पटना बिहार भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष कैलाशपति मिश्र की जन्मशताब्दी समारोह में कहा कि बीजेपी अब किसी को कंधे पर नहीं बैठाएगी। अब पार्टी अपने दम पर सरकार बनाएगी। जे पी नड्डा के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। बिहार, ओडिशा, पंजाब, महाराष्ट्र में एनडीए के पुराने सहयोगियों के तेवर देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सबक लिया है। 1996 के बाद से इन राज्यों में बीजेपी ने गठबंधन के सत्ता में आने के बाद सहयोगी दलों को ड्राइविंग सीट पर बैठाया और खुद बैकसीट पर रही। बिहार में समता पार्टी के नीतीश कुमार, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल, महाराष्ट्र में शिवसेना और ओडिशा में बीजेडी के मुख्यमंत्री बने। मगर दो दशक में सहयोगी दलों ने अलग-अलग मुद्दे पर बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर दिया। जब बीजेपी ने गठबंधन की अगुवाई का दावा किया तो इन दलों ने रिश्ते तोड़ दिए। अब बीजेपी गठबंधन के सहयोगियों से सीटों के आधार के पार तोल-मोल करेगी।
2009 में बीजेडी ने दिया था बीजेपी को पहला झटका
गठबंधन की राजनीति में सबसे पहला झटका ओडिशा में बीजू जनता दल ने दिया। 1997 में बीजू जनता दल के गठन में बीजेपी की बड़ी भूमिका रही। नवीन पटनायक को ओडिशा में नेतृत्व सौंपने के लिए बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने भी मेहनत की। 1998 से 2009 तक नवीन पटनायक केंद्र और राज्य में एनडीए का हिस्सा रहे। श्रीकांत जेना और दिलीप रे जैसे नेता केंद्र और राज्य के बीच महत्वपूर्ण कड़ी बने। 2004 में बीजेपी लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई। इसके बाद से ही नवीन पटनायक ने बीजेपी को दरकिनार करना शुरू किया। राज्य में बीजेपी-बीजेडी की सरकार चलती रही। तब तक बीजू जनता दल ने ओडिशा में पकड़ मजबूत कर ली। अचानक 2009 में बीजेडी ने बीजेपी को झटका देते हुए एकतरफा गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी। इसके बाद से बीजेपी ओडिशा में विपक्ष में चली गई।
मोदी युग शुरु होते ही नीतीश कुमार ने 2013 में मारी पलटी
लालू यादव से नाराज नीतीश कुमार और जार्ज फर्नांडीस ने समता पार्टी बनाई। एकीकृत बिहार में तब 324 सीटें हुआ करती थी। 2000 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी 124 सीट लेकर बड़ी पार्टी बनी, मगर उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला। बीजेपी को तब 67 और समता पार्टी को 34 सीटें मिली थीं। केंद्र में 13 दिन की सरकार से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को 1998 और 1999 में सहानुभूति के वोट मिले थे। बीजेपी और समता पार्टी ने बहुमत नहीं होते हुए भी सरकार बनाने का दावा कर दिया। बीजेपी ने ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम पद की शपथ दिलाई। इसका असर 2005 के चुनावों में दिखा। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला। 2013 में नरेंद्र मोदी के पीएम कैंडिडेट बनते ही जेडी यू ने बीजेपी से रिश्ता तोड़कर आरजेडी से हाथ मिला लिया। 2017 में दोनों दोबारा मिले मगर उनका दिल नहीं मिला। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद दूसरी बार नीतीश कुमार और बीजेपी का रिश्ता टूट गया। बीजेपी ने इसे नीतीश कुमार का छल बताया।
सत्ता के सवाल पर महाराष्ट्र में शिवसेना से रिश्ता टूटा
1989 में राम मंदिर आंदोलन के दौर में महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना पहली बार साथ आई। बीजेपी नेता प्रमोद महाजन और शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने इस गठबंधन को बीएमसी चुनाव से लोकसभा चुनाव तक लेकर गए। पहले शिवसेना ने महाराष्ट्र में ड्राइविंग सीट संभाली। शिवसेना के मनोहर जोशी और नारायण राणे सीएम बनाए गए। बीजेपी के नेता मंत्री पद से संतोष करते रहे। 2014 में मोदी युग में हालात बदल गए। बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिलीं। बीजेपी ने नेतृत्व का दावा ठोक दिया और देवेंद्र फड़नवीस मुख्यमंत्री बने। एनसीपी के डर से तब शिवसेना आधे मन से सरकार में शामिल हुई। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने 163 सीटें जीतीं। बीजेपी को 106 और शिवसेना को 57 सीटें मिलीं। इस बार शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने सीएम पद पर दावा ठोंक दिया। बीजेपी ड्राइविंग सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई और 30 साल का गठबंधन टूट गया।
चुनाव हारते ही अकाली दल ने पंजाब में छोड़ा साथ
पंजाब में शिवसेना अकाली दल के बीच 1996 में ही गठबंधन हुआ था। अकाली दल, समता पार्टी और शिवसेना ऐसी पार्टियां थीं, जिसने केंद्र में अटल बिहारी की 13 दिनों की सरकार का समर्थन किया था। पंजाब में बीजेपी ने अकाली दल को बड़ा भाई का दर्जा दिया। इसके बाद प्रकाश सिंह बादल पंजाब में एनडीए का नेतृत्व करते रहे। दोनों दलों में खटास उस शुरू हुई, जब उनका गठबंधन 2017 में चुनाव हार गया। केंद्र में अकाली दल मोदी सरकार में शामिल भी हुई। फिर कृषि कानून के मुद्दे पर अकाली दल बीजेपी से अलग हो गई। इसके बाद दोनों दलों के बीच तीखे हमले भी हुए।
 
		