नई दिल्ली:– यह वही प्रदेश है, जहां से 2014 में 80 में से 71 और 2019 में 62 सीटें उसे मिली थीं. यूपी की बदौलत नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने, लेकिन तीसरी बार पीएम की कुर्सी पर बैठने के लिए बैसाखी की जरूरत पड़ी है. बीजेपी के विजय रथ को ब्रेक लगाने का काम अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी ने उत्तर प्रदेश में करके दिखाया है. पीएम मोदी एनडीए के सहयोगी दलों के दम पर भले ही सरकार बनाने में कामयाब हो गए हों लेकिन सपा-कांग्रेस को सूबे में बीजेपी को मात देने का मंत्र मिल गया है. इसीलिए राहुल और अखिलेश दोनों ही 2027 के लिए अभी से ही कमर कस लिए हैं.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मात देने के लिए अखिलेश यादव ने कई सियासी प्रयोग किए, जिसमें 2017 में कांग्रेस से हाथ मिलाया. इसके बाद 2019 में बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और 2022 में जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरे लेकिन कामयाब नहीं रहे. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने एक बार फिर से कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. यूपी में 2017 में जिस राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी बीजेपी से पार नहीं पा सकी, उसने 2024 में बीजेपी को करारी मात दी है, जबकि बीजेपी अपना सियासी कुनबा पहले से भी काफी बड़ा करके चुनावी मैदान में उतरी थी.
2024 में यूपी 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 33 और उसके सहयोगी आरएलडी ने 2 और अपना दल ने एक सीट जीती है. इंडिया गठबंधन में शामिल सपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की है. उसकी सहयोगी कांग्रेस 6 सीटें जीतने में कामयाब रही. इस तरह इंडिया गठबंधन को कुल 43 सीटें मिली हैं. इसके अलावा नगीना सीट से दलित नेता चंद्रशेखर आजाद जीते हैं. इस जीत से सपा और कांग्रेस दोनों के हौसले बुलंद हैं. उन्हें 2027 में अपनी सत्ता की वापसी की उम्मीद दिखने लगी है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में 300 पार सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा है कि बीजेपी एक हार में ही निराश हो गई. हम लोग तो कितनी बार हारे पर निराश नहीं हुए. यह स्थिति बताती है कि 2027 में हम सब एक होकर सपा को जीत दिलाएंगे. वहीं, राहुल गांधी ने भी रायबरेली में बड़ा सियासी संदेश दिया है. राहुल ने कहा कि इस बार तमिलनाडु, राजस्थान, यूपी, मणिपुर सब जगह कार्यकर्ता एक होकर लड़े. कांग्रेस पार्टी रायबरेली-अमेठी ही नहीं पूरे हिंदुस्तान में एक होकर लड़ी. यूपी में सपा का हर कार्यकर्ता कांग्रेस के कार्यकर्ता के साथ मिलकर एक साथ लड़ा.
अखिलेश भी कांग्रेस की ताकत से वाकिफ हो चुके हैं
हालांकि, इंडिया गठबंधन को जिन लोकसभा क्षेत्रों में जीत मिली है, उन क्षेत्र की पांच से औसतन चार सीट पर उसे बढ़त थी जबकि एनडीए को जिन सीट पर जीत मिली है, उसमें उसे तीन विधानसभा सीट पर बढ़त थी. इस लिहाज से देखने पर इंडिया गठबंधन की सीटें बढ़कर 235 से भी ज्यादा हो रही हैं. लोकसभा के साथ अगर विधानसभा के चुनाव होते तो यूपी में बीजेपी की सत्ता बचनी मुश्किल हो जाती है. सीट ही नहीं बल्कि वोट शेयर में भी दोनों में काफी अंतर है. इसीलिए कांग्रेस और सपा के बीच राजनीतिक केमिस्ट्री बेहतर दिख रही है.
यूपी में मिली जीत के बाद कांग्रेस नेता अविनाश पांडेय, अजय राय और आरधना मिश्रा ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात कर उन्हें सूबे की जीत के लिए बधाई देकर अपनी दोस्ती को मजबूत बनाए रखने का दांव चला है. कांग्रेस भी इस बात को समझ रही है कि यूपी में अकेले उसकी सियासी नैया पार नहीं होने वाली है. ऐसे में सपा संग दोस्ती बनाकर ही चुनावी मैदान में उतरना होगा तो अखिलेश यादव भी कांग्रेस की सियासी ताकत से वाकिफ हो चुके हैं. ऐसे में देखना है कि 2027 में सपा-कांग्रेस मिलकर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो क्या सियासी गुल खिलाते हैं?