नई दिल्ली:– इस साल अक्टूबर यानी दिवाली के आसपास गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी सुधारों के साथ ही बीमा पॉलिसियों पर लगने वाला टैक्स खत्म हो सकता है। या फिर कम से कम 5 प्रतिशत की कटौती इंश्योरेंस पॉलिसी में की जा सकती है। इस कटौती के साथ ही बीमा पहले से ज्यादा किफायती हो जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि इससे लाखों लोगों की वित्तीय सुरक्षा में सुधार होगा और भारत में बीमा अपनाने
बीमा पर लगने वाले GST में कटौती का इंतजार लंबे वक्त से किया जा रहा है और सरकार इस पर अब गम्भीरता से विचार कर रही है। हमारे सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ऐसा होने से सालाना राजस्व में करीब 17000 करोड़ रुपये की कमी आएगी।
इसके अलावा, बीमा कंपनियों में भी इस बात को लेकर चिंता है कि अगर बीमा से जीएसटी को पूरी तरह खत्म कर दिया गया तो इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्लेम खत्म हो जाएगा जिससे बीमाकर्ताओं के लिए ऑपरेटिंग कॉस्ट बढ़ जाएगी।
हेल्थ इंश्योरेंस पर 18 प्रतिशत GST
इंडस्ट्री के दिग्गज काफी समय से हेल्थ, टर्म और ULIP इंश्योरेंस प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी की आलोचना करते रहे हैं। खासतौर पर हेल्थ और टर्म लाइफ इंश्योरेंस पर लगने वाले जीएसटी को खत्म करने की मांग होती रही है। अगर सरकार इंश्योरेंस प्रीमियम पर लगने वाले इस टैक्स को खत्म करती है या कम करके 5 प्रतिशत ले आती है तो इसके परिणाम दूरगामी हो सकते हैं- ना केवल ग्राहकों और इंश्योरेंस कंपनियों के लिए, बल्कि देश में पब्लिक हेल्थ और वित्तीय समावेशन के लिए भी।
नरेंद्र भरिंदवाल के मुताबिक, बीमा पर जीएसटी खत्म होने से पॉलिसी-धारकों के लिए प्रीमियम की लागत कम हो जाएगी और लाइफ, हेल्थ व जनरल इंश्योरेंस सेगमेंट में बीमा लेना किफायती होगा और इसे बढ़ावा मिलेगा। भरिंदवाल ने कहा, “पॉलिसी-धारक के दृष्टिकोण से, यह एक स्वागत योग्य कदम है जो ‘2047 तक सभी के लिए बीमा’ की राष्ट्रीय विजन के अनुरूप है।”
पॉलिसीधारकों के लिए जीएसटी में कटौती या छूट मिलने से बीमा पहले से ज्यादा किफायतती होगा, कासतौर पर रिटेल हेल्थ और माइक्रो-इंश्योरेंस में जो सीधे तौर पर जनता को फायदा पहुंचाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी फैमिली हेल्थ इंश्योरेंस प्लान की लागत 50,000 रुपये सालाना है तो पॉलिसी-होल्डर को अभी GST के साथ कुल 59,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं। वहीं टर्म इंश्योरेंस की बात करें तो अफॉर्डेबिलिटी इसका सबसे बड़ा सेलिंग पॉइन्ट है और GST खत्म होने से लाखों निम्न और मिडिल आयवर्ग वाले परिवारों के लिए बेसिक लाइफ कवरेज लेना आसान और किफायती हो जाएगा।
बीमाकर्ताओं का कहना है कि कम प्रीमियम सीधे तौर पर बेहतर अफॉर्डेबिलिटी और ज्यादा कवरेज में बदल जाता है, खासकर पहली बार बीमा खरीदने वाले उन लोगों के लिए जो ज्यादा टैक्स के चलते बीमा खरीदने से बचते हैं।
हाउडेन (भारत) के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर अभिजीत ए सेठी ने कहा, “शुरुआत के लिए, अटकलें यह हैं कि बदलाव सामान्य बीमा के लिए ना होकर जीवनबीमा के लिए होंगे। इस आधार पर रिटेल कंज्यूमर्स के लिए, मुझे लगता है कि यह सही दिशा में एक कदम है। जब आप किसी सर्विस के लिए उपभोक्ता पर बोझ को 18 प्रतिशत तक कम करते हैं या हटाते हैं, खासकर जब वह सर्विस टैक्स के बाद डिस्पोजेबल आय के जरिए ली जा रही हो, तो इसकी पैठ बढ़ना तय है।”
देश में बीमा अपनाने वालों की संख्या कम
आपको बता दें कि भारत ऐतिहासिक रूप से लोगों द्वारा कम बीमा लेने की समस्या से जूझ रहा है – यह 2023-24 में 3.7 प्रतिशत और 2022-23 में 4 प्रतिशत था। जीवन बीमा उद्योग के लिए बीमा पहुंच 2023-24 में मामूली रूप से घटकर 2.8 प्रतिशत हो गई, जो पिछले वर्ष 3 प्रतिशत थी। बीमा नियामक IRDAI की FY24 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, गैर-जीवन बीमा उद्योग (non-life insurance industry ) की पहुंच 2023-24 और 2022-23 में 1 प्रतिशत यानी एकसमान रही।
बीमा इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जीएसटी को हटाने से पहली बार पॉलिसी धारकों- खासतौर पर युवा, कम बीमाकृत आबादी में वृद्धि होगी। ज्यादा से ज्यादा लोग और परिवार भी बुनियादी कवरेज से अधिक व्यापक योजनाओं में अपग्रेड हो सकते हैं।
एक बीमा अधिकारी के मुताबिक, इस शिफ्ट से ना केवल लोगों पर पड़ने वाला स्वास्थ्य बोझ कम होगा बल्कि सरकारी को भी यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लक्ष्य की तरफ बढ़ने में मदद मिलेगी। सरकार के लिहाज से देखें तो जीएसटी कम होने से बीमा लेने वालों की संख्या बढ़ेगी यानी पॉलिसी-होल्ड बेस बढ़ेगा। और मीडियम-टू-लॉन्ग टर्म में इंडस्ट्री में होने वाली ग्रोथ से ओवरऑल टैक्स कलेक्शन में भी इजाफा होगा।
वित्त वर्ष 2015 में गैर-जीवन बीमा (Non-life insurance) सेगमेंट ने 6.21 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 3.07 लाख करोड़ रुपये का प्रीमियम जुटाया। वहीं जीवन बीमा कंपनियों ने वित्त वर्ष 2015 में 5.13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 3.97 लाख करोड़ रुपये का प्रीमियम कलेक्ट किया।
इनपुट टैक्स क्रेडिट
बीमा कंपनियों को चिंता है कि जीरो जीएसटी सिस्टम से परिचालन लागत में बढ़ोतरी हो सकती है। IBAI के भरिंदवाल ने कहा कि ITC का फायदा उठाने के लिए जीएसटी कंपोनेंट होना चाहिए (भले ही यह 5 प्रतिशत या उससे कम हो)। उन्होंने कहा, “पूरी छूट (शून्य जीएसटी) ITC को ब्लॉक कर देगी, जबकि 5 प्रतिशत की कम दर अभी भी सेट-ऑफ की अनुमति देगी। इसलिए, इंडस्ट्री ऑपरेशन के दृष्टिकोण से देखें तो जीएसटी दर में कमी (5 प्रतिशत तक) पूरी तरह छूट की तुलना में ज्यादा व्यावहारिक हो सकती है।”
आईटीसी जीएसटी सिस्टम के तहत एक तंत्र है जो कंपनियों को टैक्सेबल सप्लाई (आउटपुट) करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली खरीद (इनपुट) पर भुगतान किए गए टैक्स के लिए क्रेडिट को क्लेम करने की अनुमति देता है। सीधे शब्दों में कहें, जब कोई कंपनी आपके बिजनेस के लिए सामान या सर्विस खरीदती है तो वह उन खरीद (इनपुट) पर जीएसटी का भुगतान करती है। बाद में जब यह प्रोडक्ट या सर्विस बेचता है, तो यह अपने ग्राहकों से जीएसटी कलेक्ट करता है। कंपनी खरीद पर भुगतान किए गए कर के लिए क्रेडिट को क्लेम करके बिक्री पर भुगतान किए गए टैक्स को कम कर सकती है।
भरिंदवाल ने कहा कि कुल मिलाकर कहें तो जीरो जीएसटी से ग्राहकों को निश्चित रूप से फायदा होगा। आईटीसी रिटेंशन के साथ एक मॉडरेट यानी थोड़ी कम जीएसटी दर, इंडस्ट्री के लिए अधिक टिकाऊ समाधान हो सकती है।