बस्तर:- बस्तर में किसानों की डिमांड पर साल 2021-22 में कड़कनाथ योजना शुरू की गई लेकिन साल 2024 आते आते कड़कनाथ गायब होने लगा. नक्सल प्रभावित बस्तर के लोगों का कहना है कि कड़कनाथ चिकन नहीं मिल रहा है. चिकन खाने के शौकीन कड़कनाथ खाने के लिए बस्तर के बाजारों में कई जगहों पर ढूंढ रहे हैं, लेकिन उन्हें कहीं भी कड़कनाथ नहीं मिल रहा है. बाजार में कड़कनाथ मुर्गा देखने को भी नहीं मिल रहा है.
कड़कनाथ मुर्गा की खासियत: दरअसल कड़कनाथ चिकन काफी पौष्टिक होता है. ये खाने में भी काफी स्वादिष्ट होता है. कड़कनाथ में काफी प्रोटीन होता है. संभागीय कुक्कुट पालन प्रबंधक बताते हैं कि इसमें औषधीय गुण होते हैं, जिससे कई बीमारी के मरीज भी इसे खा सकते हैं. कड़कनाथ का मांस पूरी तरह काला होता है. कड़कनाथ की कीमत 1000 से 1200 प्रति किलो है, जबकि मार्केट में मिलने वाला ब्रायलर चिकन 200 से 250 रुपये किलो है. वहीं देसी मुर्गा 600 से 700 रुपये किलो मिलता है.
कुछ समय पहले बस्तर और दंतेवाड़ा में कड़कनाथ की काफी चर्चा थी. बताया गया कि यह काफी टेस्टी होता है. जिसमें बाद मैंने भी इसे खाने की इच्छा जताई, लेकिन इस समय कहीं भी कड़कनाथ नहीं मिल रहा है -थमीर कश्यप, स्थानीय युवा
कड़कनाथ के बारे में काफी सुना था. 2 से 3 साल पहले चिकन दुकानों में इसे देखा और उसके बारे में जानकारी ली. कड़कनाथ खरीदा और खाया, काफी अच्छा लगा. लेकिन मार्केट में कहीं भी कड़कनाथ देखने को नहीं मिल रहा है.- हीरू नाग, स्थानीय युवा
बस्तर में गायब हुई कड़कनाथ योजना: अब सवाल उठता है कि इतनी खासियत होने के बाद भी कड़कनाथ बाजारों से गायब कैसे हो गया. जबकि साल 2021-22 में छत्तीसगढ़ सरकार ने नरवा गरुवा घुरुवा बाड़ी योजना के अंतर्गत बस्तर में कड़कनाथ पालन की योजना शुरू की थी. बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले ने कड़कनाथ मुर्गे के जीआई टैग के लिए मध्यप्रदेश से लंबी लड़ाई भी लड़ी थी.
दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार के निर्देश पर दंतेवाड़ा में 50 लाख रुपए से ज्यादा की लागत से कड़कनाथ पालन केंद्र शुरू किया गया. विभिन्न स्वसहायता समूह के साथ लोगों को कड़कनाथ के चूजे बांटे गए. बड़ी जोर शोर से इसकी ब्रांडिंग भी की गई. इसके लिए मिले बजट से शेड बनाए गए. चूजे खरीदे और कड़कनाथ से करोड़ों कमाने का नुस्खा भी ग्रामीणों को बताया लेकिन इसमें कुछ फायदा नहीं हुआ और योजना ठंडे बस्ते में चली गई. सरकार को उम्मीद थी कि स्वसहायता समूह के जरिए कड़कनाथ का बाजार तेजी से बढ़ेगा और महिलाएं भी इससे अच्छी कमाई करेंगी. लेकिन बस्तर में इसके उलट हुआ.
“बस्तर रीजन के किसानों की डिमांड पर साल 2021- 2022 में कड़कनाथ योजना शुरू की गई. कड़कनाथ योजना शुरू करने के बाद मुर्गी पालकों को साल 2012-22 में बस्तर में कड़कनाथ के 6953 चूजों का वितरण किया गया.
2022-2023 में 17916 चूजों का वितरण किया गया. वहीं साल 2023-24 में 8278 चूजों का वितरण किया गया. साल 2024 में देखा गया कि कड़कनाथ की वैसी डिमांड नहीं है जैसी कल्पना की गई थी. जिसके बाद साल 2024 मार्च में ये योजना बंद कर दी गई.”-अरुण देवांगन, संभागीय कुक्कुट पालन प्रबंधक
कड़कनाथ का दाम ज्यादा और आमदनी कम: संभागीय कुक्कुट पालन प्रबंधक ने बताया कि कड़कनाथ के चूजे की कीमत ज्यादा थी. यदि कोई कड़कनाथ खरीदकर खाना चाहता था तो इसकी कीमत भी काफी ज्यादा थी. कड़कनाथ के अंडा उत्पादन की क्षमता दूसरे चिकन के मुकाबले कम थी. कड़कनाथ 90 से 95 अंडे दे सकता है जबकि ब्रायलर चिकन 250 से 300 अंडे देती है. कड़कनाथ का वजन डेढ़ किलो होता था. जबकि दूसरे चिकन का वजन ढाई से 3 किलो होता था. वजन कम होने के साथ ही कड़कनाथ की कीमत 1000 रुपये से ज्यादा थी. जबकि देसी मुर्गे आधे कीमत पर चिकन प्रेमियों को मिलते थे. जिससे लागत ज्यादा और लाभ कम होने से किसानों ने कड़कनाथ की डिमांड कम की. जिसके बाद उच्च कार्यालयों को पत्र लिखकर कड़कनाथ योजना बस्तर में बंद कर दी गई.