कोरबा/पसान::-सर्वाधिक रेत का उत्खनन पोड़ी उपरोड़ा के दुल्लापुर हसदेव नदी से किया जा रहा है जहां रेत माफ़िया रोजाना सैकड़ों की संख्या में हाईवा और ट्रैक्टर के जरिए नदी का सीना चीर कर रेत उत्खनन में लगे हुए है कोरबा जिले की जीवन दायनी नदियों में एक हसदेव नदी का सीना इन दिनों रेत माफिया छलनी करने में लगे है. हसदेव के साथ-साथ सहायक नदियों में रोजाना रेत का अवैध तरीके से खनन का खेल लगातार जारी है. रेत से भरी ऐसे सैकड़ों वाहन हर शाम से देर रात और अल सुबह तक सड़कों पर देखे जा रहे हैं।शासन के नियमों की की जमकर उड़ाई जा रही धज्जियां
शासन की गाइड लाइन के अनुसार आवंटित रेत खदानों में आवंटित सीमा के अंतर्गत ही उत्खनन करना है जबकि यहां पर सीमा नहीं बनाया गया है ना ही सूचना पटल बोर्ड लगाया गया है जहां नदियों में अवैध रूप से चल रहे रेत उत्खनन कार्य से जहां शासन को लाखों रुपए के रॉयल्टी का नुकसान हो रहा है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच रहा है. इसके साथ ही नदियों के अस्तित्व पर संकट भी गहराता जा रहा है. कई जगह नदियों में रेत की खदान इतने ज्यादा बढ़ गए है कि वहां जनजीवन पर भी इसका असर दिखने लगा है. जानकारी के मुताबिक रेत के इस अवैध कारोबार में जिले के अलावा आस-पास के जिले के दबंगों, नेताओं और बाहरी राज्य के लोगों का खेल चल रहा है, जो दिन और रात रेत का अवैध कारोबार चला रहे है. ग्रामीणों का आरोप है कि अगर रेत खनन का विरोध भी किया जाता है तो उन्हें दबंग और नेताओं द्वारा न केवल धौंस देकर डराया जाता है बल्कि बंदूक का डर और नेतागिरी का पावर दिखाया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि अगर शासन प्रशासन से मदद मांग भी ले तो उन्हें किसी का सहारा नहीं मिलता. इससे ग्रामीण भी काफी डरे हुए महसूस कर रहे है.दरअसल बारिश से ठीक पहले निर्माण कार्यों में तेजी आने की वजह से रेत की मांग बढ़ गई है जिससे रेत माफिया अवैध रूप से नदी-नालों से रेत उत्खनन कर शासन को लाखों-करोड़ों का चूना लगा रहे है. अवैध रूप से उत्खनन कार्य को रोकने के लिए शासन द्वारा खनिज विभाग में अफसरों की भी तैनाती की गई है, लेकिन विडंबना है कि खनिज विभाग ना तो रेत माफियाओं को रोक पा रहा है और ना ही रेत का उत्खनन रोकने की दिशा में ठोस कदम उठा पा रहे है,
खाई बने नदी के किनारे
मशीनों से अनवरत खुदाई की वजह से किनारे खाई में तब्दील हो रहे हैं। जिन्हें भरने में समय लगेगा। ऐसी गहरी खदानों को देखकर यह साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह काम मजदूरों ने नहीं बल्कि मशीनों से किया जा रहा है।
नेताओं का भी संरक्षण
सक्रिय रेत माफियाओं को जनप्रतिनिधियों का संरक्षण है। कार्रवाई होने पर राजनीतिक दबाव अधिकारियों पर बनाया जाता है। शुरुआती कार्रवाई के बाद अमले आगे कार्रवाई नहीं करता। जानकारी के अनुसार कई जगह जनप्रतिनिधियों के परिजन ही रेत उत्खनन और परिवहन का काम कर रहे हैं।
रेत खदान की सीमा क्षेत्र से बाहर जाकर निकाली जा रही रेत नियमों का नहीं हो रहा पालन
नदियों में मशीन से खुदाई के दिए गए निर्देश में नियमों की अनदेखी की जा रही है। ठेकेदार अपने तरीके से नदियों में बांध बनाकर मशीनों को उतार रहे हैं। नदियों में खुदाई के दौरान कितनी चौड़ाई में रास्ता बनाकर पानी रोकना और फिर कितनी गहराई में खुदाई करना है, इसक ा पालन नहीं किया जा रहा है। इससे नदी की धारा भी प्रभावित हो रही है।
खनन के दौरान खुलेआम मनमानी और नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) की गाइडलाइन को ताक पर रख दिया गया है। समीपी ग्रामीणों ने बताया कि बीच नदी रेत का पहाड़ खड़ा कर दिया गया है।
आसपास चारो ओर पानी के बीच से जेसीबी लगाकर रेत निकाली जा रही है। जानकार बताते हैं कि एनजीटी की गाइडलाइन के अनुसार पानी के अंदर से रेत खनन प्रतिबंधित है, ताकि नदियों का इकोसिस्टम प्रभावित नहीं हो। इसके अलावा खनन के दौरान कुछ घाट में तीन व कुछ में 6 मीटर गहराई से ज्यादा रेत नहीं निकालने के भी निर्देश हैं। ग्रामीणों ने बताया कि नदियों में रेत खनन के दौरान मनमानी का आलम यह है कि कई मीटर गहराई में खनन किया गया है।
शासन के नियमो की माने तो नदी के अंदर मशीन से नहीं निकाल सकते रेत
एनजीटी के नियमानुसार नदी के अंदर मशीन की मदद से रेत नहीं निकाल सकते। क्युकी मशीनों के उत्खनन से पर्यावरण को खतरा है जबकि दुल्लापुर रेत ठेकदार का बोलना है की उनको पोकलैंड लगाने के लिए स्पेशल परमिशन दिया गया …वही कोरबा खनिज विभाग के अधिकारियों से फोन से संपर्क करने की कोशिश की गई किंतु अधिकारीयो से संपर्क नही हो सका