नई दिल्ली:– पिछले कुछ समय से कई चीजों में चीन आगे बना हुआ है। हमें भी कई बार कुछ खास चीजों के लिए चीन का मुंह देखना पड़ता है। और चीन है कि कई बार उन चीजों के लिए आंख दिखा देता है। जैसा इस समय रेयर अर्थ मेटल्स को लेकर हो रहा है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब हमें न तो चीन का मुंह देखना होगा और न ही उससे मिन्नतें करनी होंगी। भारत के हाथ भी रेयर अर्थ मेटल्स का खजाना लग गया है।
अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों में दो नदियां बहती हैं। इनके नाम पापुम (Papum) और पारे (Pare) हैं। ये नदियां अभी तक ज्यादा जानी नहीं जाती हैं। लेकिन, जल्द ही ये पूरे देश में चर्चा का विषय बन सकती हैं। दरअसल, पापुम पारे जिले में रेयर अर्थ मेटल्स (REEs) का भंडार मिला है। इस जिले का नाम इन्हीं नदियों के नाम पर रखा गया है। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार जून में खान मंत्रालय ने एक पुस्तिका जारी की। इस पुस्तिका में बताया गया है कि इस क्षेत्र में नियोडिमियम की मात्रा बहुत ज्यादा है। नियोडिमियम एक जरूरी तत्व है। यह इलेक्ट्रिक वाहनों और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स में काम आता है। रेयर अर्थ मेटल्स का इस्तेमाल मैग्नेट आदि बनाने में होता है।
बदल जाएगी तस्वीर
अगर पापुम पारे में REEs का भंडार निकाला जाता है, तो इससे गुड़गांव, पुणे और चेन्नई जैसे शहरों में इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) और ऑटोमोबाइल उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है। और यह तो बस शुरुआत है।
असम के कार्बी आंगलोंग में भी REE से भरपूर मिट्टी मिली है। मेघालय की सुंग घाटी में बॉक्साइट-REE बेल्ट का पता चला है। कोयला और खान मंत्री किशन रेड्डी ने पिछले महीने संसद को बताया कि मध्य प्रदेश के सिंगरौली कोयला क्षेत्र में भी ‘आशाजनक’ REE के भंडार मिले हैं।
कई हिस्से में मौजूद हैं ये मेटल्स
इन खोजों से पता चलता है कि भारत में रणनीतिक धातुएं सिर्फ समुद्र के किनारे की रेत, लाल रेत या आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की जलोढ़ मिट्टी तक ही सीमित नहीं हैं। ये भारत के अंदरूनी हिस्सों में भी मौजूद हैं। ये जंगल, पहाड़ और कोयला क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं।
चीन पर काफी निर्भरता
रेयर अर्थ मेटल्स की सप्लाई पर चीन ने भारत पर रोक लगा रखी है। इससे इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली कंपनियों को काफी परेशानी हो रही है। इसके बाद भारत ने इन नए स्थानों की पहचान की है। दरअसल, भारत रेयर अर्थ मैग्नेट के लिए चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है। इसका करीब 85 से 90% आयात चीन से ही होता है। रेयर अर्थ मैग्नेट का निर्माण रेयर अर्थ मेटल्स से किया जाता है।
कहां आ रही रुकावट?
भारत दुर्लभ पृथ्वी के भंडार के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है। पहले दो स्थान चीन और ब्राजील के हैं। लेकिन, जब उत्पादन और शोधन की बात आती है तो आंकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं।
साल 2024 तक चीन दुनिया के लगभग 70% दुर्लभ पृथ्वी का खनन करता है। इसके साथ ही 90% शोधन क्षमता पर उसका नियंत्रण है। यह जानकारी अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के आंकड़ों से मिली है। भारत का उत्पादन हिस्सा 1% से भी कम है। ऐसे में भारत को अभी रेयर अर्थ मेटल्स के उत्पादन और शोधन में काफी काम करना होगा।