कोरबा। छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक महत्वाकांक्षी सपने को ग्रहण लग गया है। खनन प्रभावित क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए घोषित डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फंड यानी DMF, नेताओं की स्वार्थपरता और नौकरशाहों की मनमानी त भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है। कहावत हैं, चावल के एक दाने को छूने से ही पता चल जाता है रसोई पकी है या नहीं? इसी तरह DMF से जुड़ा मामला ही इसमें बरती जा रही अनियमितता का पूरा सच उजागर कर देता है।

कोरबा जिले की पूर्व कलेक्टर रानू साहू) सहित 6 आरोपियों को सुप्रीमकोर्ट से जमानत मिलने के बाद सेंट्रल जेल रायपुर से रिहा किया गया है। रानू साहू करीब दो वर्ष बाद जेल से रिहा हुई है। इस आई. ए. एस. पर पूर्ववर्ती कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में हुए कोल स्कैम में शामिल होने और DMF में भ्रष्टाचार घोटाला करने का आरोप है।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में किये गए घोटालों की दो स्तर पर जांच हुई और अभी भी चल रही है। एक, प्रवर्तन निदेशालय (ED) और दूसरा आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) सह एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की। ACB- EOW ने स्पेशल कोर्ट में आईएएस रानू साहू, राज्य सेवा संवर्ग की अफसर सौम्या चौरसिया, माया वारियर और सूर्यकांत तिवारी सहित 9 लोगों के खिलाफ चार्ज शीट दायर किया है। एजेंसियों की जांच में खुलासा हुआ है कि डीएमएफ मद से काम को लेकर अलग- अलग टेंडर जारी करना और टेंडर देने के नाम पर बड़े स्केल में कमीशनखोरी की गई। इस धंधे में अफसरों के साथ राजनीति से जुड़े लोग भी शामिल हैं। सिफारिश पर ठेके दिलाने के एवज में कमीशन खाने वाले राजनीतिक दल से ताल्लुक रखने वाले सफेदपोश नेता, सबंधित ठेकेदारों को राजनीतिक संरक्षण देते थे। साथ ही इस बात की भी गारंटी देते थे कि किसी भी तरह की ऊंच-नीच होने पर वे,मामले को संभाल लेंगे।
DMF में हो रहे भ्रष्टाचार का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि ठेकेदारों को काम देने के एवज में 25 से 40 फीसदी तक कमीशन लिया जाता था। यह राशि भी एडवांस में ली जाती थी। इसके बाद विभागीय अधिकारी संबंधित ठेकेदार के लिए टेंडर मैनेज करते थे। यानी यह सुनिश्चित किया जाता था कि टेंडर कमीशन देने वाले को ही मिले। ये ठेकेदार भी ऊपर से सिफारिश के साथ भेजे जाते थे। यानी ऊपर भी ठेकेदार से लाभ लेकर जिले में भेजा जाता था। आशय यह कि नेताओं और अफसरों को आर्थिक लाभ दिए बिना किसी को कोई काम नहीं मिलता था। इसके अलावे जिस विभाग के अंतर्गत काम होता था, वहां भी कमीशनखोरी होती थी।
कोरबा जिले में हुए DMF घोटाले की जांच के बाद ED ने अपनी रिपोर्ट में आईएएस रानू साहू को पद का गलत इस्तेमाल का दोषी पाया है। रानू साहू कोरबा की कलेक्टर थी। उनके कार्यकाल के दौरान ही DMF में जमकर घोटाला हुआ था। घोटाले में रानू साहू की करीबी आदिवासी विकास विभाग की सहायक आयुक्त माया वारियर की मुख्य भूमिका थी। यही वजह है कि DMF घोटाले की जांच कर रहे ED ने जांच के दौरान रानू साहू और माया वारियर सहित अन्य आरोपियों की 23.79 करोड़ रुपए की संपत्ति को कुर्क किया। इसमें 21.47 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति पाया गया था। यह संपत्ति DMF घोटाले से अर्जित की गई ब्लैक मनी से खरीदी गई थी।
DMF से अलग-अलग टेंडर आवंटन में बड़े स्तर पर आर्थिक अनियमितता की गई है। टेंडर भरने वालों को अवैध लाभ पहुंचाया गया। ऐसे लोगों में संजय शिंदे,अशोक कुमार अग्रवाल,मुकेश कुमार अग्रवाल, ऋषभ सोनी और बिचौलिया मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल और शेखर नाम के लोगों के साथ मिलकर कमीशनखोरी की गई। जांच में कई आपत्तिजनक विवरण, फर्जी स्वामित्व इकाई और तलाशी अभियान के दौरान 76.50 लाख कैश बरामद किया गया। साथ ही 8 बैंक खाते सीज किए गए। इन खातों में 35 लाख रुपए हैं। इसके अलावा फर्जी डमी फर्मों विभिन्न स्टाम्प, अन्य आपत्तिजनक दस्तावेज डिजिटल डिवाइस भी जब्त किए गए हैं।
छत्तीसगढ़ DMF घोटाला मामले में निलंबित IAS रानू साहू, छत्तीसगढ़ राज्य सेवा की अधिकारी माया वॉरियर, NGO के सेक्रेटरी मनोज कुमार द्विवेदी, जनपद पंचायत CEO राधेश्याम मिर्झा, भुवनेश्वर सिंह राज, वीरेंद्र कुमार राठौर, डिप्टी कलेक्टर और DMF के नोडल अधिकारी
भरोसाराम ठाकुर को भी गिरफ्तार किया गया है। ED की रिपोर्ट के आधार पर EOW ने धारा 120 बी और 420 के तहत केस दर्ज किया है। जांच के दायरे में लिया गया कोरबा का DMF घोटाले 2021-22 और 2022-23 का है। इस अवधि में रानू साहू कोरबा कलेक्टर के पद पर थी। कारोबारी मनोज द्विवेदी ने तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू से संपर्क किया। कलेक्टर की सहमति के बाद द्विवेदी ने अन्य अफसरों को अपने साथ मिला लिया। जब सब-कुछ कारोबारी मनोज द्विवेदी के अनुकूल हो गया तब 2021-22 और 2022-23 में मनोज ने अपने NGO उदगम सेवा समिति के नाम पर DMF से की ठेके ले लिया। मनोज ने ठेके हथियाने के लिए दरियादिली भी दिखाई। कमीशनखोर अफसरों का बकायदा कमीशन बांध दिया। अधिकारियों को 42 प्रतिशत तक कमीशन दिया गया।
शुरुआत
जिला खनिज फाउंडेशन (DMF) योजना 2015 में शुरू की गई थी। इस योजना को खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2015 के तहत स्थापित किया गया था।
DMF एक गैर-लाभकारी ट्रस्ट है, जिसे राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया जाता है। यह योजना 12 जनवरी, 2015 से लागू हुई।
योजना का उद्देश्य
खनन गतिविधियों से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना।
उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों जैसे पेयजल आपूर्ति, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल में विकास कार्यों को बढ़ावा देना।
खनन प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के कल्याण के लिए काम करना।
स्थानीय समुदायों को प्राकृतिक संसाधनों से लाभान्वित करना.
खनिज अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देना।
राज्य सरकारों को खनिज अन्वेषण के लिए लाइसेंस जारी करने के लिए अधिकृत करना।
पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना।
मनमानी
छत्तीसगढ़ में अब तक करीब 15000 करोड़ रुपए DMF में प्राप्त हुए हैं, लेकिन इसका उपयोग कैसे किया गया, इस पर कोई पारदर्शिता नहीं है। कलेक्टर, नागरिक आवश्यकताओं पर कम और अपनी निजी रुचि के विषयों पर इस राशि का अधिक उपयोग करते हैं। मसलन कोरबा की पूर्व कलेक्टर किरण कौशल ने स्कूली छात्राओं के लिए “सोन चिरैया” योजना शुरू की। मिड डे मिल के अतिरिक्त करोड़ों रुपये अंडे वितरण में खर्च कर दिए। पूर्व कलेक्टर रानू साहू के कारनामे सबके सामने है। वर्तमान कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत भी इसी तर्ज पर स्कूलों में नाश्ता का वितरण करा रहे हैं। क्या केन्द्र सरकार की योजना कमतर है, जो इन्हें अतिरिक्त आहार का वितरण करना पड़ रहा है? क्या इस संबंध में, इन अफसरों ने कभी केन्द्र सरकार को अवगत कराया अथवा कोई सुझाव दिया? मतलब साफ है, योजना का उद्देश्य कुछ और ही है। केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत होने वाले विकास कार्य भी DMF से कराए जा रहे हैं।
DMF” नियमों के अनुसार, एकत्रित किए गए फंड का इस्तेमाल खनन प्रभावित लोगों के लाभ के लिए किया जाना था, लेकिन इस फंड का एक बड़ा हिस्सा जिले के दूसरे इलाकों में इस्तेमाल किया गया, जिनका खनन से कोई लेना-देना नहीं है।
DMF फंड का नेतृत्व और नियंत्रण राजनेताओं और जिला प्रशासन के हाथों में है, जिसमें स्थानीय लोगों की कोई भागीदारी नहीं है। खनन प्रभावितों को इस फंड के बारे में कोई जानकारी नहीं है। “इसमें बिल्कुल भी पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं है। वर्ष 2017-18 तक DMF में प्राप्त राशि, स्वीकृत कार्य, पूर्ण/अपूर्ण कार्य, भुगतान की गई राशि का विवरण जिले और प्रदेश के वेब साइड में अपलोड किया जाता था, जो 2018 से बंद है। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी नहीं दी जाती। आखिर, नौकरशाह क्या छुपाना चाहते हैं? प्रदेश के विधायक –सांसद, DMF में सदस्य हैं, लेकिन वे साशी परिषद की बैठक में अपव्यय का विरोध नहीं करते। योजनाओं के औचित्य पर सवाल नहीं उठाते। लेकिन पद से हटने के बाद भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं। DMF के तहत स्वीकृत कार्यों का सामाजिक ऑडिट कराने का प्रावधान है, लेकिन सामाजिक ऑडिट कभी नहीं कराया गया।”क्या केन्द्र सरकार की योजना कमतर है, जो इन्हें अतिरिक्त आहार का वितरण करना पड़ रहा है? क्या इस संबंध में, इन अफसरों ने कभी केन्द्र सरकार को अवगत कराया अथवा कोई सुझाव दिया? मतलब साफ है, योजना का उद्देश्य कुछ और ही है।
DMF” नियमों के अनुसार, एकत्रित किए गए फंड का इस्तेमाल खनन प्रभावित लोगों के लाभ के लिए किया जाना था, लेकिन इस फंड का एक बड़ा हिस्सा जिले के दूसरे इलाकों में इस्तेमाल किया गया, जिनका खनन से कोई लेना-देना नहीं है।
DMF फंड का नेतृत्व और नियंत्रण राजनेताओं और जिला प्रशासन के हाथों में है, जिसमें स्थानीय लोगों की कोई भागीदारी नहीं है। खनन प्रभावितों को इस फंड के बारे में कोई जानकारी नहीं है। “इसमें बिल्कुल भी पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं है। वर्ष 2017-18 तक DMF में प्राप्त राशि, स्वीकृत कार्य, पूर्ण/अपूर्ण कार्य, भुगतान की गई राशि का विवरण जिले और प्रदेश के वेब साइड में अपलोड किया जाता था, जो 2018 से बंद है। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी नहीं दी जाती। आखिर, नौकरशाह क्या छुपाना चाहते हैं? प्रदेश के विधायक – सांसद, DMF में सदस्य हैं, लेकिन वे साशी परिषद की बैठक में अपव्यय का विरोध नहीं करते। योजनाओं के औचित्य पर सवाल नहीं उठाते। लेकिन पद से हटने के बाद भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं। DMF के तहत स्वीकृत कार्यों का सामाजिक ऑडिट कराने का प्रावधान है, लेकिन सामाजिक ऑडिट कभी नहीं कराया गया।”
कदम – कदम पर रानू साहू
IAS और IPS अफसरों से आम आदमी, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और न्याय की उम्मीद रखते हैं। लेकिन इनमें “अशोक खेमका” कोई एक ही होता है। वर्ष 2015 के बाद DMF का संचालन करने वाले अफसरों की ईमानदारी से जांच की जाए, तो कदम – कदम पर रानू साहू मिलेंगे। आदर्श स्थिति यह मिलेगी कि इनमें कोई केवल कमीशन पर काम कर गया होगा। वरना फर्जी बाड़ा करने का उदाहरण अधिक मिलेंगे। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक राशि दंतेवाड़ा और कोरबा जिले के DMF में आती है। इन्हीं दो जिलों की केन्द्र सरकार CBI के किसी ईमानदार अधिकारी से जांच करा ले तो सच्चाई सामने आ जाएगी। कुल जमा मतलब साफ है – प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक महत्वाकांक्षी योजना को ग्रहण लग गया है और राज्य सरकार का कोई भी तंत्र – यंत्र इस मामले में कुछ भी सुनने – करने के लिए तैयार नहीं है।
कोरबा: पी. दयानंद से अजित वसंत तक DMF
कोरबा जिले में कलेक्टर पी. दयानंद के कार्यकाल में DMF की शुरुआत हुई। उन्होंने औद्योगिक शहर की जरूरत के हिसाब से काम प्रारम्भ किया। इसको बाद के कलेक्टर अब्दुल केसर हक़ ने आगे बढ़ाया। फिर आई किरण कौशल। इनके समय में कोरोना का संकट था। DMF से अन्य कार्य के अलावे कोरोना से निपटने में भी मदद ली गई। रानू साहू इन सबसे कम समय तक कोरबा में रही। इन सबसे कम फंड बुक किया, लेकिन कोल स्कैम और DMF घोटाले में जेल चली गई। कोई एक वर्ष तक यहां आशीष झा कलेक्टर रहे। वर्तमान में अजित वसंत पदस्थ हैं। DMF अभी भी किसी न किसी कारण से सुर्खियों में है।
DMF के वेब साइड में सन्नाटा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस महत्वपूर्ण योजना में पारदर्शिता के लिए DMF का सम्पूर्ण विवरण वेब साइड में अपलोड करने का निर्देश है। प्रारम्भ से लेकर 2018 तक इस निर्देश पर अमल होता रहा। लेकिन कोरोना काल में कलेक्टर किरण कौशल के वक्त यह प्रक्रिया बंद हो गई। सात वर्ष से यह बन्द ही है।प्रतिवर्ष 300 करोड़ रुपयों से अधिक राशि व्यय किये जा रहे हैं, लेकिन इन सबका विवरण वेब साइड में अपलोड नहीं किया जा रहा है। DMF परिषद में क्षेत्र के सांसद- विधायक सदस्य हैं। राज्य शासन का सीधा नियंत्रण है। मगर पारदर्शिता सुनिश्चित करने में किसी की रुचि नहीं है। इस मामले में सत्ता पक्ष और विपक्ष की जुगलबंदी वैसी ही दिखती है, जैसी सांसदों – विधायकों के वेतन भत्ते में वृद्धि के लिए हाउस में प्रस्ताव लाने पर नजर आती है। पक्ष- विपक्ष और तीसरा- चौथा खेमा, सब एकमत हो जाते हैं।
किरण की “सोन चिरैया”
उसकिरण कौशल ने अपने कार्यकाल में एक योजना शुरू की थी- “सोन चिरैया”। इस योजना का उद्देश्य स्कूली छात्राओं को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना था। स्कूलों में DMF से जमकर अंडे बांटे गए। अंडा का फंडा यह है कि जो अंडा एक सप्ताह तक सुरक्षित रखा जा सकता है, उसका प्रति अंडा मूल्य अगर 5 रुपए है, तो दो दिन के भीतर उपयोग लायक अंडा मात्र 50 पैसे में थोक में मिल जाता है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने छात्राओं में खूब अंडे बांटे। तब आए दिन समूहों से अंडे खराब होने की शिकायतें मिलती थीं, मगर सुनवाई कहीं नहीं होती थी।
अजीत वसंत का “गरम नाश्ता”
कोरबा के वर्तमान कलेक्टर अजीत वसंत स्कूली बच्चों के लिए DMF से “गरम नाश्ता” लेकर आए हैं। पिछले शिक्षा सत्र में कुछ खास क्षेत्र में “गरम नाश्ता” उपलब्ध कराए गए थे। नए शिक्षा सत्र में जुलाई माह से पूरे जिले में “गरम नाश्ता” से स्कूली बच्चों को शिक्षा अर्जन के लिए आकर्षित किया जाएगा। अजीत वसंत की शिक्षा के क्षेत्र में खास रुचि है। लिहाजा DMF मद से शिक्षा पर सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ काम करने की योजना पर मुहर लग चुकी है।