प्रयागराज :– तीर्थराज प्रयाग के वासियों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए यह किसी खुशखबरी से कम नहीं है। राष्ट्रीय जलीय जीव डाल्फिन का यहां पर कुनबा साल-दर-साल बढ़ रहा है। करीब चार साल पहले इनकी संख्या 20 के आसपास थी। अब यह 32 के पार पहुंच गई है। त्रिवेणी से आगे इन्हें ज्यादा बेहतर प्राकृतिक वास मिल रहा है। इसलिए, यहां पर रहना यह ज्यादा पसंद कर रहीं हैं।
वन विभाग व वाइल्ड लाइफ कराता है डाल्फिन की गणना
कल-कल करती गंगा की धारा में डाल्फिन की अठखेलियां देखने का अपना अलग आनंद है। प्रयागराज से होकर गुजरी पतित पावनी में भी डाल्फिन ने अपना बसेरा बनाया है। समय-समय पर इनकी गणना के लिए वन विभाग व वाइल्ड लाइफ की ओर से सर्वे कराया जाता है।
हाल ही में कराया गया था सर्वे
वर्ष 2020-21 में हुए सर्वे के दौरान यहां पर करीब 20 डाल्फिन देखी गईं थीं। वहीं वर्ष 2023 में कराए गए सर्वे में इनकी संख्या लगभग 30 मिली। हाल ही में एक सर्वे और वाइल्ड लाइफ की तरफ से हुआ था, जिसकी कोई रिपोर्ट अभी वन विभाग के पास नहीं है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इसमें लगभग 32 से 35 के बीच डाल्फिन प्रयागराज में देखी गईं हैं।
यमुना-गंगा के मिलन से गहरा पानी डाल्फिन के लिए मुफीद
वाइल्ड लाइफ के कम्युनिटी आफीसर केपी उपाध्याय बताते हैं कि डाल्फिन नदी के गहराई वाले इलाके में रहती हैं। यमुना के मिलन के बाद गंगा में पानी और गहराई दोनों बढ़ जाती है। इसलिए, संगम के आगे इनकी संख्या अधिक है। नीबी कला, मवैया, सिरसा, मोगारी, डीहा घाट आदि इलाके इनमें प्रमुख है। यमुना में बसवार और कंजासा के आसपास भी इन्हें देखा गया है।
डाल्फिन को रास आ रहा त्रिवेणी का जल
विशेषज्ञ बताते हैं कि वैसे तो गंगा का पानी पूरी तरह से शुद्ध रहता है, लेकिन इसमें बालू अधिक मिली रहती है। जबकि, यमुना के रास्ते आने वाला चंबल का पानी इसकी अपेक्षा ज्यादा साफ रहता है। यमुना के मिलने के बाद गंगा का पानी और साफ होता है। यह भी वजह है कि संगम के आगे डाल्फिन ज्यादा रहती हैं।
डीएफओ अरविंद कुमार कहते हैं कि प्रयागराज में डाल्फिन को प्राकृतिक वास के साथ सुरक्षित वातावरण मिल रहा है। स्थानीय लोग भी इनकी सुरक्षा के प्रति जागरूक हैं। यही कारण है कि गंगा में इनकी संख्या बढ़ रही है।