रायपुर: राजधानी रायपुर स्थित शदाणी दरबार में रविवार को राज्य स्तरीय हिंदू राष्ट्र अधिवेशन का आयोजन हुआ. यह अधिवेशन हिंदू जन जागृति समिति द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, भाजपा नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव, वीर सावरकर के पोते रंजीत सावरकर सहित देशभर से कई संत-महंत और समिति के कार्यकर्ता शामिल हुए. कार्यक्रम में धर्मांतरण, हिंदू राष्ट्र की अवधारणा, और भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच जैसे मुद्दों पर विचार सामने आए.
मुख्यमंत्री साय ने किया विधेयक का ऐलान: मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने घोषणा की कि प्रदेश में पहले से मौजूद धर्मांतरण विरोधी कानून को और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा. उन्होंने कहा कि आगामी विधानसभा सत्र में एक नया विधेयक पेश किया जाएगा ताकि धर्मांतरण की गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई संभव हो सके. मुख्यमंत्री ने देशभर से आए संतों का स्वागत किया.
रंजीत सावरकर ने उठाई ‘हिंदू राष्ट्र’ की मांग: वीर सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने कहा कि जब जर्मनी, ब्रिटेन जैसे देशों के लोग अपनी पहचान पर गर्व करते हैं, तो भारत में लोग खुद को हिंदू कहने में झिझकते क्यों हैं? 100 करोड़ हिंदू होने के बावजूद एक भी हिंदू राष्ट्र नहीं है. ये हमारा अधिकार है कि हम बहुसंख्यक के रूप में अपनी सरकार और पहचान की मांग करें.
पाकिस्तान के खिलाफ मैच का किया विरोध: भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच पर सावरकर ने तीखा बयान दिया. उन्होंने कहा जो देश हमें आतंकवाद से घाव देता है, उनके साथ खेल क्यों? उन्होंने लोगों से अपील की कि अगर भारत पाकिस्तान के साथ एशिया कप में मैच खेलता है, तो पूरे क्रिकेट का बहिष्कार करें. उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार और BCCI अनुमति देते हैं, तो राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया जाएगा.
धर्मांतरण को जोड़ा नक्सलवाद से: रंजीत सावरकर ने आदिवासी समाज में हो रहे धर्मांतरण को योजनाबद्ध साजिश बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि धर्मांतरण लालच देकर किया जा रहा है और जहां यह हुआ है, वहीं नक्सलवाद भी पनपा है. उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वनवासियों को जंगल संरक्षण कानून के नाम पर उनका हक छीना गया और फिर उन्हें भड़काकर धर्म परिवर्तन कराया गया.
सावरकर बनाम नेहरू-गांधी पर तंज: कांग्रेस द्वारा वीर सावरकर की भूमिका पर सवाल उठाए जाने पर रंजीत सावरकर ने जवाब दिया. कहा कि वीर सावरकर को अंडमान की जेल में वर्षों तक यातनाएं दी गईं, जबकि गांधी और नेहरू को ब्रिटिश सरकार ने महलों में रखा. यदि सावरकर उनके मित्र थे, तो उन्हें कोठरी में क्यों डाला गया? क्या ब्रिटिश बेवकूफ थे जो अपने ‘मित्र’ सावरकर को जेल में डालते थे?
बता दें कि यह अधिवेशन न केवल विचारों का मंच बना, बल्कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ की राजनीति और सामाजिक विमर्श में बड़ा हस्तक्षेप करने वाला संदेश भी हो सकता है.