मध्यप्रदेश:– धार्मिक शास्त्रों के अनुसार नवजात शिशु के श्राद्ध के संदर्भ में अलग मान्यताएं और नियम हैं. सामान्यतः, पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किए जाते हैं, लेकिन नवजात शिशु की मृत्यु के मामले में इसे अलग तरीके से देखा गया है. शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि नवजात शिशु या छोटे बच्चों की मृत्यु होने पर उनका श्राद्ध नहीं किया जाता क्योंकि वे पितृ गण में शामिल नहीं होते. गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसे बच्चों की आत्मा को बाल-गति कहा जाता है और ये आत्माएं शीघ्र पुनर्जन्म लेती हैं, इसलिए उन्हें श्राद्ध या पिंडदान की आवश्यकता नहीं होती. इनके लिए केवल नैमित्तिक संस्कार और सूतक शुद्धि करना पर्याप्त माना गया है.
साधारण तर्पण और प्रार्थना करना चाहिए
पितृपक्ष में नवजात शिशु के लिए कोई निश्चित और नियमित श्राद्ध तिथि शास्त्रों में नहीं है, बल्कि मृत्यु तिथि के अनुसार तर्पण का नियम है. नवजात शिशु श्राद्ध की आवश्यकता से अलग हैं क्योंकि उनका जीवनकाल अत्यंत अल्प होता है और वे पुनर्जन्म की प्रक्रिया में जल्दी शामिल हो जाते हैं. इसके लिए पितृपक्ष के दौरान साधारण तर्पण और प्रार्थना करना ही उनके लिए उचित माना गया है.
शीघ्र सुखद पुनर्जन्म मिल सके
इस विषय में शास्त्रों और पंडितों की मान्यताएं यही दर्शाती हैं कि नवजात शिशु के श्राद्ध परंपरा में पितृ पक्ष के सामान्य श्राद्ध कर्म नहीं लगाए जाते, बल्कि केवल तर्पण व शुद्धि कर्म होते हैं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके और वे शीघ्र सुखद पुनर्जन्म लें. यही धार्मिक दृष्टिकोण और प्रथा है जो परिवारों में पालन की जाती है.
