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    स्पेस में अंतरिक्ष यान या सैटेलाइट को आपस में जोड़ना हुआ बेहद आसान जानिए ISRO की ‘स्पैडेक्स’ तकनीक कैसे करती है काम…

    By adminJanuary 2, 2025No Comments3 Mins Read
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    नई दिल्ली:– हर रोज टेक्नोलॉजी की दुनिया में कुछ नया प्रयोग हो रहा है। इस बदलते टोक्नोलॉजी के दौर में ISRO ने एक नई तकनीक को डेवलप की है। ISRO जिस नई तकनीक को तकनीक को डेवलप की की है, उसका नाम है ‘स्पैडेक्स’। ऐसे में आज के एक्सप्लेनर में हम जानेंगे कि ‘स्पैडेक्स’ तकनीक कैसे काम करती है और इससे ISRO को क्या फायदा होगा, तो इसके लिए पढ़ते जाइए इस एक्सप्लेनर को अंत तक।

    दरअसल, ISRO ने बीते 30 दिसंबर 2024 को ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ यानी स्पैडेक्स स्पेसक्राफ्ट की सफल लॉन्चिंग करके नया इतिहास रच दिया। डॉकिंग तकनीक के जरिए इसरो अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ने का काम करेगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि इससे पहले अंतरिक्ष में ये काम अब तक रूस, अमेरिका और चीन ही कर पाए हैं।

    स्पेस में अंतरिक्ष यान या सैटेलाइट को जोड़ने का होगा काम
    आने वाले दिनों में इसरो के साइंटिस्ट पीएसएलवी-सी60 के जरिए छोड़े गए दोनों यानों की बीच की दूरी कम करके अंतरिक्ष में उन्हें पास लाकर डॉक करेंगे। मतलब स्पेस में दोनों अंतरिक्ष यान या सैटेलाइट को जोड़ने का काम करेंगे। भारत का अंतरिक्ष में ये बड़ा प्रयोग है। दो स्पेसक्राफ्ट को एक ही रॉकेट से छोड़ा गया है। अब वह अंतरिक्ष में उनको पास लाकर डॉक करेगा यानी की जोड़ेगा। फिर अलग करके दूर ले जाने का काम करेगा। इसी जोड़ने और अलग करने की प्रक्रिया को डॉकिंग और अनडॉकिंग कहा जाता है।

    क्या है स्पैडेक्स?
    स्पाडैक्स (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट) एक टेक्नोलॉजी ड्रिवेन मिशन है जिसे इसरो द्वारा अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन करने के लिए डेवलपर किया गया है। इसरो के इस मिशन का उद्देश्य दो छोटे अंतरिक्ष यान या सैटेलाइट को एक साथ लाने यानी की डॉक करने और अलग करने यानी की अनडॉक करने की क्षमता का प्रदर्शन करना है। स्पैडेक्स का प्राथमिक लक्ष्य, पृथ्वी की निचली कक्षा में दो छोटे अंतरिक्ष यान, SDX01 (चेजर) और SDX02 (टारगेट) के लिए डॉकिंग टेक्नोलॉजी डेवलपर करना है। इस तकनीक में हाईटेक सेसिंग और प्रोपल्सन सिस्टम का उपयोग किया गया है, जो स्वायत्त रूप से डॉकिंग करने का काम करेगा। आपको जानकारी के लिए बता दें, कि इसरो का ये मिशन दो साल तक चलने वाला है।

    किस काम आएगी डॉकिंग अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी?
    डॉकिंग अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी का प्रयोग भारत के चंद्रयान-4 मिशन में किया जाएगा। इसी तकनीक का इस्तेमाल भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को बनाने में किया जाएगा। धरती से कई मॉड्यूल्स को ले जाकर अंतरिक्ष में जोड़ने का काम किया जाएगा। भारतीय को चांद पर भेजने और वापस लाने में भी डॉकिंग और अनडॉकिंग एक्सपेरिमेंट की जरूरत पड़ेगी। यह भविष्य में स्पेस रोबोटिक्स जैसे प्रयोगों में अहम भूमिका निभा सकता है।

    कब होगी डॉकिंग अनडॉकिंग प्रक्रिया?
    अब आपके मन में ये सवाल चल रहे होंगे कि यह डॉकिंग अनडॉकिंग प्रक्रिया कब किया जएगा, तो आपको जानकारी के लिए बताते चलें कि यह प्रॉसेस बाते साल 30 दिसंबर 2024 को लॉन्च होने के करीब 10 से 14 दिनों बाद होने की उम्मीद है।‘डॉकिंग’ और ‘अनडॉकिंग’ प्रयोगों के प्रदर्शन के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट सैटेलाइट्स दो साल तक अलग मिशन के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करना जारी रखेंगे। एसडीएक्स-एक उपग्रह हाई रेजोल्यूशन कैमरा से लैस है और एसडीएक्स-दो में दो पेलोड मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर

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