मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर :- क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि किसी गांव का जिम्मा एक नहीं दो सरपंच संभालते हो.लेकिन ये सच है.क्योंकि मनेंद्रगढ़ के एक गांव में सरपंच ने अपने लिए एक प्रतिनिधि नियुक्त कर लिया है.जो सरपंच के जैसे ही फैसले ले रहा है. मनेंद्रगढ़ जनपद की ग्राम पंचायत पेंड्री में कुछ ऐसा ही अनोखा और नियम विरुद्ध मामला सामने आया है.जिसने न केवल प्रशासन को हैरत में डाल दिया है बल्कि गांववालों को भी असमंजस में डाल दिया है कि वे किसे अपना असली सरपंच माने.
बिना अधिकार बनाया सरपंच प्रतिनिधि : पेंड्री पंचायत की निर्वाचित सरपंच फुलकुंवर ने बाकायदा एक लिखित पत्र जारी कर देवनंदन प्रसाद यादव नामक व्यक्ति को अपना “प्रतिनिधि” नियुक्त कर दिया है.खास बात ये है कि पंचायती राज अधिनियम में ऐसा कोई भी प्रावधान मौजूद नहीं है, जिससे कोई भी सरपंच इस तरह से अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर सके. ऐसे में इस निर्णय ने न केवल नियमों की अनदेखी की है, बल्कि पूरे गांव को दोहरी सत्ता की स्थिति में ला खड़ा किया है.
पंचायत सचिव भी हैरान : ग्राम पंचायत पेंड्री के सचिव शिव गोपाल ने स्पष्ट रूप से कहा कि पंचायत अधिनियम में ‘सरपंच प्रतिनिधि’ जैसी कोई व्यवस्था नहीं है.
यह पूरी तरह से नियम के विरुद्ध है.सरपंच को ऐसा अधिकार नहीं है कि वह स्वयं के लिए कोई प्रतिनिधि नियुक्त करे. यह सिर्फ मौखिक तौर पर किया गया है, लेकिन इसका कोई वैधानिक आधार नहीं है- शिव गोपाल,सचिव
जब इस संबंध में सरपंच फुलकुंवर से पूछा गया तो उनका जवाब और भी चौंकाने वाला था.
मुझे नियमों की जानकारी नहीं है. लोगों ने कहा कि प्रतिनिधि बना दो, तो मैंने बना दिया. मुझे ये भी नहीं पता कि हमारे गांव की आबादी कितनी है. बस मैंने नियुक्त कर दिया- फुलकुंवर,सरपंच
इस बयान ने साफ कर दिया है कि न केवल यह निर्णय अवैध है, बल्कि सरपंच को अपने पद की जिम्मेदारियों और अधिकारों की भी पर्याप्त समझ नहीं है.
वहीं स्वयंभू सरपंच प्रतिनिधि देवनंदन प्रसाद यादव ने भी इस फैसले को लेकर खुशी जाहिर की. लेकिन वे भी इस भूमिका की कानूनी वैधता से अनभिज्ञ दिखे.
गांव का विकास तेज होगा, काम तेजी से होंगे. मुझे सरपंच जी ने मौका दिया है, तो मैं प्रतिनिधि के रूप में काम करूंगा. बाकी मुझे नियमों की जानकारी नहीं है- देवनंदन प्रसाद यादव, सरपंच प्रतिनिधि
किसे माने असली सरपंच? : ग्राम पंचायत पेंड्री की कुल आबादी एक हजार से भी कम है और यह पंचायत जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित है। ऐसे में गांववालों की समस्या ये हो गई है कि वे अपने कामों के लिए किसके पास जाएं. निर्वाचित सरपंच के पास या उसके द्वारा नियुक्त अनधिकृत प्रतिनिधि के पास. ग्रामीणों का कहना है कि दोनों ही अब अपने-अपने हिसाब से निर्णय लेने लगे हैं. कोई फाइल सरपंच के पास जाती है, तो कोई प्रतिनिधि के पास अटक जाती है.
ये पूरा मामला क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है. एक निर्वाचित पदाधिकारी के इस प्रकार का निर्णय लेना ना केवल शासन की मंशा के खिलाफ है, बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना का उल्लंघन भी है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनपद पंचायत या जिला प्रशासन इस पर कोई संज्ञान लेता है या यह अजीबोगरीब व्यवस्था यूं ही चलती रहेगी.