रायपुर। गणेश चतुर्थी का पर्व इस बार एक दिन बाद 31 अगस्त से शुरू होने जा रहा है। गणपति जी को भले ही छप्पन व्यंजन का भोग लगा दिया जाए लेकिन बिना मोदक के वह प्रसन्न नहीं होते हैं। यही वजह है कि गणेश जी की पूजा में मोदक का भोग अर्पित किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि गणपति जी को सिर्फ मोदक ही भोग क्यों लगाएं जाते हैं? आज हम आपको बताते हैं इसकी कथा के बारे में।
पहली कहानी
एक कथा गणेश जी और माता अनुसुइया से जुड़ी हुई है। एक बार गणपति जी माता पार्वती और भगवान शिव के साथ अनुसुइया के घर गए थे। माता अनुसुइया ने सोचा कि पहले गणेश जी को भोजन करा दिया जाए। वह गणेश जी को खाना खिलाती ही जा रहीं थीं पर गणपति की भूख खत्म ही नहीं हो रही थी। अनुसुइया ने सोचा कि कुछ मीठा खिला देती हूं तो शायद गणपति का पेट भर जाए। माता अनुसुइया ने गणेश जी को मोदक का एक टुकड़ा खिला दिया, जिसे खाते ही गणेश जी का पेट भर गया और उन्होंने जोर से डकार ली। इसके बाद भगवान शिव ने जोर-जोर से 21 बार डकार ली। तब से मोदक गणपति का प्रिय व्यंजन कहा जाने लगा।
दूसरी कहानी
कहा जाता है कि भगवान गणेश को मोदक अच्छा लगने की पीछे का कारण है उनका दांत टूटना। जी दरअसल दांत टूटने की वजह से उन्हें कठोर चीजें खाने में बहुत परेशानी होती थी। वहीं मोदक बहुत मुलायम होते हैं और उन्हें खाना बहुत आसान होता है इसलिए गणपति बप्पा मोदक को बहुत पसंद करते हैं। जी दरअसल यही कारण है कि गणेश भगवान को मोदक को भोग लगाया जाता है।
तीसरी कहानी
वैसे गणेश भगवान मोदक को बहुत पसंद करते थे और इसके पीछे की एक और कहानी है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव सो रहे थे और गणेश जी उनकी रखवाली कर रहे थे। इसी दौरान परशुराम वहां पहुंच गए लेकिन गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। ऐसे में परशुराम क्रोधित हुए और इसी बातचीत के दौरान गणेश भगवान का दांत टूट गया। दांत टूटने की वजह से गणेश जी को खाने में दिक्कत होने लगी। इस वजह से उनके लिए मोदक तैयार किए गए और वह उन्हें पसंद आने लगे।