रायपुर – भारतीय संस्कृति में यूँ तो सभी पर्वों का अपना अलग महत्व है इन्ही पर्वों में से एक है हलषष्ठी पर्व। संतान की सुख-समृद्धि व दीर्घायु होने की मनोकामना के लिये हलषष्ठी (खमरछठ) का पर्व मंदिरों एवं घरों में महिलाओं द्वारा सामूहिक रुप से पूजा-अर्चना कर मनाया जाता है। पुत्र के दीर्घायु होने की कामना को लेकर माताओं द्वारा मनाया जाने वाला छत्तीसगढ़ का पावन पर्व खमरछठ व्रत भादो माह की षष्ठी तिथि यानि आज मनाया जायेगा। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्रीबलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन शेषनाग के अवतार श्री बलराम जी का जन्म हुआ था।इनका मुख्य शस्त्र हल मूसल है इसलिये उन्हें हलधर कहा जाता है एवं उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है। हलषष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन महुआ खाने का विधान है।खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की भी पूजा की जाती है मातायें अपनी संतान की प्राप्ति उनकी दीर्घायु एवं सुख – समृद्धि की कामना के लिये रखती हैं। हलषष्ठी में उपवास रहकर मिट्टी से निर्मित भगवान शंकर, पार्वती, गणेश, कांर्तिकेय, नंदी , बांटी, भौंरा, एवं शगरी बनाकर पूजा-अर्चना किया जाता है कनेर, धतूरा, मंदार, बेलपत्ती, सफेद फूल विशेषरुप से भगवान को चढ़ाया जाता है। पूजन पश्चात महिलायें प्रसाद के रुप में पसहर चांवल,दही, घी,मुनगा भाजी सहित छह प्रकार की भाजी बिना हल जोते मिर्च का फलाहार किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं हल द्वारा उत्पन्न खाद्य फसल से परहेज करती है। इस दिन महिलायें अपनी संतान की दीर्घायु के लिये पुत्र के बायें कंधे एवं पुत्री के दायें कंधे में छह -छह बार नये कपड़े के कतरन को शगरी में डुबाकर चिन्ह लगाती हैं जिससे उनकी संतान को भगवान का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
हलषष्ठी व्रत कथा
वैसे तो इस व्रत की छह कथाये हैं। इनमें सबसे प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी , उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था। एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जायेगा। यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिये चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई। वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया। वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हलषष्ठी थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था , उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था। अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया। कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची। बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध ना बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट ना किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा ना होती। अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिये। ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची , जहां उसने दूध-दही बेचा था। वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी। तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है। तभी उसने स्वार्थ के लिये झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ ना बोलने का प्रण कर लिया।
