त्रिलोचन चक्रवर्ती
चिरिमिरी कोरिया, 16 जनवरी। प्राइवेट टावर कंपनियों में काम कर रहे टेक्नीशियन को मानसिक गुलाम बनाकर रखा गया है जहां टावर कंपनी के कर्मचारियों ने बताया कि लगभग सभी जिलों के कर्मचारी अधिकारियों का शोषण के शिकार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक टेक्नीशियन को अनुमान 10 टावर से लेकर 20- 25 टावर तक देखने के लिए 24 घंटे की नौकरी करनी पड़ती है उसके बाद बदले में तनखा के नाम पर किसी टेक्नीशियन को महीने की तनखा 12000 से 17000/- तक का वेतन ही दिया जाता है तथा इन सभी साइट पर अपनी खुद की मोटरसाइकिल का इस्तेमाल टेक्नीशियन द्वारा किया जाता है । जबकि इन टावरों पर पेट्रोल का खर्च महीने में लगभग 5000 तक का खर्च आता है।
कर्मचारियों का कहना है कि सरकार क्यों नहीं प्राइवेट कंपनियों को टेक्निकल कार्य के लिए 8 घंटे का शेड्यूल के हिसाब से काम करवाती है वही टेक्नीशियन का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में टावर बहुत दूर-दूर में लगे होते हैं और उन सभी तक पहुंच तुरंत पाना तत्काल संभव नहीं होता है इसलिए पहले कंपनियों द्वारा गार्ड रखा जाता था जिसके बाद बिना गार्ड के कर दिया गया अब उसकी सारी जिम्मेदारी टेक्नीशियन की होती है टावर के मेंटेनेंस की हालत बहुत दयनीय स्थिति पर पहुंच चुकी है।
टावर में लगने वाला बैटरी बैंक जो कि पहले 3 वर्षों में बदल दिया जाता था अब उसे 5 वर्षों में बदलने का कार्य किया गया है जबकि पहले की अपेक्षा अब आने वाले बैटरी बैंक के गुणवत्ता में काफी कमी आई है उसके बावजूद भी टावर कर्मचारियों पर ऐसे मनमानी रवैया अख्तियार किए जाते हैं। समय रहते यदि इन कर्मचारियों की मुसीबतों और जरूरतों को ध्यान नहीं दिया गया तो एक समय ऐसा आएगा कि टेक्नीशियन मानसिक तनाव की बीमारी से ग्रसित हो जाएंगे टेक्नीशियन का कहना है कि हमें सम्मानजनक तनख्वाह एवं कन्वेस दिया जाए । यदि हमें सम्मानजनक सैलरी तथा कन्वेंस मिले एवं कार्य करने का समय निर्धारित हो जैसा कि भारतवर्ष के सरकारी संस्था तथा संविधान में 8 घंटे की नौकरी ही निहित की गई है उसी प्रकार हमारी भी नौकरी को 8 घंटे करके सम्मानजनक स्थिति में लाने की सरकार कोशिश करें और इन प्राइवेट कंपनियों के ऊपर दिशा निर्देश जारी करें जिससे भारतवर्ष के कर्मचारियों का सम्मान अन्य देशों व अन्य देशों के लिए मिसाल कायम हो सके।