रीवा/एक ओर जहां मध्य प्रदेश में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में प्रकोप कम हो रहा है वहीं रीवा जिले में बाढ़ आने का खतरा बढ़ने लगा बीते दो दिन से अनवरत बारिश हो रही है एक बार फिर बाढ़ आने का माहौल बनता नजर आ रहा रीवा में उस लेवल का बाढ़ का दबाव नहीं होता जितना देश के अन्य राज्य में देखने को मिलता है जब रीवा में बाढ़ आती है तो तबाही का मंजर देखा नहीं जाता रीवा शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में भरने वाला बाढ़ का पानी कोई प्राकतिक आपदा नहीं है,जब डूब मचती है तो उसका कारण सिर्फ और सिर्फ कृतिम आपदा मानव निर्मित बाढ़ होती है आइए जानते हैं कैसे?
वर्ष 2016 और 2017 में एक के बाद एक दो वर्ष लगातार रीवा जिले को बाढ़ का सामना करना पड़ा जिसके बाद यहां के सेवा निवृत इंजीनियर्स ने रीवा में होने वाली बाढ़ के प्रमुख कारणों को बारीकी से अध्ययन कर कुदरत के कहर को बड़ी शिद्धत से समझा उन इंजीनियर्स ने 600 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की लेकिन यहां के अड़ियल प्रशासन और सरकार ने इंजीनियर्स की मेहनत को ज़रा सी भी तवज्जो नहीं दिया।
क्या था उस रिपोर्ट में ?
एक्सपर्ट्स इंजीनियर की बनाई 600 पन्नों की रिपोर्ट में बताया गया था कि रीवा से गुजरने वाली नदी बिछिया और बीहर का ज्यादा से ज्यादा बहाव 3747, 3422, 3415 और 1466 घनमीटर है.नदियों में पानी तो पर्याप्त आता है लेकिन नदियों के ऊपर बने पुलों के डिज़ाइन की वजह से प्रवाह उतनी मात्रा में नहीं होता जितना होना चाहिए।
रीवा में बाढ़ की तबाही क्यों आती है?
(Why Rewa Floods): रिपोर्ट में बताया गया था कि रीवा सिटी का बिछिया पुल हमेषा खतरे के निशान में ही रहेगा, जब-जब यहां तेज बारिश होगी तो पानी खतरे के निशान के ऊपर पहुंच ही जाएगा।
समाधान- इंजीनियर्स का दिया सुझाव
बिछिया पुल की ऊंचाई बढ़ाने की जरूरत है और पिलर के बीच के गैप को और बढ़ाना चाहिए।
बिहर बराज का पानी बाढ़ की वजह
रीवा शहर में दो प्रमुख नदियां हैं बिछिया और बीहर, इन नदियों का पानी बिहर बराज बांध में जाता है. बांध में पानी रोक दिया जाता है जिससे नदी का बहाव उल्टा हो जाता है. और गांव-शहर में पानी प्रवेश करने लगता है।
समाधान- रिपोर्ट में कहा गया था कि बैराज के संचालकों के लिए एक प्रोटोकॉल होना चाहिए,जैसे ही पानी का स्तर बढ़ने लगे वैसे ही धीरे-धीरे पानी छोड़ते रहना चाहिए
रेड ज़ोन एरिया चिन्हित नहीं किए
नगर निगम और आपदा प्रबंधन बाढ़ के मामले में सिर्फ एक काम करता है पुरानी नाव और दो-चार लाइफ जैकेट की व्यवस्था कर अधिकारीयों को कागजी रूप से ड्यूटी निर्धारित कर देता है जो करना चाहिए वो इनके बस में है ही नहीं।
रिपोर्ट में कहा गया था कि RMC और आपदा प्रबंधन को शहर और गांव से गुजरने वाली नदी-नालों में खतरे का निशान वाले लेवल को चिन्हित करना चाहिए, 2016 की बाढ़ के बाद RMC ने कुछ स्थानों में ऐसा किया था. लेकिन इस करवाई को नदियों के किनारे और पुलों के पास अनिवार्य रूप से हर साल आई बाढ़ के स्तर को चिन्हित करना चाहिए।
अतिक्रमण सबसे बड़ा कारण
रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों ने अपने घर नालों के ऊपर बना दिए हैं. वहीं ग्रेन बेल्ट में भी एक कतार से घर बना दिए गए हैं. अमहिया क्षेत्र में सबसे ज़्यादा मकान नालों को दबाकर बनाए गए हैं. जहां थोड़ी सी बारिश में बाढ़ के हालात बन जाते हैं.
सुझाव- शहर में इंटर्नल ड्रेनेज सिस्टम को स्थानीय मोहल्लों में स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज की क्षमता लेवल और जल निकासी पर ध्यान देना चाहिए। बिहर बिछिया के कैचमेंट एरिया में वनीकरण होना चाहिए। जल संरक्षण होना चाहिए। शहर के ग्रीन बेल्ट में अतिक्रमण हटाकर वृक्षारोपण करना चाहिए।
रीवा में बाढ़ का कारण प्राकर्तिक नहीं कृतिम है
रियायार्ड जल संसाधन एसआई डॉ एनपी मिश्रा ने बताया था कि रीवा में बाढ़ का कारण प्राकर्तिक नहीं मानव निर्मित है हर बार शहरी क्षेत्र में इसी लिए बाढ़ जैसे हालात बनते हैं क्योंकि कभी गंभीरता से समस्या का समाधान करने के लिए प्रयास नहीं किए गए। 20 करोड़ के स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज सिस्टम को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया,उधर सैकड़ों करोड़ के एसटीपी प्रोजेक्ट का बंटाधार हो गया.