रायपुर:- सदियों पहले प्रदेश की राजधानी रायपुर को लोग रइपुर के नाम से जानते थे. रायपुर प्राचीन और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी महत्व रखता था. यह धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण का केंद्र भी रहा है. प्रदेश की राजधानी जिसे लोग वर्तमान समय में रायपुर के नाम से जानते हैं. यहां पर नगर पालिका का संचालन सन 1867 में हुआ था. उस समय ब्रिटिश शासन काल था.
इतिहासकार डॉक्टर रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं “सदियों पहले रायपुर को लोग रइपुर के नाम से जानते थे. 1402 में जो शिलालेख मिले, उसके आधार पर यह रायपुर के कलचुरी राजाओं की राजधानी के रूप में विकसित हुई. तब से लेकर आज तक काफी कुछ बदलाव हुए हैं. राजनीतिक दृष्टिकोण और प्रशासन का यह केंद्र रहा. कालांतर में सन 1818 और 1830 के बीच में ब्रिटिश संरक्षण काल रहा. जिसमें तीसरे राजा के रूप में नागपुर के रघु जी भोसले थे. साल 1818 में राजाओं की राजधानी रतनपुर हुआ करती थी, वहां से मुख्यालय हटाकर रायपुर में स्थापित किया गया.मुख्यालय रायपुर आने के बाद राजकुमार कॉलेज के आसपास का एरिया रायपुर के बूढ़ा तालाब के पास एक पुराना किला भी राजाओं का हुआ करता था. 1853 में अंग्रेजी राज स्थापित हुआ. कलेक्ट्रेट तहसील और सेंट्रल जेल जैसे भवन का निर्माण कराया गया था जो शिक्षा का केंद्र के रूप में विकसित हुआ.
रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं “छत्तीसगढ़ में 14 राजवाड़े हुआ करते थे. इन सभी का मुख्यालय रायपुर हुआ करता था. अंग्रेज अधिकारी बैठकर शासन करते रहे. डिप्टी कमिश्नर प्रमुख अधिकारी कहलाता था. जॉर्ज इलियट पहले डिप्टी कमिश्नर हुआ. उस समय 1857 की क्रांति हुई थी. सन 1867 में रायपुर को नगर पालिका का दर्जा मिला. इसके बाद उसे विकसित किया गया. उस समय भूतनाथ डे के एक बहुत बड़े वकील हुआ करते थे, जो नगर पालिका के प्रथम अध्यक्ष के रूप में थे. इसी डे भवन में विवेकानंद जी अपने परिवार के साथ 2 साल गुजारे थे.
इतिहासकार डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र ने आगे बताया आगे चलकर रायपुर आजादी की लड़ाई में कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना योगदान दिया. जिसमें पंडित रविशंकर शुक्ल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, वामन राव लाखे जैसे सभी लोग नगर पालिका से जुड़े हुए थे. सभी लोग आजादी की लड़ाई में मुख्य भूमिका निभाई थी. आजादी के बाद आगे चलकर 1980 में रायपुर नगर निगम हुआ. जिसके बाद से रायपुर का विकास लगातार हो रहा है. यह शहर सदियों पहले जैसा था वैसा अब नहीं दिखता.
मिश्र कहते हैं कि रायपुर में साल 1854 में पूरी तरह से अंग्रेज शासन काल था, जो आजादी की लड़ाई तक सन 1947 तक चला. प्राचीन रायपुर की पहचान राजनादगांव के राजा महंत घासीदास ने एक म्यूजियम बनाया था, जिसका नाम महंत घासीदास संग्रहालय था जो आज भी घड़ी चौक के पास स्थित है. प्राचीन समय में इसे अष्टकोणी भवन के नाम से जानते थे. इसके साथ ही रायपुर में सन 1882 में राजकुमार कॉलेज की स्थापना की गई थी. राजवाड़े और जमीदारों का केंद्र होने के कारण बच्चे यहां पर आकर पढ़ाई किया करते थे. अपने समय राजकुमार कॉलेज भी एक अलग पहचान रखता था. नगर पालिका के विद्यालयों में बात करें तो माधव राव सप्रे स्कूल जिसकी नींव सन 1913- 14 में रखी गई थी.
नगर पालिका के कुछ अवशेष आज भी रायपुर में देखने को मिलते हैं. इस नगर पालिका की पुरानी और जर्जर बिल्डिंग में चार कोनों में चार नाके भी बनाए गए थे. रिसाली नाका, पचपेड़ी नाका जैसे नाका बनाए गए थे. इसके साथ ही रायपुर का टूरी हटरी, कलचुरी काल के राजाओं का छोटा बाजार हुआ करता था, जिन्हें लड़कियां संचालित करती थी.