कल्पना करना और उसे हकीकत में बदलने के लिए जोखिम लेना ही आपकी सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। ज्ञान स्वयं में शक्ति नहीं है। ज्ञान, शक्ति में तभी परिवर्तित होता है जब इसे प्रयोग में लाया जाए। ज्ञान के रचनात्मक प्रयोग में कल्पनाशक्ति की आवश्यकता होती है। इस बात की मिसाल दी है स्पेस-एक्स के संस्थापक और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने जो हाल में दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बन गये हैं। एलन मस्क की पहचान एक अमेरिकी उद्यमी के तौर पर है, पर उनका जन्म दक्षिण अफ्रीका में हुआ था। उनकी मां मूल रूप से कनाडा की हैं और पिता दक्षिण अफ्रीका के। मस्क को उन्हें बचपन से ही किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। डगलस एडम्स की किताब ‘हिचहाइकर्स गाइड टु द गैलेक्सी’ ने मस्क का जीवन बदल दिया। इस किताब ने किशोर एलन मस्क (जन्म 1971) को मकसद दिया और उनमें बेचैनी बढ़ गई।
दक्षिण अफ्रीका में रहते अंतरिक्ष खंगालने का अभियान मुमकिन न था, तो मस्क ने संभावनाओं की तलाश शुरू की। मां की मदद से कनाडा की नागरिकता हासिल करते हुए वह प्रौद्योगिकी के गढ़ अमेरिका जा पहुंचे। सितारों तक पहुंचने की जल्दी थी। पीएचडी करने के लिए दाखिला लिया, लेकिन दो दिन में ही लग गया कि तय मकसद में पढ़ाई बहुत कारगर नहीं होगी। सीधे हकीकत में उतरकर खोज में लगना होगा और शायद उससे पहले खोज की दिशा में बढ़ने के लिए संसाधन जुटाने पड़ेंगे।
भाई और मित्र के साथ मिलकर एक आईटी कंपनी बनाई। कंपनी चल निकली, तो उसे बेचकर मस्क अमीरों में शुमार हो गए। एक और आईटी कंपनी बनाई, उसे भी बेच दिया, और भी ज्यादा अमीर हो गए। उसके बाद 30 की उम्र में पहुंच गए रूस रॉकेट खरीदने। रूसियों ने उनके इरादों को महत्व नहीं दिया। मस्क का ख्वाब था कि रॉकेट के जरिए पहले चूहों को मंगल पर बस्ती बसाने भेजना है या कुछ पौधों को। जब दूसरी बार भी रूसियों ने खाली हाथ लौटा दिया, तब लौटते वक्त हवाई जहाज में ही मस्क के मन में आया कि क्यों न खुद ही रॉकेट तैयार कर लिया जाए। और यहां से हुई स्पेसएक्स कंपनी की शुरुआत। कदम-कदम पर अड़चनें आती रहीं। लगे हाथ कार निर्माण, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, प्रौद्योगिकी विकास जैसे अनेक उद्यम भी चलते रहे। सपना इतना बड़ा था और इरादे इतने फौलादी कि दौलत कदम चूमती चली। एक दिन वह भी आया, जब मस्क 49 की उम्र में ही पूरी दुनिया के सबसे अमीर इंसान बन गए। एक वह भी दिन था, जब उन्हें ब्वॉयलर की सफाई का काम मिला था, जिसके लिए प्रति घंटा 18 डॉलर मिलते थे और आज वह प्रति घंटा करीब 140 करोड़ रुपये कमा रहे हैं।
बेशक, कल्पनाएं ही होती हैं, जो जिंदगी को उड़ान देती हैं।