देश के कुछ राज्यों में कोविड-19 की नई लहर के गंभीर रूप लेते ही कई सख्त पाबंदियां फिर से लौट आई हैं, तो वहीं दूसरी तरफ, ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि किसी-किसी राज्य में कोरोना की पर्याप्त जांच नहीं हो रही, और कहीं-कहीं अस्पतालों में बेड की कमी पड़ गई है। कल ही महाराष्ट्र के नागपुर के सरकारी अस्पताल की एक तस्वीर मीडिया में वायरल हुई थी, जिसमें एक ही बेड पर दो कोरोना मरीज लेटे हुए थे। दिल्ली में भी कुछ निजी अस्पतालों में आईसीयू के कम पड़ जाने के समाचार आ रहे हैं। यह स्थिति तब है, जब केंद्र समेत तमाम राज्य सरकारें कोरोना संक्रमण की नई लहर की आशंकाओं से वाकिफ थीं और वे इसे नियंत्रित करने को लेकर निरंतर सक्रिय भी रही हैं। पिछले एक साल में इसके मुतल्लिक स्वास्थ्य ढांचे में सुधार भी हुआ है, मगर कहीं न कहीं अब भी बेहतर तालमेल की जरूरत है। महाराष्ट्र में लगातार गंभीर होते हालात बता रहे हैं कि चुनौती कितनी मुश्किल है। वहां रोजाना के नए मामले 30 हजार के पार चले गए हैं। देश के कुल नए मामलों में आधा से अधिक अकेले महाराष्ट्र से सामने आ रहे हैं।
कोई भी युद्ध यदि लंबा खिंच जाए, तो उसमें शामिल सेनाओं के थकने का अंदेशा गहराता जाता है। जंग में शामिल सेनाओं की एक रणनीति प्रतिपक्षी को थका डालने की भी होती है। लेकिन कोरोना से मोर्चा लेती सरकारों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है, बल्कि उनकी जरा-सी उदासीनता या शिथिलता से लाभ की स्थिति में सिर्फ और सिर्फ वायरस होगा, जो न सिर्फ अलग-अलग क्षेत्रों को अपनी जद में समेटेगा, बल्कि नए-नए रूपों में भी लोगों की जान के लिए खतरा बनता रहेगा। पिछले एक साल में देश-दुनिया व इंसानियत ने कोरोना से काफी नुकसान उठाया है, इसलिए इससे लड़ाई में किसी किस्म की कोताही स्वीकार्य नहीं हो सकती।
महाराष्ट्र सरकार कुछ और इलाकों में पूर्ण लॉकडाउन के विकल्प पर विचार कर रही है। लेकिन इसका कितना बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है, राज्यों के कोषागार इसकी गवाही दे रहे हैं। इसलिए पूर्ण लॉकडाउन का विकल्प अंतिम ब्रह्मास्त्र होना चाहिए। इसके बजाय, अन्य तार्किक प्रयासों की जरूरत है। दुर्योग से इसी मोर्चे पर हम लगातार पिट रहे हैं। एक तरफ तो हम सामान्य नागरिकों से मास्क पहनने और शारीरिक दूरी बरतने की अपेक्षा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग हजारों की भीड़ को संबोधित करने को लालायित दिख रहे हैं। यही दृश्य बिहार विधानसभा चुनाव में दिखा था और यही नजारा अभी असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में दिख रहा है। ऐसे में, निचले स्तर के नागरिकों के बीच कोविड से बचाव संबंधी दिशा-निर्देश अपनी निष्पक्षता व पवित्रता की रक्षा भला कैसे कर सकते हैं? इसलिए, देश को व्यापक जांच, ज्यादा से ज्यादा ‘आइसोलेशन’ और तेजी से व्यापक टीकाकरण की नीति को ही अपनाना होगा। खासकर देश के जिन 10 जिलों में सबसे ज्यादा सक्रिय मामले हैं, वहां युद्ध स्तर पर जांच व टीकाकरण अभियान चलाने की जरूरत है। अमेरिका में डॉक्टरों द्वारा संक्रमण की चौथी लहर की आशंका जताने के बाद टीकाकरण के योग्यता-दायरे का विस्तार किया गया है, वहां अब रोजाना 30 लाख लोगों को खुराक मिल रही है। हमें भी 1 अप्रैल से टीकाकरण के विस्तार को प्रभावी बनाने पर जोर देना होगा।