नई दिल्ली:– प्रेमानंद जी महाराज एक प्रसिद्ध संत हैं, जिनके विचारों में गहराई, अनुशासन और आत्मिक रहस्य का समावेश होता है। वे बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि इंसान को अपनी कुछ बातों को पर्दे में रखना चाहिए, क्योंकि हर बात का प्रदर्शन हानि का कारण बन सकता है। उनका यह विचार विशेष रूप से भजन, भोजन, खजाना और यारी के संदर्भ में बहुत चर्चित है। आइए जानते हैं कि वे ऐसा क्यों कहते हैं।
भजन को गुप्त रखें
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, ईश्वर भक्ति एक निजी अनुभूति है। भजन यानी भगवान का ध्यान, जाप, साधना – यह सब आत्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है, लेकिन अगर इसे बार-बार प्रदर्शित किया जाए, तो उसका प्रभाव क्षीण हो सकता है।
उन्होंने कहा है, “ईष्ट प्रेम को छुपाना चाहिए, जितना छुपाएंगे उतना बढ़ेगा।” जब भक्ति दिखावे का माध्यम बन जाती है, तो उसका सार समाप्त हो जाता है।
भोजन को गुप्त रखें
भोजन भी केवल पेट भरने का माध्यम नहीं, बल्कि ऊर्जा का स्रोत है। महाराज जी कहते हैं कि भोजन करते समय ध्यान और एकांत आवश्यक है।
अगर हर समय अपने खाने-पीने का प्रदर्शन किया जाए तो वह तामसिक वृत्ति को बढ़ाता है। शरीर की ऊर्जा और स्वास्थ्य से जुड़ी चीजें निजी रखी जाएं, तो वह अधिक लाभदायक होती हैं।
खजाना यानी धन को गुप्त रखें
धन का दिखावा ईर्ष्या, लालच और संकट को निमंत्रण देता है। प्रेमानंद जी महाराज मानते हैं कि “अपनी चीजों को जितना प्रकाशित करेंगे, उतना क्षीण हो जाएगा
इसलिए धन, संपत्ति या अन्य संसाधनों का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ने से व्यक्ति मानसिक शांति खो बैठता है।
यारी यानी मित्रता को पर्दे में रखें
मित्रता एक पवित्र रिश्ता है, जिसमें विश्वास और अपनापन होता है। लेकिन अगर इसे बार-बार सार्वजनिक किया जाए तो उसमें दूसरों की नजर लग सकती है।
कई बार, समाज में अनावश्यक हस्तक्षेप से रिश्ते प्रभावित होते हैं। इसलिए सच्चे मित्र और अपनी यारी को दिल में रखें, ना कि मंच पर।
गोपनीयता में है शक्ति
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं, “जितना ज्ञान, विज्ञान और अनुभव छुपाएंगे, उतना बढ़ेगा।” यह विचार आत्म-विकास की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण है।
किसी की दिनचर्या, साधना, योजना या निजी लक्ष्य जब तक निजी रहते हैं, तब तक वे अधिक प्रभावी होते हैं। लेकिन जैसे ही उनका प्रचार शुरू होता है, ध्यान बंटने लगता है और परिणामों में कमी आ जाती है