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    Home » चाल हो तो बेंगलुरू के 15 वर्षीय उभरते हुए युवा खिलाड़ी प्रणव आनंद जैसी ‘रुचि और जुनून का ऐसा तालमेल है कि गोटियां थक जाए पर उसकी चाल नहीं’
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    चाल हो तो बेंगलुरू के 15 वर्षीय उभरते हुए युवा खिलाड़ी प्रणव आनंद जैसी ‘रुचि और जुनून का ऐसा तालमेल है कि गोटियां थक जाए पर उसकी चाल नहीं’

    By adminSeptember 18, 2022No Comments4 Mins Read
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    नई दिल्ली। समय सीमा उसे बांध नहीं सकती है। रुचि और जुनून का ऐसा तालमेल है कि गोटियां थक जाए पर उसकी चाल नहीं। वह कितने भी घंटे इनके साथ शह-मात खेल सकते हैं। वैसे सात-आठ घंटे का नियमित अभ्यास तो उनके दिनचर्या में शामिल है, लेकिन कई बार 15 घंटे लगातार बैठकर रिकार्ड भी कायम कर चुके हैं। यह हैं भारत के 76वें ग्रैंड मास्टर और अंडर-16 वर्ल्ड विश्व युवा शतरंज चैंपियन प्रणव आनंद। उन्होंने रोमानिया के मामाइया में चल रही विश्व युवा शतरंज चैंपियनशिप में तय मानकों को पूरा कर ग्रैंड मास्टर की उपाधि हासिल की।

    प्रणव के खेल पर बेहद बारीकी से नजर रखने वाले उनके प्रतिद्वंदी कहते हैं “वह गणना और अंतिम खेलों में विशेष रूप से बहुत अच्छे और पारंगत हैं। उन्होंने 11 में से 9 अंक प्राप्त किए और बाकियों से आधा अंक आगे रहकर बाजी मार ली। वह 11 राउंड तक नाबाद रहे। सात में जीत दर्ज की और चार मैच ड्रा किए। 24 घंटे के अंतराल में दो विश्व स्तरीय खिताब अपने नाम करने के बाद भी 15 वर्षीय यह शतरंज खिलाड़ी प्रणव बेहद संतुलित व अनुशासित हैं। उनके दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया। खेल खत्म होने के बाद उन्होंने रात को नियमित रूप से अपने खेल का आकलन किया। कैसा महसूस हो रहा है? यह पूछने पर वह बहुत ही विनम्रता से जवाब देते नजर आते हैं कि टाइटल (खिताब) मिलना बड़ी बात है। मैं कई बार इसके करीब पहुंचा, लेकिन पा नहीं सका था। अब अच्छा लग रहा है। प्रणव को जानने वालों का मानना है चाहे जिंदगी हो या शतरंज की बिसात… यह संतुलित व्यवहार ही उसकी ताकत है। सह खिलाड़ियों और समीक्षकों का मानना है कि वह गणना और विशेष रूप से आखिरी के चाल चलने में बहुत माहिर हैं।

    पिता ने करवाया शतरंज से परिचय

    प्रणव का शतरंज से परिचय उनके पिता आनंद ने करवाया। हालांकि उन्होंने प्रणव को व्यस्त रखने के लिए यह किया था, लेकिन धीरे-धीरे यह शौक में बदल गया। काफी छोटी उम्र से ही प्रणव शतरंज खेलने लगे थे। बेंगलुरू में बेहतर कोचिंग होने की वजह से उन्हें प्रशिक्षण और मौका दोनों मिलता रहा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिलने के बाद उसका दायरा धीरे-धीरे बढ़ता चला गया। प्रणव ग्रैंड मास्टर क्यों और कैसे बने? बेहद स्पष्ट और सपाट जवाब देते हुए आनंद कहते हैं उसकी हर चाल सुनियोजित होती है। वह कभी हार नहीं मानता। चाहे वह शतरंज का बोर्ड हो, पढ़ाई हो या फिर अन्य कोई काम। प्रणव को यह अनुशासन मां और दादी से मिला है।

    गणितज्ञ मां छह महीने से साथ दौरे पर हैं

    प्रणव की गणितज्ञ मां अपर्णा छह महीने से प्रणव के साथ दौरे पर हैं। बिट्स पिलानी में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने इसी संस्थान में पढ़ाना शुरू किया। उनके अनुसार महामारी के पहले तक तो लगातार कक्षाएं होने की वजह से मैं प्रणव को उतना समय नहीं दे पाती थी। उसकी दादी सुपर्णा हमेशा उसके साथ जाती थीं। कभी उसके पिता उसे ले जाते थे, मगर महामारी के बाद यह जिम्मेदारी मैंने ली है। इसमें मुझे मेरी सास, पति और छोटे बेटे अभिनव का पूरा सहयोग मिला। तनाव के क्षणों में बेटे को कैसे सहारा देती हूं? इस पर अपर्णा कहती हैं प्रणव हर मैच के बाद आकलन करता है कि वह जीता तो किस चाल से जीता। यदि हारा तो किस मैच से। जब वह हार जाता तो उन चालों के बारे में चर्चा करता है। मैं, शतरंज खेलना नहीं जानती। तकनीकी रूप से भी इस खेल को नहीं समझती हूं, लेकिन प्रणव जो बोलता है, उसे सुनती हूं। तनाव के क्षणों में उसका छोटा भाई अभिनव सबसे बड़े सहारा है। वह कहते हैं- मैं सिर्फ भाई को यह कहता हूं कि अगली चाल में मात देना।

    स्कूल दोबारा परीक्षा आयोजित करवा रहे हैं

    प्रणव के यहां तक पहुंचने में स्कूल और उनके प्रशिक्षकों की भी बड़ी भूमिका है। बेंगलुरू के डीपीएस स्कूल ने अपने इस छात्र के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित की है। मैच खेलकर लौटने के बाद उनके लिए दोबारा परीक्षाएं हो रही हैं। इसी तरह शतरंज में उन्हें बारीकियां सिखाने वालों में तीन प्रमुख नाम हैं।

    ऐसे बनते हैं ग्रैंड मास्टर

    ग्रैंड मास्टर बनने के लिए किसी भी खिलाड़ी को तीन ग्रैंड मास्टर नॉर्म हासिल करने होते हैं और इसके अलावा उनकी ‘लाइव रेटिंग’ 2500 ईएलओ अंकों से अधिक होनी चाहिए। इससे पहले प्रणव ने पहले दो ग्रैंड मास्टर नार्म सिटजेस ओपन (जनवरी 2022) और वेजरकेप्सो राउंड रॉबिन (मार्च 2022) प्रतियोगिताओं में हासिल किए थे।

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