छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण पर बड़े आदिवासी नेता और कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा को कल बस्तर में विरोध का सामना करना पड़ा. नतीजन लखमा को वादा करना पड़ा कि यदि वे आदिवासियों को लाभ नहीं दिला पाएंगे तो राजनीति से संन्यास ले लेंगे. प्रदेश में आदिवासी कई मुददों पर उबले हुए हैं और राज्य सरकार से खासे नाराज चल रहे हैं.
महीनों तक हसदेव, सिलगेर आदि जगहों के आदिवासी अपने जल- जंगल- जमीन के मालिक है या नही? इसे लेकर वे विरोध कर रहे हैं. इसके अलावा वे पूछ रहे हैं कि यदि मालिक हैं तो फिर अडानी जैसे कारपोरेट के लिए इनके संवैधानिक अधिकारों की धज्जियां उड़ाकर उन्हें विस्थापित क्यों किया जा रहा है? यह आंदोलन काफी महीने तक चला था. जो तस्वीर आप देख रहे हैं, वह पिछले माह रायपुर में आदिवासियों के आंदोलन की है।
यह आंदोलन जैसे तैसे ठंड़ा पडा तो अब आदिवासी आरक्षण का मुददा जोर पकड़ रहा है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण पर बड़े आदिवासी नेता और कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा को कल बस्तर में विरोध का सामना करना पड़ा था और अब लखमा कह रहे है कि आदिवासियों को लाभ नहीं दिला पाएंगे तो राजनीति से संन्यास ले लेंगे ।
प्रदेश के पूर्व मंत्री तथा भाजपा महामंत्री केदार कश्यप ने एक टिवट करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ कांकेर में आरक्षण कटौती के मुद्दे पर आदिवासी समाज ने मंत्री कवासी लखमा व कांग्रेस उम्मीदवार को घेरा, सरकार के खिलाफ़ जमकर नारेबाजी की.
उन्होंने कहा कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत. कवासी लखमा ने खुद ही स्वीकार कर लिया कि के.पी खांडे को अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाना आदिवासियों के साथ गलत हो गया।