कभी भारत में 5 करोड़ से ज्यादा गिद्ध (Vulture) पाए जाते थे लेकिन 1990 के बाद गिद्धों की संख्या कम होनी शुरू हुई. 1990 के दशक का मध्य आते-आते भारत में गिद्ध लगभग खत्म हो गए. एक्सपर्ट्स ने गिद्धों के खत्म होने के पीछे डाइक्लोफिनेक नाम की एक दवा को सबसे बड़ा जिम्मेदार ठहराया. यह गाय, भैंस और तमाम पशुओं को दी जाने वाली एक सस्ती पेन किलर थी, जो गिद्धों के लिए काल साबित हुई. इस दवा को खाने वाले मृत मवेशी को जब गिद्ध खाते थे, तो उनकी किडनी पर बहुत बुरा असर पड़ता. किडनी फेलियर से मौत हो जाती.98% तक खत्म हो गए 3 प्रजाति के गिद्धडाइक्लोफिनेक के चलते भारत में गिद्ध की 3 प्रजातियों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. इनमें सफेद पंख वाला गिद्ध, भारतीय गिद्ध, लालसर गिद्ध शामिल थे. इनकी संख्या 98 फीसदी तक घट गई.
गिद्धों की गिरती संख्या पर हंगामा मचा तो भारत ने साल 2006 में मवेशियों को दी जाने वाली डाइक्लोफिनेक बैन कर दी. इसके बाद कुछ इलाकों में गिद्धों की संख्या फिर बढ़ने लगी.
गिद्धों से इंसानों की मौत का क्या संबंध?गिद्धों की संख्या और डाइक्लोफिनेक को लेकर लंबे समय से जारी बहस के बीच ‘अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल’ ने एक नया दावा किया है. ताजा स्टडी में कहा है कि भारत में गिद्धों की मौत की वजह से बहुत घातक बैक्टीरिया और इंफेक्शन फैला. इससे साल 2000 से 2005 के बीच 50 लाख (5 मिलियन) लोगों की जान चली गई. स्टडी में यह भी कहा गया है कि गिद्धों के खत्म होने से जो हेल्थ क्राइसिस आई, उस पर 70 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष का नुकसान भी उठाना पड़ा.
किसने की ये स्टडी?अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ वारविक (University of Warwick) के एसोसिएट प्रोफेसर अनंत सुदर्शन और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनवायरमेंटल इकोनॉमिस्ट इयान फ्रेंक ने की है. दोनों ने भारत के 600 जिलों में गिद्धों की संख्या में गिरावट से पहले और बाद में होने वाली मौतों का विश्लेषण किया. स्टडी में पाया कि जिन इलाकों में कभी काफी संख्या में गिद्ध हुआ करते थे और बाद में उनकी संख्या घट गई, वहां इंसानों की मौत का आंकड़ा 4% तक बढ़ गया.
आखिर कैसे हुई 5 लाख लोगों की मौत?स्टडी के मुताबिक साल 2000 से 2005 के बीच हर साल एक लाख लोगों की मौत ऐसी बीमारियों और बैक्टीरिया की वजह से हुई, जिन्हें आमतौर पर गिद्ध पर्यावरण से खत्म कर देते थे. उदाहरण के तौर पर गिद्धों की संख्या घटी तो आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ गई. उनके काटने से बड़े पैमाने पर रेबीज की बीमारी फैली. इसी तरह तमाम पशुओं के अवशेषों को गिद्ध खत्म कर देते थे, लेकिन उनके ना रहने से बैक्टीरिया और इंफेक्शन फैला. इससे भी कई बीमारी फैली और लोग प्रभावित हुए.प्रोफेसर इयान फ्रेंक कहते हैं …
गिद्ध हमारे पर्यावरण को साफ-सुथरा रखते हैं. किसी बीमारी या बैक्टीरिया के चलते मरने वाले पशुओं को पर्यावरण से हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. गिद्धों की संख्या घटने से बीमारी फैलना स्वभाविक है.अब क्या हैं हालात?साल 2000 के बाद भारत में गिद्धों को बचाने के लिए तमाम उपाय किए गए. कई संरक्षित इलाकों में गिद्धों को पाला जा रहा है. अलग-अलग इलाकों से गिद्धों को पश्चिम बंगाल के टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया है और वहां इनकी संख्या बढ़ती दिख रही है. हाल ही में हुए एक सर्वे में दक्षिण भारत में 300 से ज्यादा गिद्ध पाए गए हैं. दूसरे इलाकों में भी इनकी संख्या बढ़ रही है, लेकिन अभी भी ये रेड जोन में हैं.