नई दिल्ली :- आजकल वर्किंग पेरेंट्स के लिए बच्चों की परवरिश एक चुनौती बन गई है. ऐसे में वे अपने बच्चों को डे केयर सेंटर भेजते हैं. ताकि वे अपने काम पर ध्यान केंद्रित कर सकें और उनके बच्चे सुरक्षित और किसी की देखरेख में रहें. डे केयर सेंटर में बच्चे दिन भर खेलते, खाते और सोते हैं. उनकी देखभाल के लिए वहां कई लोग होते हैं. फिर शाम को जब माता-पिता काम से वापस आते हैं, तो वे बच्चे को अपने साथ घर ले जाते हैं.
दरअसल, हाल ही में दिल्ली से सटे शहर नोएडा की सबसे पॉश हाईराइज सोसाइटी में चल रहे एक डे केयर सेंटर से एक खबर आई है, जहां नौकरानी ने 15 महीने के बच्चे के साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं. नौकरानी ने बच्चे को बेरहमी से पीटा. उसका सिर दीवार पर दे मारा. उसे जमीन पर पटक दिया और उसकी जांघों को दांतों से काट लिया. नौकरानी की यह क्रूर हरकत सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई है. परिजनों की लिखित शिकायत पर पुलिस ने घटना की जांच शुरू कर दी है. मामला नोएडा के सेक्टर-142 स्थित पारस टिएरा सोसाइटी का है.
ऐसे में आज इस खबर में जानिए कि क्या अपने बच्चे को डे केयर सेंटर भेजना सही है या नहीं, अगर भेजते हैं तो वो वहां कैसे रह रहे हैं? क्या उन्हें सारी सुविधाएं मिल रही हैं और माता पिता को बच्चे के डे केयर में भेजने के बाद किन बातें का ख्याल रखना चाहिए…
बच्चे को डे केयर सेंटर भेजना सही है या नहीं
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्राकाशित शोध के मुताबिक, बच्चे को डे केयर सेंटर भेजना या न भेजना माता-पिता की पसंद हो सकती है. हालांकि, ऐसे मामलों में, अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को ऐसे डे केयर सेंटर में भेजते हैं जहां माता-पिता दोनों ही कामकाजी होते हैं. इसलिए, सबसे पहले खुद से पूछें कि क्या आपके पास डे केयर के बिना भी अपने बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त समय है. बच्चों को डे केयर में भेजना और किस उम्र में भेजना है, यह आप पर निर्भर करता है. कोशिश करें कि अपने बच्चे को 1 से 2 साल बाद ही डे केयर में दाखिला दिलाएं ताकि वे वहां जाकर आपके बिना कुछ समय खेल सकें. साथ ही, उन्हें दूसरे बच्चों और वहां के माहौल के साथ तालमेल बिठाने में कोई परेशानी न हो.
बच्चों को डे केयर में भेजने से पहले माता-पिता को क्या जांच करनी चाहिए
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स कहना है कि सबसे पहले, आपको यह देखना होगा कि वहां का स्टाफ कैसा है. आपको यह देखना चाहिए कि पुलिस वेरिफिकेशन के बाद उनकी भर्ती हुई है या नहीं. इसके बाद, आपको यह देखना होगा कि वहां कितने बच्चे हैं और कितने शिक्षक हैं. आम तौर पर, अगर तीन साल से कम उम्र के बच्चे हैं, तो दस बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. 3-6 साल के बच्चों के लिए, हर 20 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. सीसीटीवी फुटेज अभिभावकों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए. अभिभावकों को यह भी पता होना चाहिए कि अगर कोई समस्या हो तो वे किससे शिकायत करें.
डे केयर सेंटर में क्या सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए
हर डे केयर सेंटर में प्राथमिक चिकित्सा किट होनी चाहिए. इसके साथ ही, आपको यह भी देखना चाहिए कि क्या वहां कोई ऐसा कर्मचारी मौजूद है जो सीपीआर कर सके. इतना ही नहीं, आपको यह भी देखना चाहिए कि आस-पास कोई अस्पताल है या नहीं. आपको यह भी देखना चाहिए कि क्या वहां चिकित्सा अभ्यास हो रहे हैं और क्या उनके पास उचित प्रमाणपत्र हैं.
कर्मचारियों का ट्रेंनिग और एक्सपीरियंस इतना महत्वपूर्ण क्यों है
कर्मचारियों को किसी भी से निपटने में सक्षम होना चाहिए. उन्हें उसी तरह से ट्रेंनिग के दौरान ट्रेन किया जाना चाहिए. इसके अलावा, कर्मचारियों को बच्चों की भावनाओं को भी ठीक से समझना चाहिए. अगर उनकी उपेक्षा की जाती है या उनकी ठीक से देखभाल नहीं की जाती है, तो वे असुरक्षित महसूस करेंगे.
जब बच्चे रोते हैं तो कर्मचारियों को उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए
जब बच्चे रोते हैं, तो देखभाल करने वालों को उनकी भावनात्मक जरूरतों के अनुसार उन्हें दिलासा देना चाहिए. उन्हें आश्वस्त करना चाहिए. अगर बच्चा बहुत ज्यादा रो रहा है, तो उसे शांत करने के लिए उसकी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करें, जैसे कि उसे खाना खिलाना, डायपर बदलना, या उसे गोद में उठाना