बेंगलुरु. चंद्रयान-3 मिशन की अपेक्षित अवधि समाप्त होने में काफी समय बीत जाने के बावजूद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्र रात्रि के बाद मिशन के फिर से जीवित होने की उम्मीद बरकरार रखी है. हालांकि, इसमें अभी तक कोई कामयाबी नहीं मिल सकी है. माना जा रहा है कि जैसे ही विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर सोए, यूएस स्पेस फोर्स सैटेलाइट के प्रक्षेपण ने पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में एक छेद कर दिया होगा.
चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर और रोवर को चंद्रमा पर सिर्फ एक चंद्र दिवस के लिए काम करने के मद्देनजर डिज़ाइन किया गया था. यानी लगभग 14 दिन, और वह समय काफी पहले बीत चुका है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मिशन के इलेक्ट्रॉनिक्स को रात के समय चंद्रमा पर चरम स्थितियों का सामना करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था. जहां तापमान 200 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे गिर सकता है और सौर-संचालित मॉड्यूल के काम करने के लिए बिल्कुल भी सूरज की रोशनी नहीं है.
दिलचस्प बात यह है कि अगर रूस का लूना-25 चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने में कामयाब होता, तो उसका प्रदर्शन काफी बेहतर होता. रूसी मिशन को “प्लूटोनियम रेडियोआइसोटोप डिवाइस” के साथ डिज़ाइन किया गया था, जो परमाणु बैटरी जैसा कुछ था.
क्या नासा बना रहा है इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को रिटायर करने की योजना?क्या नासा बना रहा है इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को रिटायर करने की योजना?रोवर प्रज्ञान और लैंडर विक्रम के जागने का 14 दिन तक इंतजार करेगा ISROरोवर प्रज्ञान और लैंडर विक्रम के जागने का 14 दिन तक इंतजार करेगा ISROइंटरनेशनल स्पेस स्टेशन गिराने की योजना, नासा ने की तैयारी, जानें क्या होगा?इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन गिराने की योजना, नासा ने की तैयारी, जानें क्या होगा?
क्या नासा बना रहा है इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को रिटायर करने की योजना?क्या नासा बना रहा है इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को रिटायर करने की योजना?चंद्रयान-3 मिशन में ऐसी कोई सुविधा न होने के बावजूद इसरो को अब भी उम्मीद है. मिशन के उद्देश्य पूरे होने के बाद अंतरिक्ष एजेंसी ने लैंडर और रोवर के जीवनकाल को बढ़ाने का प्रयास करने का मौका लेने का फैसला किया था.
उन्होंने सूर्यास्त से थोड़ा पहले सभी उपकरणों को बंद कर दिया और उन्हें “स्लीप मोड” में डाल दिया. इस बात की थोड़ी संभावना थी कि यदि बैटरियां पूरी तरह से चार्ज होतीं, तो वे चंद्र रात में जीवित रहने के लिए उपकरणों को पर्याप्त गर्म रखने में सक्षम हो सकती थीं.जब चंद्रयान-3 मिशन के मॉड्यूल चंद्रमा पर सो रहे थे, तब उसके बहुत करीब कुछ बहुत दिलचस्प घटित हुआ. अमेरिकी अंतरिक्ष बल उपग्रह के प्रक्षेपण ने आयनमंडल में ‘एक छेद कर दिया’ हो सकता है, जो पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल का हिस्सा है.
टेक्सास स्थित निजी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी फर्म फायरफ्लाई एयरोस्पेस ने 14 सितंबर को स्पेस फोर्स के लिए विक्टस नॉक्स उपग्रह लॉन्च किया. स्पेसवेदर.कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, लॉन्च के बाद, एक सफेद प्रकाश आकाश के एक बड़े क्षेत्र में फैल गया. इस शंकु के फीका पड़ने के बाद, हल्की लाल चमक थी, जो रॉकेट द्वारा आयनमंडल में छेद करने के कारण हो सकती थी.
अंतरिक्ष अभियान में बड़ी छलांग लगाते हुए 23 अगस्त को भारत का चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-3’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा, जिससे देश चांद के इस क्षेत्र में उतरने वाला दुनिया का पहला तथा चंद्र सतह पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. चंद्रमा पर चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल का नाम ‘शिवशक्ति’ प्वॉइंट रखा गया है और 23 अगस्त का दिन ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा. इसी तरह से चंद्रमा की सतह पर जिस स्थान पर चंद्रयान-2 ने 2019 में अपने पदचिह्न छोड़े थे, उसे ‘तिरंगा प्वॉइंट’ नाम दिया गया है..