पटना। एक बार फिर से जातियों के बीच शुरुआती तनाव दिखने लगा है। लोग फिर से एक दूसरे को मजाक में ही सही जाति और उनकी हिस्सेदारी बताने लगे हैं। जातियों से संबोधित कर एक दूसरे से बात करते नजर आ रहे हैं। सार्वजनिक जगहों पर जातियों पर बहस भी छिड़ती नजर आ रही है। यह बहस अभी शुरुआती दौर में है। लेकिन आने वाले वक्त में बहस पर तलवारें खींचती नजर आएंगी। दरअसल, समाज में वह लोग जो पीछे गए, वो अपने आपको ठगा हुआ महसूस करते हैं। लेकिन अब वह लोग, जिन्होंने अपनी जनसंख्या कम कर अपनी आबादी को नियंत्रित किया वो ठगे महसूस कर रहे हैं। बड़ा सवाल यही है कि क्या बिहार के कास्ट सर्वे से राज्य में घमासान तेज होगा।
बिहार फिर ‘जात’ वाली पॉलिटिक्स
जातीय घमासान टालने को लेकर दुनिया भर में समाजवादी आंदोलन हुए। हालांकि, यह लड़ाई बिहार में अमीर और गरीब की नहीं बनी। ये लड़ाई हमेशा जात की रही। अमीर और गरीब की लड़ाई की आड़ में बिहार में जातियों को जिंदा जरूर रखा गया। बिहार में ‘जात’ वाली भावना बीते 18 सालों में कम होने लगी थी। जिसका नतीजा यह रहा कि लालू लंबे समय तक सत्ता से दूर रहे। एक बार फिर से उनकी मंशा बिहार पर राज करने की है।
 
		