नई दिल्ली:- ओडिशा एक बड़े स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है. राज्य में सिकल सेल एनीमिया रोगियों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. जहां भी रोगियों को खून की जरूरत हो रही, उन्हें रक्त दिया जा रहा है. लेकिन अब अस्पतालों और ब्लड बैंकों में खून की कमी हो गई है. यदि खून की कमी यूं ही जारी रही तो सिकल सेल एनीमिया के रोगियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. जानें क्या होता है सिकल सेल एनीमिया
सिकल सेल डिजीज क्या होता है?
सिकल सेल एनीमिया या सिकल सेल डिजीज एक जेनेटिक यानी आनुवंशिक बीमारी है जिसमें रेड ब्लड सेल्स का आकार असामान्य हो जाता है, जो सिकल जैसा दिखता है. ये सिकल के आकार की कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं, जिससे शरीर में ब्लड फ्लो प्रभावित होता है. इससे शरीर में दर्द और टिश्यू डैमेज हो सकती है.
वहीं, डॉक्टरों के मुताबिक सिकल सेल रोग एनीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है जो रेड ब्लड सेल्स को प्रभावित करता है. यह रोग हीमोग्लोबिन की कमी के कारण होता है. सिकल सेल रोग से पीड़ित लोगों में रेड ब्लड सेल्स सिकल या चंद्रमा के आकार की होती हैं. इसी वजह से इसे सिकल सेल रोग कहा जाता है. यह एक अनुवांशिक बीमारी है जो संक्रमित माता-पिता से बच्चों में ट्रांसफर होती है. इस बीमारी की वजह से रेड ब्लड सेल्स सामान्य से कम समय तक जीवित रहती हैं.
इस बीमारी की वजह से मरीज को थकान, सांस की तकलीफ, और शरीर में पीलापन और बदन दर्द जैसी समस्या रहती है . सिकल सेल एनीमिया का कोई स्थाई इलाज संभव नहीं है. लेकिन शरीर पर इसका प्रभाव कम करने के लिए दवाएं और अन्य उपचार उपलब्ध हैं. इस रोग से पीड़ित लोग यदि नियमित रूप से चिकित्सा जांच करवाए और हेल्दी जीवनशैली अपनाए तो वह लंबे समय तक सामान्य जीवन जी सकते है.
सिकल सेल रोग के संकेत और लक्षण क्या हैं
सिकल सेल एनीमिया के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं. लक्षण आमतौर पर पहली बार 6 महीने की उम्र के आसपास दिखाई देते हैं और समय के साथ बदल सकते हैं. यहां कुछ सामान्य संकेतों और लक्षणों की सूची दी गई है, जिनमें शामिल है…
अत्यधिक थकान
पीलिया
हाथ-पैरों में सूजन
छाती, पीठ, हाथ या पैर में दर्द
एनीमिया
बार-बार संक्रमण
देर से विकास
दृष्टि-संबंधी मुद्दे
लकवा मारना
हार्ट डिजीज
क्या आप जोखिम में हैं
सिकल सेल रोग एक आनुवंशिक बीमारी है. अगर माता-पिता दोनों में सिकल सेल जीन है, तो बच्चे को यह बीमारी हो सकती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सिकल सेल रोग (एससीडी), या सिकल सेल एनीमिया, एक प्रमुख जेनेटिक रोग है जो अफ्रीकी क्षेत्र के अधिकांश देशों को प्रभावित करता है.
सिकल सेल रोग की जटिलताएं क्या हैं
सिकल सेल शरीर के किसी भी हिस्से में रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध कर सकते हैं. यह दर्दनाक होने के साथ-साथ नुकसानदायक भी हो सकता है. सिकल सेल रोग की कुछ गंभीर जटिलताओं में स्ट्रोक, अंग क्षति, अंधापन, पित्त पथरी, तंत्रिका संबंधी समस्याएं, हृदय रोग और फेफड़ों की बीमारी शामिल हैं.
आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा पाई जाती है यह बीमारी
भारत में इस बीमारी का पता सबसे पहले 1950 के दशक में चला था. जब इस पर शोध हुआ तो पता चला कि यह बीमारी आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा पाई जाती है. इसका मुख्य कारण यह है कि इन समुदायों में सजातीय विवाह यानी आपस में विवाह करने की प्रथा है. भारत में आदिवासियों की संख्या कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत है. अनुमान है कि सिकल सेल बीमारी लगभग 10 प्रतिशत आदिवासी आबादी में पाई जाती है. महिलाओं और बच्चों को इसका अधिक खतरा होता है.
ओडिशा समेत इन राज्यों में बढ़ रही मरीजों की संख्या
ओडिशा में सिकल सेल एनीमिया के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. राज्य के लिए सिकल सेल एनीमिया खतरा बन गया है. इस बीमारी के कारण ओडिशा के स्वास्थ्य क्षेत्र पर बुरा असर पड़ा है. अब तक प्रदेश में 38 लाख 37 हजार 61 लोगों की जांच हो चुकी है. इनमें से 88,018 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं. 342,271 रोगियों की पहचान सिकल सेल एनीमिया के वाहक के रूप में की गई है. 3,393,632 लोगों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आयी है. केवल ओडिशा ही नहीं इस बीमारी की चपेट में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और अन्य राज्य भी हैं.
ओडिशा की स्थिति
राज्य में 38,37,061 लोगों की जांच की गई, जिनमें से 88,018 लोग पॉजिटिव पाए गए. कम से कम 3,42,271 लोगों की पहचान सिकल सेल एनीमिया के वाहक के रूप में की गई है, जबकि 33,93,632 लोगों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है. राज्य सरकार ने मरीजों के इलाज के लिए हाइड्रोक्सीयूरिया का इस्तेमाल शुरू किया है. हाइड्रोक्सीयूरिया आपके अस्थि मज्जा में रक्त कोशिकाओं की संख्या में भारी कमी ला सकता है. वर्तमान में राज्य में 35,962 मरीजों का हाइड्रोक्सीयूरिया से इलाज किया जा रहा है. मरीजों की स्थिति की हर तीन महीने में निगरानी की जाती है.
जागरूकता समय की मांग
इस बीमारी से सबसे ज्यादा पीड़ित बच्चे और गर्भवती महिलाएं हैं. इस बीमारी से पीड़ित महिलाएं आमतौर पर बच्चे को जन्म देने के बाद जीवित नहीं रह पाती हैं. ऐसे में कमजोर वर्गों के बीच जागरूकता पैदा करना की एकमात्र इससे बचाव का उपाय है.
सबसे अधिक प्रभावित जिले
ओडिशा राज्य में सिकल सेल जीन की मौजूदगी 1952 से ही ज्ञात है. यह राज्य के पश्चिमी जिलों के लोगों में व्यापक रूप से फैला हुआ है. पश्चिमी ओडिशा में झारसुगुड़ा में सिकल सेल एनीमिया के रोगियों की संख्या सबसे अधिक है. इसके अलावा, अंगुल, बालासोर और क्योंझर जिलों में भी बड़ी संख्या में मामले सामने आए हैं. जबकि इस बीमारी की जांच एएनएम, आशा कार्यकर्ताओं और मोबाइल स्वास्थ्य टीमों द्वारा की जाती है, लेकिन तथ्य यह है कि सिकल सेल एनीमिया एक वंशानुगत बीमारी है.
गर्मियों के दौरान जटिलताएं
ब्लड सेफ्टी के निदेशक प्रदीप कुमार पात्रा ने बताया कि सिकल सेल एनीमिया का सबसे बड़ा दुश्मन गर्मी है, क्योंकि अत्यधिक गर्मी के कारण इसके लक्षण कम हो जाते हैं. अगर शरीर में खून सूख जाए तो लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है. ऐसे में मरीजों को अधिक रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है.
मरीजों को दिया गया जेनेटिक कार्ड
ओडिशा में सिकल सेल एनीमिया के मरीजों और उनके परिवारों को दवा के साथ-साथ जेनेटिक कार्ड भी दी जा रही है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस बीमारी से पीड़ित लोग समान जीन वाले लोगों से शादी न करें.
रोग के लिए परीक्षण
ओडिशा में, परीक्षण मुख्य रूप से प्रमुख सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में किया जाता है. लक्षण दिखने वाले लोगों की जांच गजेल मशीन से की जाती है. इसके बाद MTP नामक एक और परीक्षण किया जाता है जो SCB मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कटक, VSS मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, संबलपुर और MKCG मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, बरहामपुर में किया जाता है.
सिकल सेल एनीमिया को समाप्त करने का लक्ष्य
राज्य सरकार ने 2035 तक इस बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य रखा है.