नई दिल्ली, आज देश भर में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है बता दे कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है. ज्योतिषी के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के आशीर्वाद से धन-संपत्ति, सुख-शांति और वैभव का वरदान मिलता है. इस साल गुरु पूर्णिमा का पर्व 13 जुलाई यानी आज मनाया जा रहा है. रुचक, भद्र, हंस और शश नाम के चार विशेष योग इस बार गुरु पूर्णिमा को खास बना रहे हैं.
क्या है गुरु पूर्णिमा का महत्व-
हिंदू धर्म की मान्यताएं के अनुसार, आषाढ़ माह की पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं. इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है. इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं. लोग अपने गुरु को यथाशक्ति दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करते हैं. इस दिन शिष्य अपने सारे अवगुणों का त्याग भी करते हैं.
गुरू की मानसिक पूजा का भी विधान
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार रामचरित मानस के बालकांड में उल्लेख है कि जब श्रीराम, सीता स्वयंवर में गए थे। तब उन्होंने धनुष उठाने से पहले मन ही मन गुरू को प्रणाम किया था। इसके बाद शिव धनुष उठा लिया था। इस तरह शास्त्रों में गुरू की मानसिक पूजा और मन में ही प्रणाम करने का भी विधान है। इसलिए जो लोग गुरु के पास नहीं जा सकते वो घर रहकर भी गुरु का ध्यान कर के पूजा कर सकते हैं।
महर्षि वेदव्यास से जुड़ी बातें
. भागवत महापुराण के अनुसार वेद व्यास जी भगवान विष्णु के 17वें अवतार थे।
. महर्षि वेद व्यास अष्टचिरंजिवीयों में एक हैं। यानी अमर होने के कारण कलयुग में भी जीवित हैं।
. महर्षि वेद व्यास के पिता महर्षि पाराशर और माता सत्यवती थीं। महर्षि व्यास ने वेदों के ज्ञान को बांटा। इसलिए इनका नाम वेदव्यास पड़ा।
. महाभारत जैसे श्रेष्ठ ग्रंथ की रचना भी इन्होंने ही की है।
. महर्षि वेदव्यास ने एक द्वीप पर तप किया था। तप की वजह से इसका रंग श्याम हो गया। इसी वजह से इन्हें कृष्णद्वेपायन कहा जाने लगा।
. पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तु मुनि, रोमहर्षण आदि महर्षि वेदव्यास के महान शिष्य थे।
. महर्षि वेद व्यास की कृपा से ही पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ था।