लठमार होली
बरसाने की लठमार होली की शुरुआत शुक्ल पक्ष की नवमी को होती है. नंदगांव (कृष्ण के गांव) के लड़के बरसाने जाते हैं और गोपियां उनके पीछे लठ लेकर भागती हैं और उन्हें प्रेम से मारती हैं.
फूलों की होली
फागुन की एकादशी को वृंदावन में फूलों की होली मनाई जाती है. इस होली में बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी भक्तों पर फूलों की वर्षा करना शुरु कर देते हैं.
छड़ीमार होली
गोकुल बालकृष्ण की नगरी है. यहां उनके बालस्वरूप को ज्यादा महत्व दिया जाता है. इसलिए श्रीकृष्ण के बचपन की शरारतों को याद करते हुए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है. फाल्गुन शुक्लपक्ष द्वादशी को प्रसिद्ध छड़ीमार होली खेली जाती है. जिसमें गोपियों के हाथ में लट्ठ नहीं, बल्कि छड़ी होती है और होली खेलने आए कान्हाओं पर गोपियां छड़ी बरसाती हैं. मान्यता के अनुसार बालकृष्ण को लाठी से चोट न लग जाए, इसलिए यहां छड़ी से होली खेलने की परंपरा है. बताते हैं कृष्ण-बलराम ने यहां ग्वालों और गोपियों के साथ होली खेली थी.
रंगों की होली
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही श्रद्धालु अपने प्रभु पर रंग बरसाने के लिए टूट पड़ते हैं. इस होली में कई क्विंटल गुलाल और रंग बरसाया जाता है. वैसे तो होली देश भर में मनाई जाती है लेकिन ऐतिहासिक द्वारकाधीश मंदिर की नगरी में मनाई जाने वाली होली की बात ही निराली है. होली का यह उत्सव देश के बाकी कई हिस्सों की तरह 28 मार्च को ही हो रहा है. इस होली के जश्न में थोड़ी सी भांग भी पी जाती है.
हुरंगा
दाऊ जी के मंदिर में होली के अगले दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार 500 साल पुराना है. इस मंदिर के सेवादार परिवार की महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़कर उन्हें पीटती हैं. इस परिवार में अब 300 से ज्यादा लोग हैं. इस साल यह त्योहार 29 मार्च को मनाया जाएगा.
