कुरूद, 17 मार्च। रूफ टॉप नहीं। वर्टिकल फार्मिंग और पथरीली ऊंची-नीची या जलभराव वाली जमीन भी नहीं। जवाहर मॉडल तकनीक का लें सहारा और घर पर ही लें सब्जी की भरपूर फसल। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर की नई खोज, बस्तर के हीरानार में सफल प्रयोग के बाद प्रदेश के दूसरे जिलों में प्रवेश के लिए तैयार है।
परंपरागत सब्जी की खेती में लगने वाले संसाधन के झंझट से दूर, नया जवाहर मॉडल अब ऐसे क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान बनने जा रहा है जहां की जमीन ऊंची-नीची या पथरीली या फिर जलभराव जैसी समस्या बनती रही है। बस्तर के हीरानार गांव में जवाहर मॉडल का प्रयोग पूरी तरह ना केवल सफल रहा बल्कि अब इस क्षेत्र के किसान इस मॉडल से ली गई सब्जी की फसल बेचकर अच्छी-खासी आय भी हासिल कर रहे हैं। अब यह मॉडल पूरे प्रदेश में पहुंचने के लिए तैयार है।
क्यों जवाहर मॉडल
प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा गहराई या उथली जमीन वाला है। गहराई होने से जलभराव और उथली होने से पानी प्रबंधन में हमेशा से दिक्कत आती रही है। इसके अलावा पथरीली जमीन भी सब्जी की खेती में बाधा बनती रही है। ऐसे क्षेत्रों के लिए जवाहर मॉडल पूरी तरह वरदान बनकर आ रहा है।
क्या है जवाहर मॉडल
जवाहर मॉडल में सिर्फ दो चीज की मदद ली जाती है। पहला प्लास्टिक की खाली बोरी और दूसरा, सड़ा हुआ गोबर, रेत और मिट्टी। समान अनुपात में इसे प्लास्टिक की बोरी में भरा जाता है। बीज डाले जाते हैं और सीमित मात्रा में पानी का छिड़काव किया जाता है। इस काम के हो जाने के बाद, समय पर पौधों का अंकुरण होता है और तैयार होने लगती है सब्जी की ऐसी फसल, जिससे घरेलू जरूरतें तो पूरी होती ही हैं साथ ही शेष मात्रा बाजार में बेची जा सकती है।
ये फसल उपयुक्त
कतार से कतार की दूरी बनाकर बीज रोपण के बाद मक्का, टमाटर, अदरक, तुरई, लौकी, ककड़ी, करेला, बैगन, मिर्च, शिमला मिर्च, भिंडी, पत्ता व फूल गोभी के साथ अरहर की फसल ली जा सकेगी। जवाहर मॉडल को अपनाकर की गई सब्जी की खेती में बेहद कम समय, और कम पानी की जरूरत होती है। खरपतवार और कीट प्रकोप जैसी समस्या भी नहीं आती। ड्रिप सिस्टम का भी उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा नई तकनीक आर्थिक नुकसान से भी बचाती है।
कृषि महाविद्यालय, कुरूद, वेजिटेबल साइंस के साइंटिस्ट डॉ. अमित दीक्षित ने कहा कि जवाहर मॉडल नई तकनीक है। मशीनों का उपयोग नहीं होने से यह नई विधि किसानों के लिए वरदान बनेगी।
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