रायपुर:- छत्तीसगढ़ वन विभाग ने एक ऐसे मामले में चौंकाने वाली दलील दी है, जिसे जानकर हर जागरूक नागरिक हैरान है. राजनांदगांव के डोंगरगढ़ में 7 मई को पकड़े गए तेंदुए को कहां छोड़ा गया . इस साधारण से सवाल पर सूचना के अधिकार (RTI) में जवाब देने से मना कर दिया गया. विभाग ने RTI अधिनियम की धारा 8(1)(a) का हवाला देते हुए कहा कि इस जानकारी के सार्वजनिक होने से भारत की प्रभुता, अखंडता, सुरक्षा और विदेश से संबंध पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
पूरी घटना को समझिए: दरअसल डोंगरगढ़ की सुदर्शन पहाड़ी से 7 मई को एक तेंदुआ पकड़ा गया, जिसे किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट कर दिया गया. इसके बारे में रायपुर के नागरिक नितिन सिंघवी ने RTI लगाकर जानकारी मांगी कि तेंदुए को कहां छोड़ा गया है. जवाब मिला “जानकारी नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे भारत की अखंडता पर प्रभाव पड़ सकता है.” वन विभाग ने यह भी बताया कि वन्यप्राणी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, यह सूचना गोपनीय रखी गई है. लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी तेंदुए की छोड़ी गई लोकेशन, देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला हो सकता है.
क्या है भारत सरकार की गाइडलाइन?: भारत सरकार की गाइडलाइन कहती है, कि तेंदुए को उसके रहवास क्षेत्र से अधिकतम 10 किलोमीटर दूर छोड़ा जाना चाहिए, ताकि वह मानसिक दबाव में न आए और स्थानीय परस्थिति में संतुलन बना रहे. लेकिन छत्तीसगढ़ में तेंदुओं को 200-300 किलोमीटर दूर छोड़ा जा रहा है. कभी गरियाबंद से पकड़ कर अचानकमार्ग टाइगर रिजर्व में, तो कभी डोंगरगढ़ से कहीं और छोड़ा जा रहा है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?: विशेषज्ञों के मुताबिक, रहवास क्षेत्र से दूर छोड़े गए तेंदुए तनाव, भूख और संघर्ष के कारण आक्रामक हो सकते हैं, जिससे इंसानों और अन्य वन्यजीवों को भी खतरा होता है.
तेंदुए को हिंसक बताकर पकड़ा, लेकिन नहीं दे पाए सबूत: वन विभाग ने तेंदुए को पकड़ने की मंजूरी “हिंसक वन्यप्राणी” बताकर ली, लेकिन RTI में पूछे जाने पर खुद स्वीकार किया कि ऐसा कोई दस्तावेज कार्यालय में मौजूद नहीं है, जो तेंदुए को हिंसक घोषित करता हो. जबकि तेंदुआ 5 दिन तक पहाड़ी के आसपास शांतिपूर्वक रहा और किसी भी तरह की जनहानि नहीं हुई.
वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने खोला मोर्चा: अब इस घटना को लेकर वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने मोर्चा खोल दिया है. वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने इस जवाब को लेकर प्रथम अपील दायर कर दी है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आखिर वन विभाग किस आधार पर सामान्य जानकारी को राष्ट्र की सुरक्षा का मुद्दा बताकर छिपा रहा है.
छत्तीसगढ़ के वन विभाग पर उठे सवाल: बहरहाल देश में पारदर्शिता और जवाबदेही की बात करने वाली संस्थाएं जब वन्यप्राणियों की जानकारी छिपाने के लिए भारत की प्रभुता जैसी संवैधानिक शब्दावली का सहारा लेती है, तो यह सोचने की जरूरत है कि वास्तव में क्या छुपाया जा रहा है?. क्या वन्यजीवों की ट्रांसलोकेशन में लापरवाही पर पर्दा डाला जा रहा है? या फिर जवाबदेही से बचने की कोशिश है.