रायपुर। छत्तीसगढ़ में परंपरागत धान की खेती की जगह अब लेमनग्रास की खेती की शुरुआत की गई है। लेमनग्रास की खेती के लिए औषधीय पादप बोर्ड के प्रयास से छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुंद, पेण्ड्रा, कोरिया, कोरबा, बिलासपुर तथा बलरामपुर जिलों के 36 ग्रामों के 653 किसानों के लगभग 800 एकड़ में लेमनग्रास की खेती की जा रही है, जिससे प्रति एकड़ 80 हजार से 1 लाख रुपए आय किसानों को होने की संभावना है।
लेमनग्रास एक औषधीय एवं सुगंधित पौधा है, लेमनग्रास तेल का कई प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन सामग्री तथा अन्य उत्पाद में उपयोग में आता है। पूरे विश्व में भारत लेमनग्रास तेल का शीर्ष निर्यातक है। लेमनग्रास बहुवर्षीय फसल है। छत्तीसगढ़ की जलवायु लेमनग्रास की खेती हेतु बहुत उपयुक्त है। इसकी खेती खाली व पड़त भूमि पर की जाती है। लेमनग्रास की खेती कई प्रकार की भूमि पर की जा सकती है, जिसमें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत कम होती है। इसको एक बार रोपण करने बाद बार-बार रोपण की जरूरत नहीं होती। इसकी कटाई हर ढाई से तीन माह में की जाती है, जिससे किसानों के आय का स्रोत बना रहता है।
लेमनवास की पहली कटाई 6 माह बाद होती है इसके बाद हर ढाई माह मे कटाई की जाती है। फसल कटाई कर आसवन यूनिट की सहायता से उसका तेल निकाल लिया जाता है। तेल बाजार में बिक्री के लिए तैयार हो जाता है। आसवन उपरांत बचे हुए अवषेष को आसवन यूनिट में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है अथवा सुखाकर मूसा तैयार कर गाय के चारे में कम मात्रा में मिलाकर उपयोग किया जा सकता है तथा कंपोस्ट के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। बोर्ड द्वारा मार्केटिंग के लिए भी सुविधा प्रदाय की जाती है, जिससे किसानों को 15 दिनों में ही उपज का पैसा प्राप्त हो जाता है। पहले वर्ष रोपित किये जाने वाले पौधे राज्य शासन के योजना अंतर्गत बोर्ड के माध्यम से निःशुल्क प्रदाय किया जाता है।
ऐसे उगाई जाती है ये फसल
लेमनवास की बुआई पूरे वर्षभर की जाती है। एक एकड़ में रोपण हेतु 15 से 20 हजार पौधे की आवश्यकता होती है। फसल की कटाई हर ढाई माह के अंतराल में किया जाता है। इसका उत्पादन वर्ष में 04 से 05 बार तक किया जा सकता है। लेमनग्रास तेल की वर्तमान बाजार कीमत 800 से 950 रुपए किलो तक है। इस हिसाब से किसानों को एक एकड़ से 80 हजार से एक लाख रुपए तक भी अधिक आय प्राप्त होती है।
बाजार में काफी मांग
छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के सीईओ जेएसीएस राव ने बताया कि, लेमनग्रास की बाजार माग अत्यधिक होने के कारण इसकी उपयोगिता हमेशा बनी रहेगी, जिससे किसानों का लखपति बनने की संभावना है। प्रति 50 से 100 एकड़ के क्षेत्रफल में किसानों को आसवन यूनिट की उपलब्धता रहेगी। लेमनग्रास तेल 2 वर्ष तक खराब नही होता है। छत्तीसगढ़ के लिए कृष्णा और सीकेपी किस्मों की लेमनग्रास कृषिकरण हेतु उपयुक्त है ।