में 8.4 से लेकर 8.6 तक पीएच स्तर का पाया गया है. यह काफी बेहतर माना गया है.
अजय सोनकर ने बताया कि प्रयोगशाला में जल के नमूनों को 14 घंटों तक इनक्यूबेशन तापमान पर रखा गया था. उनमें किसी भी प्रकार की हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं हुई. यह अपने आप में साबित करता है कि गंगाजल नहाने योग्य भी है और आचमन करने लायक भी.