ध्रुव शुक्ल
मेरे बचपन के दिनों में देश में दो देश थे, गांधी का देश और नेहरू का देश। गांधी के देश में नदी किनारे जाकर घर लौट आते थे पर नेहरू के देश में नदी घर तक लायी जा रही थी। नेहरू का देश नहरों का देश बन रहा था। बांध, बिजलीघर और कारखाने ही भारत के नये तीर्थ कहलाये। जो लोग घर से निकलकर इन तीर्थों में गये, वे घर वापस नहीं लौटे। गांधी के गाँव में लौट सकते थे पर नेहरू के नगर से लौटना कठिन था। नेहरू का देश आगे-आगे चल रहा था और गांधी का एक बहुत बड़ा देश उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था।
मेरे पिता की मुश्किल यह थी कि वे किस देश के साथ चलें। वे लोककवि थे और प्राइमरी स्कूल के मास्टर भी थे। उनकी कक्षा में आमने-सामने की दीवारों पर गांधी और नेहरू के चित्र लगे रहते। बच्चों को पढ़ाते हुए पिता जब कक्षा में घूमते तो कभी वे गांधी जी को अपनी पीठ दिखाते और कभी नेहरू जी की तरफ उनकी पीठ हो जाती। एक साथ दोनों को नहीं देख पाने के कारण वे अपनी कविताओं में कभी गांधी के देश को और कभी नेहरू के देश को सजाने-सँवारने के भावों से भर उठते। पर पिता को अनमना और अकेला देखकर लगता कि जैसे दोनों देश उनके हाथों से छूट रहे हैं।
मेरा जन्म इन दो देशों के बीच की देहरी पर ही हुआ। मुझे अपनी स्कूल की बालभारती में गांधी बन जाने का गीत सुनाया जाता। पर जब स्कूल में विविध वेषभूषा प्रतियोगिता होती तो मास्साब मुझे नेहरू बन जाने की सलाह देते। मेरा बचपन नेहरू के जन्मदिन से जोड़ दिया गया। वे मेरे चाचा कहलाने लगे। मेरा गांधी बन जाना आसान नहीं था।
अपने जीवन की कहानी लिखते हुए पण्डित नेहरू यह स्वीकार करते हैं कि ‘ मैं पूर्व और पश्चिम का अजीब-सा मिश्रण बन गया हूँ, हर जगह बेमौजूँ , कहीं भी अपने को अपने घर में होने जैसा अनुभव नहीं करता। शायद मेरे विचार और मेरी जीवन दृष्टि पूर्वी की अपेक्षा पश्चिमी अधिक है।… मैं पश्चिम में विदेशी हूँ… एक अजनबी हूँ। मैं उसका हो नहीं सकता। लेकिन अपने देश में भी मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है मानो मैं देश निर्वासित हूँ।’
कैसी बिडंबना है कि चाचा नेहरू अपने देश और दुनिया में कहीं भी अपने को अपने घर में होने जैसा अनुभव नहीं कर पा रहे थे और मेरे पिता कभी गांधी के देश में, कभी नेहरू के देश में मुझे पाल-पोस रहे थे। इन दोनों देशों की देहरी पर खड़ा सोचता हूँ कि मैं किस देश में रहता हूँ और पाता हूँ कि अब गांधी और नेहरू का देश भी मेरे हाथों से छूट रहा है। यह कोई अजनबी-सा तीसरा देश है जो मुझे अब न जाने कहाँ छोड़कर भागा चला जा रहा है।
अपनी उम्र के ढलान पर अकेला रह गया आज मैं किस देश में रहता हूँ, मेरा घर किस देश में हो, जहाँ मैं अपने को अपने घर में होने जैसा अनुभव कर पाऊँ?
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