रायपुर:- राजधानी रायपुर के रहने वाले प्रगतिशील किसान मोहन वर्ल्यानी खपरी गांव में 10 एकड़ एरिया में बम्बुसा बालकोआ बांस की खेती कर रहे हैं. इस प्रजाति के बांस की खूबियों के बारे में बताते हुए उन्होंने दूसरे किसानों को भी बम्बुसा बालकोआ बांस की खेती की सलाह दी है. वे कहते हैं कि दूसरे किसी भी फसल में बीज बोने से लेकर उसका उत्पादन पाने तक कई प्रकार के काम रहते हैं लेकिन बम्बुसा बालकोआ बांस की खेती ऐसी है जिसे एक बार रोपण करने के बाद 50 से 70 साल तक उत्पादन ले सकते हैं. मोहन वर्ल्यानी बताते हैं कि इसे लगाकर प्रति एकड़ 1 साल में 3 से 4 लाख रुपए का मुनाफा कमाया जा सकता है.
बम्बुसा बालकोआ बांस क्या है: बम्बुसा बालकोआ बांस एक उष्णकटिबंधीय झुरमुटदार बांस की प्रजाति है, जिसे भीमा बांस के नाम से भी जाना जाता है. यह बांग्लादेश और श्रीलंका में ज्यादा पाया जाता है. मजबूती, उच्च बायोमास उत्पादन और ज्यादा ऑक्सीजन देने के लिए ये प्रसिद्ध है. बम्बुसा बालकोआ बांस में बायोमास ज्यादा होता है. इससे एथेनॉल, सीएनजी बनती है. पेपर मिल में भी इसका उपयोग होता है. इसकी इंडस्ट्रियल ग्रोथ अच्छी है. इसके अलावा फर्नीचर, आभूषण और सौंदर्य प्रसाधन के लिए भी इसका उपयोग होता है. बांस के कपड़े भी अब मार्केट में आने लगे हैं. बम्बुसा बालकोआ बांस दूसरे पौधे की तुलना में 35 प्रतिशत ज्यादा ऑक्सीजन देता है.
क्रैश बैरियर में बम्बुसा बालकोआ बांस का इस्तेमाल: बम्बुसा बालकोआ बांस का पहली बार इस्तेमाल महाराष्ट्र में चंद्रपुर और यवतमाल को जोड़ने वाले 200 मीटर हाइवे में क्रैश बैरियर के लिए किया गया था. जिसकी तारीफ केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी की थी. बम्बुसा बालकोआ बांस से बने इस क्रैश बैरियर को बाहू बल्ली नाम दिया गया था.
5 साल में मिलने लगेगा उत्पादन: बम्बुसा बालकोआ बांस के इतने फायदों के बारे में जानकर मोहन वर्ल्यानी ने ढाई साल पहले मुख्यमंत्री बांस विकास योजना के साथ ही वन विभाग से जानकारी हासिल की और रायपुर से लगे खपरी गांव में 10 एकड़ जमीन पर प्रति एकड़ हजार बांस के पौधे लगाए. इस समय बांस की हाइट लगभग 12 से 15 फीट तक पहुंच गई है. मोहन वर्ल्यानी बताते हैं कि 5 साल होने के बाद बांस की कटाई की जा सकती है. उन्होंने बताया कि कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी को देखते हुए बम्बुसा बांस की खेती का आइडिया उन्हें आया और फिर इस पर काम शुरू किया.
ऐसे शुरू की बांस की खेती: हालांकि ये सब उतना आसान नहीं था. देश के अलग-अलग राज्यों जिनमें गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश जाकर किसानों से मुलाकात की. बांस की प्रजातियों को समझा और बांस से बने उत्पादों और उनसे मिलने वाले फायदे के बारे में जानकारी ली. इसके बाजार की उपलब्धता के बारे में जाना. उनके बाद बांस की खेती शुरू की.
बम्बुसा बालकोआ बांस की प्रजाति के अलावा देहरादून से 51 प्रजाति के बांस के पौधे लाए थे. इसमें से कुछ प्रजाति छत्तीसगढ़ के मौसम को झेल नहीं पाए, कुछ अभी भी लगे हुए हैं. बांस की खेती करने के लिए किसान मोहन वर्ल्यानी ने दूसरे किसानों को भी प्रेरित किया. बैंबू फाउंडेशन का निर्माण कर किसानों को बांस की खेती करने के लिए जागरूक और प्रेरित किया. वे बताते हैं कि मुंगेली, कवर्धा, बेमेतरा, भिलाई और रायपुर जैसे शहरों में किसानों को बांस रोपण भी कराया. बांस की खेती करके कुछ किसान खुश भी हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार बांस की खेती के लिए करे जागरूक: बम्बुसा बालकोआ बांस की प्रजाति को लगाकर प्रदेश के किसान प्रति एकड़ 1 साल में 3 से 4 लाख रुपए का मुनाफा कमा सकते हैं. मोहन वर्ल्यानी का कहना है कि किसानों को बांस की खेती के लिए जागरूक करने सरकार को भी कदम उठाने की जरूरत है. वे कहते हैं कि इंडस्ट्री का कहना है कि उन्हें माल चाहिए और किसान चाहता है इंडस्ट्री होनी चाहिए. जब तक इंडस्ट्री और किसान के बीच की कड़ी मजबूत नहीं होगी तब तक बांस का अधिक उत्पादन छत्तीसगढ़ में संभव नहीं है. ऐसे में प्रदेश की सरकार को सोचने की जरूरत है. छत्तीसगढ़ में इंडस्ट्री तभी आ सकती हैं जब उसे यहां पर जरूरत के मुताबिक कच्चा माल मिलेगा.