नई दिल्ली :- महिलाएं, मर्डर और रिश्तों की मिस्ट्री: 1. कर्नाटक के पूर्व DGP ओम प्रकाश को उनकी ही पत्नी ने मौत के घाट उतार दिया है. पत्नी पल्लवी की गिरफ्तारी के बाद सामने आया है कि कथित तौर पर पत्नी ने पहले आंखों में मिर्ची पाउडर झोंका, फिर उन्हें रस्सी से बांधा और चाकू घोंपकर हत्या कर दी. 68 साल के इस रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी पर कांच की बोतल से भी हमला किया गया था. 2. वहीं यूपी के देवरिया से खबर आ रही है कि रजिया ने अपने पति नौशादी की हत्या कर दी है. इस मर्डर में उसके लवर ने उसका साथ दिया है. 3. 18 अप्रैल को उत्तर प्रदेश से खबर आई कि एक पत्नी ने चूहे मारने की दवा चाय में मिलाकर पति को दे दी और फिर लवर को वीडियो कॉल भी किया. 4. वहीं 22 साल की प्रगति यादव ने शादी के 2 हफ्ते के भीतर ही प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या की सुपारी दे डाली… इन सारी घटनाओं के बारे में पढ़कर कुछ चीजें मोटे तौर पर सामने आ रही हैं. महिलाएं, हत्याएं और क्रूरता…
मुस्कान के ‘नीले ड्रम’ से निकला पतियों की क्रूरता से हत्या का जिन्न अब लगातार बड़ा होता जा रहा है. ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाएं पहले नहीं होती थीं, लेकिन पिछले कुछ महीनों में बढ़ी महिलाओं द्वारा पतियों की हत्या की खबरों में जिस बर्बरता का जिक्र आ रहा है, वो हैरान करने वाला है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि पतियों को ‘परमेश्वर’ मानने वाली संस्कृति में ओत-प्रोत रहीं ये औरतें अचानक उनकी जान की दुश्मन हो गई हैं? क्या समाज बदल गया है, या आजादी की तलाश में निकली ये महिलाएं भटक गई हैं. ये गुस्सा कहां पनप रहा है, जब पतियों को रास्तें से हटा मनमाने रिश्तों की ओर बढ़ने को आतुर ये लेड़ीज ‘हत्या’ जैसा कृत्य करने से भी नहीं घबरा रही हैं
मुंबई के सायकायट्रिसट, डॉ. सागर मुंदड़ा बताते हैं, ‘इस तरह की घटनाएं एक दिन का परिणाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे लंबे समय का सामाजिक बदलाव और कई कारण हैं. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं.
- महिला हों या पुरुष नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी (Narcissistic Personality) आपको सभी में नजर आ जाएगी. नार्सिसिस्ट होना एक ऐसा personality disorder है, जिसमें व्यक्ति खुद से हद से ज्यादा प्यार करता है, खुद को बहुत खास समझने की भावना रखता है और दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी होती है. इसे मनोविज्ञान में Narcissistic Personality Disorder (NPD) कहा जाता है. सालों तक समाज में महिलाओं पर कई तरह के अंकुश लगे हैं, लेकिन लाखों महिलाएं इस नए बदलाव में खुद को शिक्षित कर रही हैं, नौकरियां कर रही हैं, आगे बढ़ रही हैं. वहीं कई बार आजादी या सशक्तता का गलत अर्थ लगा कर कुछ महिलाएं हत्या या बर्बरता जैसे कड़े कदम भी उठा रही हैं. ‘मैं ही सही हूं’, ‘मैं ही क्यों सहूं’ जैसे विचार अब इतने पुष्ट हो गए हैं कि सामाजिक बंधन और नियमों को तोड़ना ही आजादी का अर्थ हो गया है. सिनेमा में भी आजाद, जिंदादिल, मुंहफट और बेबाक लड़कियां इंपावरमेंट का नया चेहरा हैं. कई महिलाएं समाज में आ रहे इस खुलेपन या स्वतंत्रता को अपनी ही परिभाषा दे रही हैं.
- सोशल मीडिया: आपने कभी गौर किया होगा कि पति या पत्नी की लड़ाई के बाद, पति के मोबाइल पर पत्नियों के अत्याचार के खिलाफ और पत्नियों के फोन पर पतियों के शोषण के खिलाफ रील्स या कंटेंट भर-भरकर आने लगता है. ये इत्तेफाक नहीं है. दरअसल सोशल मीडिया सही या गलत नहीं, बल्कि वो दिखाता है ‘जो आप देखना चाहते हैं.’ ये जादू नहीं, बल्कि सोशल मीडिया एल्गोरिदम है. ऐसे में अगर आपके मन में एक बार ख्याल आता है कि आपके साथ अत्याचार हो रहा है, या आप शोषित हैं तो सोशल मीडिया आपको भर-भरकर आपको ऐसा कंटेंट दिखाएगा, जो साबित कर देगा कि आप पीड़ित हैं और अब जो भी कदम इस शोषण के खिलाफ उठाएंगे, वो सही है. इंटरनेट आपको वही दिखाता है, जो आप कंज्यूम करते हैं और यही वजह है कि आप सही या गलत में फैसला लेने के बजाए ‘अपनी ही सोच को और पुष्ट’ करते चले जाते हैं. इंटरनेट के इस प्रभाव से महिलाएं भी अछूती नहीं रही हैं. अगर किसी ‘मुस्कान’ ने एक बार ये सोच लिया कि उसका पति उससे दूर है, उसे समय नहीं देता. तो सोशल मीडिया पर ऐसे हजारों रील्स हैं जो आपको बार-बार उसके इस विश्वास को पक्का कर देंगे कि ‘अपनी जिंदगी जियो, भाड़ में जाने दो पति को और अपना प्यार पाने के लिए कर दो सारी हदें पार…’ सोशल मीडिया आपके इस ‘काल्पनिक जगत’ को सही साबित कर देता है और पुख्ता करता है कि आप जो भी कदम उठाने वाले हैं, वही सही है.
- मध्यम वर्ग की महिलाओं का विद्रोह: आप एक और बात पर ध्यान दीजिए कि इन सारी घटनाओं में जो महिलाएं हैं, वो किसी बड़े घर की या कोई इंफ्लूएंशन महिलाएं नहीं हैं. बल्कि ये सब मध्यम वर्ग की ऐसी महिलाएं हैं, जो छोटे शहरों से हैं. ये देखना इसलिए जरूरी है कि क्योंकि अगर हम सामाजिक ढांचे को देखे तो मध्यम वर्ग की महिलाओं पर ही सारे नियम लादे गए थे. वही सालों से दबी रही हैं. छोटे शहरों की ये महिलाएं सालों से बंधनों में बंधी रही हैं. अब सोशल मीडिया का एक्सेस हर किसी के पास है, इसमें सामाजिक स्तर का या छोटे शहरों का कोई कनेक्शन नहीं है. लेकिन इन महिलाओं ने अपनी माओं को, दादियों को मर्दवाद और पितृसत्तात्मक समाज से शोषित होते हुए देखा है. ऐसे में ये वो पहली जनरेशन है जो इस सामाजिक दबाव से, बंधन से बाहर निकली है. तो ऐसे में अगर किसी गुस्सैल या नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी वाली लड़की ने पिता से उसकी मां को प्रताड़ित होते देखा है, तो उसके दिमाग में ये और भी ज्यादा पुख्ता हो जाता है कि ‘मैं खुद के साथ ये हरगिज नहीं होने दूंगी.’ ऐसे में कई बार 10% बंधन पर भी वह ऐसे रिएक्ट करती हैं जैसे उन्हें बुरी तरह दबा रखा है.
- महिलाओं में एडिक्शन की आदत भी बहुत बढ़ गया है. शराब, स्मोकिंग और वीड ऐसी चीज है, जिसका इस्तेमाल अब महिलाओं में भी बहुत ज्यादा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है. इस तरह के एडिक्शन भी एक्सट्रीम बिहेवियर की वजह बनते हैं. इस तरह के नशे में भी कई बार महिलाएं हदें पार कर जाती हैं.