नई दिल्ली:- 26 जनवरी की शाम राजभवन में हुए कार्यक्रम में नीतीश कुमार तो नज़र आए मगर तेजस्वी यादव की कुर्सी ख़ाली रही.
नीतीश से जब पूछा गया कि तेजस्वी क्यों नहीं आए तो वो बोले- जो नहीं आया है, उनसे पूछिए.
इसके दो दिन बाद जब जेडीयू-आरजेडी सरकार ख़त्म करने का एलान करने नीतीश कुमार मीडिया के सामने आए तो सबको लगा कि अब तेजस्वी से उनके मतभेद खुलकर सामने आएंगे.
मगर नीतीश कुमार ने बस इतना कहा- सब ठीक नहीं चल रहा था तो हमने सरकार ख़त्म कर दी.
नीतीश कुमार तेजस्वी यादव या आरजेडी पर आक्रामक नहीं दिखे.
नीतीश से राहें अलग होने के बाद जब तेजस्वी यादव का वीडियो बयान मीडिया के सामने आया, तब वो भी नीतीश कुमार का नाम लिए बिना जेडीयू पर बहुत नहीं आक्रामक दिखे.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी बिहार में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ दाखिल हुए तो अपने कार्यक्रम में नीतीश कुमार पर कुछ नहीं बोले. हालांकि उन्होंने बीजेपी को जमकर निशाने पर लिया.
ऐसे में सवाल ये है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने आरजेडी और इंडिया गठबंधन के मद्देनज़र कांग्रेस से जो दूरियां बनाईं और जो चुप्पियां अहम नेताओं की ओर से बरती जा रही हैं, क्या इन्हीं चुप्पियों में भविष्य की सियासी संभावनाएं छिपी हुई है।
ईस कहानी में इसी सवाल का जवाबतलाशने की कोशिश करते हैं
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के पूर्व प्रोफ़ेसर और पूर्व डीन पुष्पेंद्र सिंह ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”नीतीश कुमार किसी का भी साथ छोड़ सकते हैं, किसी के भी साथ आ सकते हैं. सभी ने उनके इस चरित्र को समझ लिया है. कोई भी उन पर हमलावर क्यों होगा? सबको लगता है कि उनकी ज़रूरत पड़ी तो वो फिर वापस आ सकते हैं.”
प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र सिंह बोले, ”नीतीश कुमार ने भी बहुत तीखे हमले नहीं किए. बहुत स्पष्ट रूप से आरोप नहीं लगाए हैं. उन्होंने चलताऊ तर्क दिया कि काम करना मुश्किल हो रहा था. जैसा नीतीश का चरित्र है, उन्होंने भी सोच समझकर रास्ते खुले रखे हैं. बाक़ी पार्टियों ने भी नीतीश को समझ लिया है कि ये आदमी अपने लाभ के लिए आकलन करता है कि उसे कब कहां होना चाहिए. उसे कभी इस बात से परहेज़ नहीं है कि लोग क्या सोचेंगे, राजनीतिक नैतिकता को लेकर क्या होगा, नैतिक पैमाने पर उनको कैसे कसा जाएगा, नीतीश को इस बात की चिंता नहीं है. वो सर्वाइवर हैं.”
नीतीश कुमार ने जब एनडीए का साथ छोड़ा था और आरजेडी के साथ सरकार में आ गए थे तब बीजेपी उन पर हमलावर रही थी.
अमित शाह ने कहा था, ”नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.”
बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा था कि जब तक वो नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर नहीं कर देंगे, तब तक पगड़ी नहीं खोलेंगे.
अब सम्राट चौधरी ने पगड़ी पहने हुए नीतीश कुमार के साथ मंत्री पद की शपथ ली और डिप्टी सीएम बनकर नीतीश के साथ सरकार में हैं.
नीतीश कुमार ने भी कहा था कि मर जाएंगे, मगर बीजेपी में लौटना पसंद नहीं करेंगे.
इससे ठीक विपरीत नीतीश कुमार ने हाल ही में जब पाला बदला तो राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने नीतीश पर वैसी आक्रामकता नहीं बरती, जैसी बीजेपी ने 2022 में बरती थी.
तेजस्वी यादव जेडीयू पर बोले, ”अभी तो खेल शुरू हुआ है, खेल अभी बाक़ी है. मैं जो कहता हूं वो करता हूं, आप लिख कर ले लीजिए जनता दल यूनाइटेड 2024 में खत्म हो जाएगी. एक थके हुए मुख्यमंत्री से हमने काम करवाया.”
तेजस्वी अपने बयान में उपलब्धियों को गिनाते और बीजेपी-जेडीयू की अतीत की सरकार पर हमला बोलते दिखे.पाला बदलने पर तेजस्वी खुलकर नीतीश का नाम लिए बगैर ही आक्रामक नज़र आए.
पुष्पेंद्र सिंह ने कहा, ”इस मामले में कहा जा सकता है कि आरजेडी और कांग्रेस थोड़ा शालीन हैं. कम से कम तेजस्वी यादव शालीन हैं कि उन्होंने नीतीश पर हमला करके अपमानित करने की कोशिश नहीं की है.”
आंकड़े किस ओर इशारा करते हैं?
नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ 2013 में भी छोड़ा था. तब कांग्रेस, सीपीआई के समर्थन से नीतीश सत्ता में बने रहे थे.
2014 लोकसभा चुनावों में जेडीयू बीजेपी के बिना चुनावी मैदान में थी और सिर्फ दो सीटें जीत सकी थी.
2014 चुनाव में बीजेपी 22, कांग्रेस 2, लोक जनशक्ति पार्टी 6, आरजेडी 4 सीटें जीत पाई थी.
2015 में बिहार के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 71 सीटें मिली थीं. आरजेडी को 80 सीटें मिली थीं. वहीं बीजेपी 53 सीटों को जीतने में सफल रही थी.
2017 में नीतीश कुमार ने फिर से आरजेडी का हाथ छोड़कर एनडीए का हाथ थामा.
2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ लड़कर जेडीयू 16 सीटें जीतने में सफल रही थी. बीजेपी ने भी 17 सीटें जीती थीं.
यानी 2014 लोकसभा चुनाव में जेडीयू अकेले लड़कर बस दो सीटें जीत सकी थी, वहीं बीजेपी के साथ 2019 चुनाव में आने पर नीतीश कुमार 16 सीटें जीत पाए.
2020 विधानसभा चुनाव में जेडीयू 43, बीजेपी 74 और आरजेडी 75 सीटें जीत सकी थी. सरकार बीजेपी-जेडीयू की बनी. मगर 2022 में नीतीश कुमार पाला बदलकर फिर तेजस्वी के साथ आए और अब लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के साथ चले गए हैं.जानकारों का अनुमान है कि नीतीश कुमार की नई चाल भी लोकसभा चुनावों में फ़ायदा लेने की है.