16 साल पहले फर्जी मुठभेड़ में व्यक्ति की हत्या करने के दोषी तत्कालीन थाना प्रभारी पवन सिंह, एसआई पाल सिंह ठेनुआ, सरनाम सिंह, राजेंद्र प्रसाद और जीप चालक मोहकम सिंह को विशेष सीबीआई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। पांचों पर अदालत ने 38 – 38 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाया है। इसके अलावा साक्ष्य मिटाने के दोषी चार पुलिसकर्मियों हत्या के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन साक्ष्य मिटाने और झूठी सूचना देने के मामले में 5 – 5 साल की सजा और 11- 11 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाया है।
13 साल चली सुनवाई में 202 लोगों की गवाही के बाद साबित हुआ कि सिपाही राजेंद्र ने राजाराम से अपने घर की रसोई में काम कराया था। राजाराम ने मजदूरी के पैसे मांग लिए थे। सिपाही ने मना किया तो राजाराम अड़ गया था। इसी पर सिपाही ने साजिश रच ली। राजाराम पर एक भी केस दर्ज न होने के बावजूद सिढ़पुरा थाने की पुलिस ने उसे लुटेरा बताया। उसका शव परिवारवालों को देने के बजाय खुद ही अज्ञात में दाह संस्कार कर दिया था।राजाराम की पत्नी संतोष कुमारी ने बताया था कि उसके पति को थाना सिढ़पुरा जिला एटा के पुलिसकर्मी पवन सिंह, पालसिंह ठेनुवा, अजंट सिंह, सरनाम सिंह और राजेन्द्र प्रसाद ने 18 अगस्त 2006 को दोपहर तीन बजे उठा लिया था।
उस समय वह पति राजाराम, जेठ शिव प्रकाश, देवर अशोक उसने बताया कि उसने पति को पुलिस से छुड़ाने का प्रयास किया, लेकिन पुलिसकर्मियों ने कहा कि पूछताछ के लिए ले जा रहे हैं, अगले दिन छोड़ देंगे। 28 अगस्त 2006 को थाना सिढ़पुरा की पुलिस ने एक लुटेरे की मुठभेड़ में मौत बताई। उसके शव को अज्ञात में जला देने के बाद बताया कि वह राजाराम था। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सीबीआई जांच के आदेश दिए।
2007 में जांच शुरु कर सीबीआई ने 2009 में सिढ़पुरा के तत्कालीन थाना प्रभारी पवन कुमार सिंह सहित दस पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। सुनवाई के दौरान आरोपी दरोगा अजंट सिंह की मृत्यू हो गई। नौ पुलिसकर्मी हत्या और साक्ष्य मिटाने के दोषी सिद्ध हुए। राजाराम के खिलाफ किसी भी थाने में कोई केस दर्ज नहीं था। वह पुलिसवालों के घर भी फर्नीचर की मरम्मत का काम करता था। इसके बावजूद उसे लुटेरा बताकर मुठभेड़ में उसकी हत्या की।