उड़ीसा:– जगन्नाथ पुरी, जिसे पुरी के नाम से भी जाना जाता हैं। ओडिशा, भारत में स्थित एक शहर और एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह ‘हिन्दुओं के चार धाम’ में से एक है यहाँ हर साल होने वाली प्रसिद्ध रथ यात्रा उत्सव में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने भव्य रथों पर सवार होकर नगर यात्रा पर निकलते हैं।
आज हम आपको बताने जा रहे है जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक ऐसी रोचक कथा, जिसे जानकर आप भी ख़ुशी से बोल पड़ेंगे जय हो जगन्नाथ स्वामी जी की..
क्या आप जानतें हैं कि, जगन्नाथ मंदिर के पीछे आज भी एकादशी उल्टी लटकी हुई है? आपको जानकर हैरानी होगी कि, जहां एकादशी के दिन भारतवर्ष में लोग अन्न या चावल का ग्रहण नहीं करते हैं। वहीं पुरी में उस दिन जगन्नाथ स्वामी को चावल का भोग लगाया जाता है और लोगों को भी प्रसाद के रूप में बांटा जाता है इस अनोखी परंपरा के कारण, जगन्नाथ पुरी मंदिर में एकादशी को “उल्टी एकादशी” के रूप में मनाया जाता है, जबकि देश के बाकी हिस्सों में एकादशी पर चावल वर्जित होते हैं।
चलिए आज हम आपको सुनाते हैं जगन्नाथ पूरी की एक ऐसी अनोखी कथा जिसे जानकार भगवान् के प्रति आपकी भक्ति और भी गहरी हो जाएगी..
एक बार ब्रह्मा जगन्नाथ स्वामी का प्रसाद ग्रहण करने के लिए पुरी उड़ीसा आए थे। लेकिन जबतक ब्रह्मा जी पहुंचें, प्रसाद समाप्त हो चुका था। केवल एक पत्ते पर बासी चावल के दाने बचें थे, जिसे एक कुत्ता चाट रहा था। लेकिन ब्रह्मा जी की भक्ति इतनी अटूट और सच्ची थी कि वो उस कुत्ते के साथ बैठकर पत्ते में से चावल खाने लगे तभी वहां तभी एकादशी देवी प्रकट हुईं और ब्रह्मा जी को चावल खाने पर टोका, ये आप क्या कर रहे हैं आज एकादशी है और आप चावल ग्रहण कर रहे हैं! एकादशी के ऐसा बोलते ही वहां जगन्नाथ स्वामी प्रकट हो गए। जगन्नाथ स्वामी ने एकादशी से कहा, जहां सच्ची भक्ति हो, वहां कोई नियम लागू नहीं होता है वहाँ किसी व्रत या नियम का असर नहीं होता। इस प्रकार, उन्होंने घोषणा की, कि उनके महाप्रसाद पर एकादशी का नियम नहीं लगेगा।
तब महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी ने कहा कि, आज से मेरे महाप्रसाद पर एकादशी या व्रत का बंधन नहीं रहेगा, और उसी पल भगवान जगन्नाथ स्वामी ने मंदिर के पीछे एकादशी को उल्टा लटका दिया। तब से लेकर आज तक पुरी में एकादशी के मौके पर चावल खाना पाप नहीं माना जाता है, बल्कि इसे महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
इस घटना के बाद से जगन्नाथ मंदिर में एकादशी के दिन भी चावल खाने की परंपरा है, जिसे महाप्रसाद माना जाता है।