नई दिल्ली:– वृंदावन के सुप्रसिद्ध कथावाचक कृष्ण चंद्र शास्त्री भी प्रेमानंद महाराज का हालचाल लेने श्रीहित राधा केलि कुंज आश्रम पहुंचे। प्रेमानंद महाराज ने आदरपूर्वक उनका स्वागत किया। काफी देर तक दोनों संतों के बीच धर्म और आध्यात्म को लेकर चर्चा होती रही। कृष्ण चंद्र शास्त्री को स्थानीय लोग ‘ठाकुर जी’ और ‘भागवत भास्कर’ के नाम से जानते हैं। उनका जीवन भक्ति, ज्ञान और सेवा का अद्भुत संगम है।
1 जुलाई, 1960 को वृंदावन के पास लक्ष्मणपुरा गांव में जन्मे ठाकुर जी ने कम उम्र में ही आध्यात्मिक ज्ञान के क्षेत्र में असाधारण ऊंचाई हासिल कर ली। उनके माता-पिता, पंडित राम शरण उपाध्याय और चंद्रावती देवी उपाध्याय, भागवत महाकाव्य के प्रति समर्पित थे और गोसेवा करते थे। दादाजी भूपदेव जी उपाध्याय ने उन्हें रामायण और कृष्ण चरित की कथाएं सुनाकर धार्मिकता की नींव डाली।
मात्र 15 वर्ष में पहला प्रवचन
वृंदावन में अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान, ठाकुर जी को ज्ञानी गुरु स्वामी रामानुजाचार्य महाराज का सान्निध्य मिला। उनके मार्गदर्शन में ठाकुर जी ने व्याकरण और दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की और गीता, रामायण तथा श्रीमद्भागवत जैसे पवित्र शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए उन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में मुंबई शहर में अपना पहला भागवत प्रवचन दिया। अबतक वह 1500 से अधिक कथाएं कर चुके हैं। संस्कृत के विद्वान कृष्ण चंद्र शास्त्री के बेटे इंद्रेश कुमार उपाध्याय भी भागवत कथा करते हैं।
दीक्षा और उपाधि
अपने आध्यात्मिक सफर को आगे बढ़ाते हुए ठाकुर जी ने जगन्नाथ पुरी में स्वामी गरुड़ध्वजाचार्य जी महाराज से वैष्णव संप्रदाय में दीक्षा ग्रहण की। उनके गुरु और शुभचिंतकों ने उन्हें प्रेमपूर्वक ‘ठाकुर जी’ नाम दिया, जबकि विद्वान समाज ने उन्हें ‘भागवत भास्कर’ (भागवत का सूर्य) की उपाधि से सम्मानित किया। उनके विचारों पर स्वामी श्री करपात्रीजी महाराज और मोरारी बापू जैसे कई महान संतों का गहरा प्रभाव रहा है।
सामाजिक और धार्मिक योगदान
ठाकुर जी के मार्गदर्शन में श्री कृष्ण प्रेम संस्थान की स्थापना की गई, जहां छात्रों को भागवत और वेदों की शिक्षा निःशुल्क दी जाती है। इसके साथ ही, संस्थान ने वर्ष 2003 में रामनवमी के शुभ अवसर पर गोशाला की स्थापना कर गोसेवा के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता जाहिर की है। उल्लेखनीय है कि ठाकुर जी ने अब तक 961 सप्ताह से अधिक श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञों का सफलतापूर्वक संचालन करने का गौरव प्राप्त किया है। देश-विदेश में उनके रामायण और गीता के प्रवचन भी लाखों लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।