नई दिल्ली:– सिर्फ अगस्त भर में इंडिया में 94 दवाएं क्वालिटी स्टैंडर्ड की परीक्षा में फेल हो गईं. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 20 बच्चे मारे गए, इनमें 85 पर्सेंट बच्चे पांच साल से कम के थे. उनके पेरेंट्स ने बच्चों को ये सोचकर दवा दी थी कि उन्हें खांसी में आराम मिले. लेकिन वो दवा बच्चों के लिए जहर बन गई. वो मासूम हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गए. ये दुखद घटना कोल्ड्रिफ कफ सिरप के कारण हुई.
इसके बाद राज्य प्रशासन जागा और लगातार छापेमारी और टेस्ट किए गए. जांच में पता चला कि इस सिरप में 48.6 प्रतिशत डाइएथिलीन ग्लाइकॉल था. ऐसा घातक औद्योगिक सॉल्वेंट जो एक्यूट किडनी फेल्योर का कारण बन सकता है. मध्य प्रदेश सरकार ने अब इस दवा पर बैन लगा दिया है और FIR दर्ज कराई है. वहीं केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने इसके तमिलनाडु स्थित निर्माता Sresan Pharma के खिलाफ क्रिमिनल केस शुरू किया है.
देखा जाए तो कोई नई त्रासदी नहीं है. साल 2019 में जम्मू-कश्मीर में इसी तरह का सिरप कम से कम 12 बच्चों की मौत का कारण बना था और चार अन्य गंभीर रूप से विकलांग हो गए. भारत के बाहर भी गाम्बिया (2022), उज्बेकिस्तान और कैमरून (2023) में भारतीय निर्मित सिरपों के कारण कुल 141 बच्चों की मौत हुई. हर बार ऐसी त्रासदी के बाद भारतीय नियामक कड़े परीक्षण का वादा कर तो देते हैं, लेकिन होता क्या है. फिर नए हादसे होते हैं और सवाल वहीं का वहीं रहता है कि भारत की दवाओं की सुरक्षा कितनी है और ये समस्याए बार-बार क्यों होती हैं.
डेटा बताता है कि सैंपल टेस्टिंग बढ़ने के बावजूद सबस्टैंडर्ड और नकली दवाएं बाजार में लगातार आती हैं. अगस्त में 2024–25 के दौरान लगभग 1.2 लाख दवा सैंपल टेस्ट किए गए. साल 2014–15 में ये संख्या 74,199 थी यानी लगभग 57 प्रतिशत बढ़ोतरी. फिर भी 3,000 से अधिक दवाएं हर साल मूल गुणवत्ता परीक्षण में फेल होती हैं. सिर्फ 2024-25 में, 3104 सैंपल क्वालिटी ऑफ स्टैंडर्ड में फेल हो गए. इनमें से 245 को नकली या मिलावटी पाया गया. पिछले दशक में 32,000 से अधिक सैंपल टेस्ट फेल हुए और 2,500 से ज्यादा नकली या मिलावटी पाए गए. औसतन हर दिन आठ दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल होती हैं यानी लगभग हर तीन घंटे में एक.
अभियोगों की संख्या भी बढ़ी है. ये संख्या साल 2014-15 में 152 से बढ़कर 2024-25 में 961 हो गई. इससे क्या होता है क्या ये बदलाव है. जी नहीं, ये सभी रिएक्शन हैं न कि सुधार. राज्यसभा में स्वास्थ्य मंत्रालय ने जुलाई में माना कि भारत में नकली दवा की कानूनी परिभाषा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट,1940 में मौजूद नहीं है.
छिपी हुई महामारी
विडंबना तो ये है कि हर महीने CDSCO Drug Alerts जारी करता है. इसमें ऐसे दर्द निवारक, एंटीबायोटिक और कफ सिरप जैसी दवाओं को लिस्टेड किया जाता है जो क्वालिटी टेस्ट में फेल होते हैं. बीते अगस्त 2025 के लेटेस्ट अलर्ट में 94 प्रोडक्ट मानक गुणवत्ता की श्रेणी में फेल पाए गए.
पिछले साल से इस तरह के अलर्ट में तेजी आई है. साल 2024 में 877 सबस्टैंडर्ड दवाएं पाई गईं. फिर साल 2025 के पहले आठ महीनों में 1,184 दवाएं और मार्च 2024 से अगस्त 2025 तक 12 कफ सिरप सबस्टैंडर्ड पाए गए जो बच्चों की मौत के मामले को देखते हुए चिंताजनक है.
देखा जाए तो इन अलर्टों से भी बड़ी खामी उजागर होती है. जून 2025 के State NSQ Report में कई राज्यों ने डेटा नहीं भेजा जिससे भारत की ओवर ऑल नेशनल लेवल की तस्वीर अधूरी है. इससे सवाल उठता है कि कितनी अनसेफ दवाएं अभी भी पता नहीं चली हैं.
भारत की साख पर खतरा
‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ का खिताब पा चुके भारत ने पिछले दशक में लगभग सात प्रतिशत सालाना दर से अपने फार्मास्यूटिकल निर्यात को $15.4 बिलियन से $30.5 बिलियन तक बढ़ाया . लेकिन हर वैश्विक चेतावनी इस भरोसे को कमजोर कर देती है.
WHO ने 2022 के बाद से कई चेतावनियां जारी की हैं. पहले गाम्बिया फिर उज़्बेकिस्तान मार्शल आइलैंड्स और इराक में भारतीय सिरप में खामी पाई गई. Interpol Pharmaceutical Crime Programme के अनुसार, कम और मध्यम आय वाले देशों में हर 10 दवाओं में से 1 नकली या घटिया होती है. भारत में दवाओं की जांच तो पहले से ज्यादा हो रही है, लेकिन इससे सुरक्षा में कोई खास सुधार नहीं दिखा. जब तक देश ‘नकली दवाओं’ की कानूनी परिभाषा तय नहीं करता और हानि होने से पहले कार्रवाई शुरू नहीं करता, तब तक अगली घातक दवा बस एक शिपमेंट की दूरी पर है.