केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 1 अप्रैल को पूरे देश में निजीकरण और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं की प्रतियां जलाने का आह्वान किया है। अखिल भारतीय किसान सभा और इससे संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा ने इस आह्वान का समर्थन करते हुए किसानों से अपील की है कि वे मजदूरों के इस आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर भागीदारी करें, ताकि मोदी सरकार की कॉर्पोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ संघर्ष तेज किया जा सके।आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि ये चारों श्रम संहिताएं हमारे देश के संविधान द्वारा मजदूरों को दिए गए बुनियादी अधिकारों से वंचित करती है तथा उन्हें कॉर्पोरेट गुलामी की ओर धकेलती है। ये श्रम संहिताएं मजदूरों के लिए आठ घंटे के कार्य दिवस, उनके ट्रेड यूनियनों में संगठित होने और उनकी बेहतरी के क्लियर सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार और हड़ताल करने के अधिकारों को खत्म करती है। ये वे अधिकार हैं, जिन्हें मजदूरों ने एक लंबे संघर्ष के बाद हासिल किया था। श्रम कानूनों को खत्म करने और उसकी जगह श्रम संहिताओं को लाने का एकमात्र मकसद कॉर्पोरेट पूंजी को आम जनता और मजदूरों के हितों की कीमत पर मुनाफा कमाने का मौका देना है।किसान सभा नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार महंगाई, आर्थिक संकुचन और बेरोजगारी को नियंत्रित करने में असफल साबित हुई है। निश्चित अवधि के रोजगार और वेतन में कमी के जरिये उसने वर्तमान में मजदूरों को उपलब्ध सामाजिक सुरक्षा में भी में भी बड़े पैमाने पर कटौती की है। यह सरकार निजीकरण और उदारीकरण की जिन नीतियों पर अमल कर रही है, उससे राष्ट्रीय संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों की लूट तेज हुई है और देश की स्वतंत्रता, संप्रभुता व आत्मनिर्भरता खतरे में पड़ गई है। उन्होंने कहा कि इन नीतियों को शिकस्त देने का यही तरीका है कि मजदूरों और किसानों के बीच व्यापक एकता कायम की जाए, ताकि तीनों कृषि विरोधी कानूनों और चारों मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को वापस लेने के लिए चल रहे देशव्यापी आंदोलन को सफल बनाया जा सके। इसलिए किसान सभा 1 अप्रैल को देश के मजदूरों पर थोपे जा रहे श्रम संहिताओं के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के आंदोलन में पुरजोर शिरकत करेगी।