जगदलपुर, 28 मार्च। भेजापदर से लेकर चित्रकोट तक के बीच बने एनीकट, वहां की समस्याओं, संबंधित रिपोर्ट बनाने
कोरोना काल में भी सोशल डिस्टेंस के साथ साथ सक्रिय रहते हुए महीनों की मेहनत से बनी रिपोर्ट, जो कि बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती के लिए तैयार की।
अभियान के सदस्यों ने भेजापदर से चित्रकोट तक इंद्रावती पर बने दसों एनीकेट का मौक़े पर जाकर मुआयना किया। वस्तु स्थिति देखी और ग्रामवासीयों से भी चर्चा की। सारा सचित्र विवरण एक दस्तावेज के रूप में सहेजा है हमने।
अभियान की ओर से सुझाव भी दिए हैं ताकि हमारी इंद्रावती सदा निरा रहे। इसे एक पुस्तिका के रूप में तैयार कर आज की विशेष बैठक में अभियान की ओर से बस्तर कलेक्टर श्री बंसल जी को सौंपा। साथ ही पर्यावरण की बेहतरी के लिए विभिन्न सुझाव भी मांगे गए जिसपर इंद्रावती बचाओ अभियान के सदस्यों ने कई उपयोगी सुझाव रखे, जिन्हें कलेक्टर रजत बसल ने सहर्ष स्वीकारते हुए संबंधित अधिकारियों को तत्काल कार्य योजना बनाकर जल संरक्षण व पौधरोपण की दिशा में गंभीरता से कार्य करने निर्देशित किए है।

गत 22 मार्च को कलेक्ट्रेट में विश्व जल दिवस मनाने बैठक रखी गई थी परंतु क़ोरोना प्रोटोकाल के कारण से स्थगित कर दिया गया था। आज यह संगोष्ठी शनिवार दोपहर 12 बजे प्रेरणा हाल में प्रारंभ हुई। जिसमें लगभग सभी प्रमुख विभागों के अधिकारी मौजूद रहे।
बैठक में जिलाधीश रजत बंसल, पद्मश्री धर्मपाल सैनी और जिला पंचायत के सीईओ सी. इंद्रजीत की उपस्थिति में इंद्रावती बचाओ अभियान के किशोर पारख ने बताया कि अभियान की टीम इंद्रावती में बनाए गए विभिन्न एनीकेटों का अवलोकन किया। यहां अनेक खामियां पाई गई। उन्होंने सभी एनिकेट को आवश्यकतानुसार व्यवस्थित करने और एनिक़ेट तथा नदी के विभिन्न मोड में बने रेत टीलों को बरसात के पहले हटाने का सुझाव रखा।
बैठक में अभियान के दशरथ कश्यप ने टेकामेटा ऑक्सीजोन में बनाए गए तालाब को इंद्रावती के जल से भरने तथा जोन को पक्षी विहार के रूप में विकसित करने का सुझाव रखा।अभियान के सदस्य हेमंत कश्यप ने सुझाव रखा कि इंद्रावती नदी में सहायक नदी और नालों से पानी आता है साथ ही बस्तर जिले में ऐसे कई जलकुंड है जहां भूगर्भ से पानी स्वत: निकलकर नदी – नालों के माध्यम से इंद्रावती में आता है।

ऐसे जलकुंड घाट पदमूर, मारेंगा, चित्रधारा, मधोता, चपका, कुम्हरावंड, ढुरकाबेड़ा, साल्हेपाल, तोएकोंगेरा आदि स्थानों में हैं, ऐसे प्राकृतिक जलकुंडों को संरक्षित कर जल स्रोतों को बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए। अभियान के सक्रिय सदस्य संपत झा ने इंद्रावती नदी किनारे गोरिया बहार नाला से लेकर आसना तक तेजी से हो रहे निर्माण कार्यों को रोकने तथा निचली बस्तियों को बाढ़ से बचाने नदी किनारे व निचले क्षेत्रों में निर्माणों को तत्काल रोकने की बात उठाई साथ ही शहर के ड्रेनेज व्यवस्था सुधारने का निवेदन किया । इंद्रावती बचाओ अभियान के संयोजक पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने पौधरोपण के तहत विभिन्न स्थानों पर फलदार पौधों के रोपण, जल संरक्षण को प्राथमिकता देने की बात दोहराई जनजागरण पर जोर देने की बात की ।
सभी सुझावों को सुनने के बाद जिलाधीश महोदय ने जल संसाधन, जिला पंचायत, वन, कृषि, आर ई एस, पीएचई, माइनिंग आदि विभागों के अधिकारियों को उपरोक्त मुद्दों पर 10 अप्रैल तक कार्य योजना बनाने तथा 16 अप्रैल की बैठक में प्रोजेक्ट लाने निर्देशित किये।