लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिल कर एसपी नेता अखिलेश यादव ने जो केमिस्ट्री तैयार की थी, उसका असर विधान सभा उपचुनाव में खत्म हो गया. जून में लोकसभा नतीजों के बाद योगी को पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ओर से विरोध की तपिश झेलनी पड़ी थी,लेकिन छह महीने के भीतर ही मौसम बदलने के साथ योगी ने अपनी ताकत दिखा दी.यहां तक कि राज्य की जो मीरापुर सीट मुस्लिम और दलित पिछड़े वोटरों का गढ़ मानी जाती है वो भी आरएलडी के जरिए एनडीए या कहें बीजेपी की झोली में आती दिख रही है. इस सीट पर पिछली बार समाजवादी पार्टी का कब्जा था.मीरापुर की कहानीमीरापुर सीट का जिक्र योगी आदित्यनाथ की रणनीति की सफलता की मिसाल है. प्रदेश में 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे थे. इस उपचुनाव में बीजेपी की सफलता का सेहरा अकेले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के माथे ही बंधेगा. क्योंकि पार्टी की कई बैठकों में योगी ने लोकसभा चुनाव के बाद साफ कर दिया था कि उस वक्त उनके हिसाब से टिकट नहीं बांटे गए थे.
कई सीटों पर केंद्रीय नेतृत्व ने अपनी मर्जी से टिकट दे दिए थे. विधान सभा उप चुनावों में पार्टी ने कोई खतरा न उठाते हुए योगी को फ्री हैंड दिया. यहां तक कि लोकसभा नतीजों के बाद से ही योगी के नायब उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने पार्टी व्यक्ति से बड़ा है जैसे नारे के साथ कुछ आवाज उठा रहे थे. पार्टी ने उसे विरोध का स्वर भले न माना हो, लेकिन बहुत से लोगों को लगा था कि किसी न किसी रूप में वे योगी को चुनौती दी थी.एक एक सीट पर तीन तीन मंत्रीबहरहाल, पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने संयम रखा और योगी को उत्तर प्रदेश की पूरी जिम्मेदारी दे दी. दिल्ली से हर झंडी मिलने के बाद योगी लखनऊ लौटे तीन – तीन मंत्रियों को उत्तर प्रदेश की हर सीट की जिम्मेदारी दे दी. मीरापुर सीट पर पार्टी ने आरएलडी की महिला प्रत्याशी मिथलेश पाल को समर्थन दिया. ये सीट बीजेपी के लिए फिर से जी का जंजाल बन सकती थी. फैजाबाद लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव जीत चुके अवधेश कुमार यहीं से विधायक थे.अवधेश वही नेता हैं जिनकी जीत को विपक्ष अयोध्या में बीजेपी की हार के तौर पर जब तब दिखाता है. इस लिहाज से भी मीरापुर सीट बहुत महत्वपूर्ण थी
हालांकि इस सीट से समाजवादी पार्टी बीएसपी, चंद्रशेखर आजाद की पार्टी एआईएमआईएम ने भी मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए. इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अनुपातिक आकार में ठीक ठाक है. बाकी यहां दलित और पिछड़े मतदाता भी बहुतायत में हैं. यही कारण है कि बीजेपी ने यहां अपना उम्मीदवार उतारने की जगह एनडीए में शामिल आरएलडी को यहां से टिकट दिया.दरअसल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने लोकसभा में जो ‘बीजेपी आरक्षण खत्म कर देगी’ का नैरेटिव खड़ा किया उसे सफल माना गया था. इसी को देखते हुए एसपी नेता अखिलेश यादव ने इस बार पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने का नारा दिया था.
समाजवादी पार्टी ने जब भी उत्तर प्रदेश में सफलता हासिल की है तो उसका आधार इन्ही समुदायों के मतदाताओं ने पुख्ता किया है. हालांकि उनसे पहले योगी आदित्य नाथ नारा दे चुके थे -“बटोगे तो कटोगे.”दो मायने वाला ये नारा एक तरफ मुस्लिम मतदाताओं के विरोध में था तो दूसरी ओर हिंदू मतदाताओं को एकजुट रहने का संदेश भी दे रहा था. योगी की रणनीति भी यही रही. एसपी कांग्रेस पार्टी ने 400 सीटें जीत कर आरक्षण व्यवस्था खत्म करने के जिस नैरेटिव खड़ा कर दलित -पिछड़े वोटरों को बीजेपी से दूर कर दिया था, उसे जोड़ने के लिए बीजेपी को कुछ ऐसा नारा ही चाहिए था.बीजेपी की ओर से योगी आदित्य नाथ ने बहुत एग्रेसिव तरीके से बटोगे तो कटोगे का जो संदेश दिया उसने उपचुनावों में योगी को फिर से ताकतवर बना दिया. जबकि पीडीए परवान नहीं चढ़ सका